...

1 views

एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।240
असत्यता ही कलि के कलियुग की कलियौता का अवतार अन्त होकर अनन्त अमर अमरणीयिका अमर सकंटी नपुंसकीय आहुतिका का सार अस्तित्व है जो
अन्त शून्यनिका संबोधित हुआ है।।तो कौन सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि है शून्यनिका या नपुंसकीय आहुतिका।।सून्य की योनि व आसीमता ही सर्वप्रथम सर्वोपरि है शून्यनिका श्रेष्ठ है या नपुंसकीय आहुतिका।।इस गाथा में हर चीज का अपना अस्तित्व है और फिर अस्तित्व ना होकर भी वह शून्य होकर शून्यनिका संबोधित होने के बाद भी सर्वप्रथम सर्वोपरि अमरणीयिका नपुंसकीय आहुतिका शून्यनिका होकर संबोधित होती है क्योंकि यहां शरीर का कोई अस्तित्व नहीं बल्कि सिर्फ आत्मा की आसीमता है जिसका जब आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती तब सिर्फ माटी बचती हैं मगर उसका अस्तित्व असत्यता पर ही आधारित है ,जिसका कारण ना वो माटी अस्वच्छ है ना ही उसकी आत्मा अस्वच्छ है , किंतु उसे कलि के कलियुग के संकट अमर सकंटी द्वारा कलि नंपुकीय आहुतिका कलियौता का संचालन करने का कठोर कार्यगत प्राप्त हुआ जिसके चलते यह गाथा सदा सदा के अनन्त होकर निर्विघ्न अन्त में व संभव ना होकर एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त में प्रवेश कर कर्मपोशित कर्मपोटली स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका हो गई और फिर नपुंसक फिर आहुतिका फिर
शून्यनिका संबोधित हो जाती है।।सा असत्य शिव सा सत्य सा शून्य ही शिव सा सुंदर ही शिव...