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चार साहबजादे
आनंदपुर साहिब किले की वो भीषण लड़ाई
शुरुआत हुई आनंदपुर साहिब के किले से, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी के शूरवीर सिंह और मुगल सेना के बीच कई माह से घमासान युद्ध जारी था.

गुरु गोबिंद सिंह और उनके सिंह हार मानने को तैयार नहीं हैं.

'नन्हीं जानें, महान साका' किताब में लेखक गुरचरण सिंह टौहड़ा लिखते हैं कि ये देख कर औरंगजेब हतप्रभ रह गया.

ऐसे में उसने गुरु जी को एक खत लिखा कि "मैं कुरान की कसम खाता हूं, यदि आप आनंदपुर का किला खाली कर दें, तो आपको बिना किसी रोक-टोक के यहां से जाने दिया जाएगा."

हालांकि गुरु जी को औरंगजेब पर विश्वास नहीं था, लेकिन उन्होंने उसे आजमाने के लिए किला छोड़ देना स्वीकार कर लिया....और बिछड़ गया गुरुजी का परिवार

किले से निकलने की देर ही थी कि मुगल सेना गुरु जी और उनके बहादुर सिंहों पर टूट पड़ी.

सरसा नदी के किनारे एक बार फिर घमासान युद्ध हुआ और इस युद्ध में एक नुकसान यह हुआ कि गुरु जी का पूरा परिवार अलग-थलग हो गया.

गुरु जी के छोटे सुपुत्र साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ चले गए.

बड़े साहिबजादे युद्ध लड़ते-लड़ते गुरु जी के साथ सरसा नदी पार करके रात को रोपड़ नगरी में रहे और तड़के चमकौर साहिब की गढ़ी जा पहुंचे.

छोटे साहिबजादे जब जंगल पार कर रहे थे तो शेर, सांप और कई अन्य जानवर उनके सामने आए, लेकिन वह माता गुजरी जी के साथ बाणी का पाठ करते हुए आगे बढ़ते रहे.
जब गंगू ने किया विश्वासघात

आखिरकार इन्होंने जंगल पार कर ही लिया. रात हो चुकी थी और माता गुजरी और छोटे साहिबजादे एक झोपड़ी में ही रात बिताने लगे.

इस घटना की खबर सुनकर अगले दिन सुबह गुरु जी के लंगर का सेवक गंगू नाम का ब्राह्मण माता जी के पास जा पहुंचा.

वह अपने घर...