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प्रेमपत्र

मैं उदास हो घर की तरफ वापस चल पड़ी। मन में उस के लिए न जाने क्या-क्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला।

घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा। कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती ही रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा।

ओह, यह, आज मेरे मन को क्या हो गया है। उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं।अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी । थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा।

वह मां के पास आ कर बैठ गई।

तुम आ गई सौम्या बेटा?"

"हां मा."

"बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कॉपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है। वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई।

लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की। उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं,शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं। सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए।

आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. पीले रंग की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब...