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चिट्ठी
#चिट्ठी
लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी।
निकिता काफी दिनों से जानने की कोशिश कर रहीं थीं कि आख़िर क्या था उस चिट्ठी में।

निकिता की नज़रें बार-बार घड़ी की ओर उठतीं और फिर वापस किताब पर टिक जातीं, लेकिन उसका ध्यान पन्नों पर नहीं था। उसका मन बार-बार उसी चिट्ठी पर जा रहा था, जिसने पिछले कुछ दिनों से उसे बेचैन कर रखा था।

तभी उसने हल्की-सी आवाज़ सुनी, उसने सिर उठाया और देखा कि सुप्रिया दरवाजे से अंदर आ रही थी, उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। निकिता की धड़कनें तेज़ हो गईं, और वो अपनी जगह पर सीधी बैठ गई।

सुप्रिया ने पास आकर एक कुर्सी खींची और उसके सामने बैठ गई। उसने अपने बैग से एक मुड़ी-तुड़ी चिट्ठी निकाली और निकिता की ओर बढ़ाई। "ये रही वो चिट्ठी," सुप्रिया ने धीरे से कहा। निकिता ने कांपते हाथों से चिट्ठी ली और उसे खोला।

चिट्ठी के शब्द जैसे ही उसकी आँखों के सामने आए, उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। उसमें एक रहस्यमयी बात लिखी थी, जिसने उसकी ज़िन्दगी को एक नई दिशा में मोड़ दिया।
चिट्ठी में कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं:

"प्रिय निकिता,
अगर तुम यह चिट्ठी पढ़ रही हो, तो इसका मतलब है कि तुम सही रास्ते पर हो। यह एक ऐसी राह है जहाँ सिर्फ़ सवाल नहीं, जवाब भी तुम्हें मिलेंगे। इस किताब की पच्चीसवीं पंक्ति में छुपा है एक सुराग, जो तुम्हें उस सच की ओर ले जाएगा, जिसका तुम्हें सालों से इंतजार था। लेकिन याद रखना, इस सफर में हर जवाब एक नई उलझन के दरवाजे खोलेगा।

तुम्हारी मित्र,
समीरा"