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पीड़ा
कहानी संग्रह

1

जमाती के कारण
सरकार द्वारा लॉकडाउन में छूट दिए जाने के कारण आज बबली अपने घर का जरूरी सामान खरीदने के लिए बाजार गई। कोरोना के कारण सरकार ने एतिहात बरतने के लिए पूरे देश के अंदर लॉकडाउन किया हुआ था। बबली, आज मिले इस मौके को हाथ से नहीं देना जाना चाहती थी।
बबली जल्दी जल्दी सामान खरीद लेना चाहती थी। बाजार जाते ही बबली, अपने काम में बहुत व्यस्त हो गई थी। वह सामान खरीदने में इतना व्यस्त हो गई थी कि उसे अपना कुछ ध्यान ही नहीं रहा। जैसे जैसे वह बाज़ार में आगे बढ़ रही थी, उतनी तेजी से चीजों को देख लेना चाहती थी। वह बड़ी तेज कदमों से आगे जा रही थी। लेकिन अचानक उसे लगा जैसे उसकी नजरें ने किसी को देखा हो। उसने पलट कर देखा, उसने देखा कि कोई आदमी है। जो उसके साथ साथ ही चले आ रहा था, जिस को फिर देख लेना चाहती थी। बबली उसी जगह ठहर गई और सामान देखने का बहाना करने लगी।
बबली बड़े देर से उस आदमी को गौर से देखे जा रही थी। बीच बीच में वह आदमी भी बबली को देख देख कर सकुचा रहा था।
उस आदमी को देखने के बाद बबली के दिमाग के एक हिस्से में कुछ हलचल सी मच गई।
वह आदमी बबली को बहुत कुछ अपना सा लग रहा था। बबली अपनी स्मृति को खंगालने लगती है।


(बबली आज काफी दिनों बाद बाजार अाई थी। लॉक डाउन के चलते बहुत दिन हो गए लेकिन अब बाजार में बहुत भीड़ होने लगी थी। कोरोना का भूत लोगों के दिमाग से अभी निकाल नहीं पा रहा है, काफी लोग अभी भी मास्क लगा रहे हैं। लेकिन डिस्टेंस का पालन ठीक प्रकार नहीं कर पा रहे हैं।
घर की जरूरी चीजें खरीदने के लिहाज से बड़ी मुश्किल से बाजार के लिए निकल पाई थी आज, बबली।
जगह जगह लगी पुलिस की बेरिकेटिंग अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत भयानक लग रही थी, को पार करते हुए, एक अनजान से भय से भयभीत बाजार के लिए गई थी)

अपना ध्यान, थोड़ा सा हटा कर बबली आगे जाने को हुई।
लेकिन जैसे ही वह आगे जाने को मुड़ने लगी तो उसे लगा कि उस आदमी की भी कुछ हलचल बढ़ी है।

टेढ़ी नजर से, बबली ने उस आदमी की ओर फिर देखा, वह अब भी बबली को देखे जा रहा था।

बबली को वह आदमी कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था।
बबली अपने दिमाग पर जोर दे कर सोचे जा रही थी, यार इस आदमी को मैं जानती हूं।
लेकिन... नहीं... वह कोई और है???
नहीं यार, यह वह नहीं है? इसी उलझन में खुद ही उलझे जा रही थी।
उस व्यक्ति को देखने से, बबली को कुछ अच्छा सा फील हो रहा था।
दिमाग पर बहुत जोर आजमाने पर भी उसकी याद दास्त साथ नहीं दे रही थी।
बबली अब उस आदमी से जाकर खुद ही पूछ लेना चाहती थी। काफी असमंजस की स्थिति थी बबली की।
वह आदमी भी दूर की दुकान की तरफ मुंह कर लेता है, लेकिन नजरें अभी भी बबली को तलाश रही थीं।
करीब दस मिनट तक उस आदमी को देखने के बाद बबली को अपने संदेह पर थोड़ा विश्वास हो रहा था।
बबली ने फैसला कर लिया कि उस से पूछ कर ही रहेगी। बबली एक झटके से मुड़ी और उस व्यक्ति की तरफ चल दी।
बबली उस व्यक्ति के जैसे जैसे नजदीक जाने लगी, उसका विश्वास बढ़ता ही जा रहा था। बबली के चेहरे पर कुछ खुशी के भाव उभर रहे थे। काश यह वही हो? सोचती सोचती आगे बढ़ रही थी।

वह मोटा आदमी जिसके चेहरे पर लंबी दाढ़ी थी, सिर पर गोल टोपी थी, वह भी कुछ आश्वस्त होता जा रहा था।
झेंपते सा लग रहा, उस आदमी की आंखों में भी अब कुछ चमक बढ़ रही थी।
बबली बिल्कुल नजदीक पहुंच कर बोली।
सोनू ....??... तुम सोनू हो ना?
हां.. हां...दीदी....!
सोनू की आंखें डबडबा गई।

(बड़ी देर से सोनू बबली को देखे जा रहा था, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसके मन के भाव उमड़ रहे थे। उसका भी जी चाह रहा था कि दौड़ कर दीदी से लिपट जाए जैसे बचपन में लिपट जाया करता था। लेकिन अब पता नहीं खुद से ही डर रहा था। पता नहीं दीदी, कैसे रिएक्ट करेगी? मुझे वह इतना प्यार करती थी, पता नहीं अब करती है कि नहीं? कहीं भूल तो नहीं गई? ऐसे अनगिनत खयाल सोनू के मन में आ रहे थे। वह चाह कर भी अपनी दीदी को आवाज नहीं दे पाया।)

बबली, सोनू को पकड़ कर लिपट गई। बबली ने लॉक डाउन के कायदे की धज्जियां उड़ा दी थी। सारा डिस्टेंस खत्म कर दिया एक ही पल में। सालों की दूरी एक पल में ही मिटा दी। वर्षों से नहीं मिल पाने की कसक को मिटा देना चाहती थी।

सोनू की आंखों से अश्रु धारा बह निकली।
उसे एक ओर खुशी के आंसू आ रहे थे, क्योंकि आज वर्षों बाद अपनी दीदी को मिल पा रहा था। कितनी ही बार वह दीदी को याद करता था उस का सब्र का बांध पल भर में टूट गया। दूसरी ओर वह शर्मिंदगी भी महसूस कर रहा था कि मेरी उस दीदी को शक की निगाह से देख रहा था जिसके मन में अब भी वही प्यार बसा हुआ है।
सोनू, बबली के पैरों को छूने लगा।
बबली ने सोनू को अपने गले लगा लिया। बिल्कुल बच्चे कि तरह, जैसे वह 6 फूट का नौजवान न होकर दूध पीता बच्चा हो।
तू मुझे पहचान गया था, सोनू?
बबली जिज्ञासावश पूछने लगी।
बबली को लगा जैसे सोनू पहचान कर भी छिप रहा था।
हां..दीदी!
आपको तो मैं देखते ही पहचान गया था। तुम अब भी उतनी ही छोटी सी हो।
आपका चेहरा भी बिल्कुल नहीं बदला दीदी।
30 साल बाद भी तुम सेम टू सेम हो।
बस, अब थोड़ी सी मोटी हो गई हो।
पहले तुम बहुत ही पतली सी थी, दीदी।
सोनू बताए जा रहा था। बबली, सोनू की याददाश्त को लेकर खुश हो रही थी। उसे लग रहा था कि वह बोलता ही जाए, और वे सारी बातें बताता जाए जो उसे बचपन की यादें ताज़ा कर दे।
अगले ही पल बबली गुस्सा होकर -
लेकिन तुम मुझे आकर मिले क्यों नहीं, सोनू? बबली, अपनेपन के हक को जताने, नाराजगी दिखाते हुए बोली।
सोनू! तुम सिमट क्यों रहे थे? बताओ ना सोनू?
रोते हुए बबली सोनू से पूछे जा रही थी।
दीदी...!
अब सोनू की आवाज में कम्पन पैदा हो गई थी।
दीदी ...अब ...
अब क्या सोनू, बोल ना... तू दीदी को भूल गया या...?

नहीं दीदी...कैसे भूल सकता हूं? सोनू ने जल्दी से जवाब दिया। बचपन में आपके द्वारा बांधी गई राखियां अब भी मेरे पास रखी हैं।
फिर सोनू...तू खड़ा क्यों रह गया...?
जैसे बबली को कोई मलाल था कि सोनू आकर मुझसे क्यों नहीं मिला?
बबली की आंखों से अश्रु धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
रहमान चाचा कहां है सोनू, खाला कहां है?
अगले ही पल
अनगिनत सवालों की झड़ी लगा दी बबली ने।

(अपनी तीस साल पहले की जिंदगी में, पीछे देखने लगी बबली।
सोनू का घर उसकी ही गली में था। दिल्ली की स्लम बस्ती में। जहां वे एक दूसरे के घर दिन में अनगिनत बार आते जाते रहते थे।
हावड़ा में भी उनके घर नजदीक ही थे। इसलिए दिल्ली में भी गांव का ही रिश्ता बना रहा। रहमान चाचा भी पापा को दादा (बड़ा भाई) ही कहते थे। घर की हर बात साझा होती थी। परिवार में किसी सदस्य की हारी बीमारी, बच्चों की पढ़ाई, काम की तलाश, सब कुछ साझा होता था। हमारे घर दुर्गा पूजा में, रहमान चाचा पूरे परिवार के साथ आते थे, साथ साथ खाना खाते। ईद पर हम भी पूरा परिवार सोनू के घर रहते। कितना घुल मिल कर रहते थे हम सब।

बिना कोई जाति बिरादरी के भेद के, बिना कोई धार्मिक भेद के। मुझे पता ही नहीं लगा कि हिन्दू, क्या होता है?, मुसलमान क्या होता है? और इनमें कैसा भेद, वह कभी समझ ही नहीं पाई।

लेकिन काम की तलाश में रहमान चाचा अपने परिवार के साथ, अपना दिल्ली का घर बेच कर, सऊदी चले गए थे।
उनके जाने के कुछ दिनों बाद ही पापा का कारोबार भी घाटे में चला गया। हमने भी घर बेच दिया था। दुकान बेच दी थी। फैक्टरी भी बंद हो गई थी। सब कुछ बेच कर लोगों का कर्ज अदा कर, पापा दिल्ली से कलकत्ता के पास ही 24 परगना, जिला चले गए। मेरी शादी यहां दिल्ली में हो गई। मैं दिल्ली में ही रह गई, अपने पति के साथ। लेकिन दिल्ली में रहते हुए भी पुराने मकान पर आना जाना सब छूट गया था। रहमान चाचा की कोई चिट्ठी भी अाई होगी तो कैसे पता चलता?
आज अचानक सोनू को देखा तो सारा दृश्य आंखों के सामने से फिल्म की तरह, रिपीट हो गया।)
सोनू किंकर्तव्यविमूढ़ हो, जड़ बना खड़ा रहा।
बबली अब गुस्से में बोली, बता सोनू तू खुद क्यों नहीं मिला, आकर?
मैं तो तुझे पहचान नहीं पा रही थी, जब तो तू छोटा सा था। गोलू मोलू सा था। अब छह फूट का हो गया है। चेहरे पर दाढ़ी आ गई है, इसलिए मुझे थोड़ी कठिनाई हो रही थी पहचानने में।
वो ...दीदी
अब....
अब क्या सोनू बोलेगा भी।
सोनू बड़ी हिम्मत जुटा कर बोला।
दीदी अब माहौल बिगड़ गया है। डरने लगा हूं, क्या पता रिश्ते भी बदल गए हों। इस हिन्दू मुस्लिम की डिबेट में।

सोनू ठिठक जाता है, यह बात कहते कहते।
दीदी, टीवी की डिबेट ने सब कुछ बदल दिया है। बड़ी नफ़रत फैला दी है, लोगों के बीच। घटिया सोच...