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आखरी शर्त
#शर्त
चंदन को शर्त लगाना और फिर उसे जीतना बहुत पसंद था। हर बात पर शर्त लगाना उसकी आदत में शुमार हो गया था। इसलिए चंदन को लोग शर्तिया चंदन कह कर बुलाते थे। आज फिर उस ने शर्त लगाई थी आनंद से कि वह बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़ के लायेगा.......!

ऐसा नहीं है की चंदन को ऐसी शर्ते लगाने में कभी कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा था, काफी बार उसको तथा उसके परिवार को उसकी वजह से काफी गहरे संकटों से गुजरना पड़ा था..!
लेकिन इससे वह जितना निडर हो गया, उससे अधिक उद्दंड हो गया था...!

अब तो वह माता पिता की भी सुनने से बाहर हो गया था...!
आखिर उसकी माता ने ही श्राप युक्त चेतावनी दे डाली थी... "जिस दिन तु खुद बेहद भयानक संकट में पड़ जायेगा उसी दिन तेरी आंखे खुलेगी.. किंतु शायद उस दिन ये बताने के लिए भी तु रहेगा की नही भगवान मालिक...!!!"

बहुत गहरी बात बोली थी माई ने... मां का श्राप जायेगा कहां ????

आज फिर उसने शर्त लगाई, शायद आखरी शर्त....!!!!

उस बड़ी हवेली से गांव का हर एक इंसान डरता था... क्यों???? कोई नहीं जानता... इतना की लोगों ने अपने रास्ते भी बदल डाले थे.. या यूं कहो की अपने लिए नए रास्ते बना लिए थे... की हवेली के सामने से या उनकी नजरें हवेली पर पड़े ऐसा कोई रास्ता ही न हो...!

जमींदार की हवेली थी वो... जैसी कल थी वैसी ही आज भी है... ना रंग उतरा न कोई पेड़ पौधा सुखा.. एकदम टकाटक.. बड़ी अच्छी से उसकी व्यवस्था की जा रही हो ऐसे...!

पर जब से जमींदार रसुखलाल, जिनको पुराने लोग 'लालाजी' कहा करते थे... का निधन हुआ तब से उस हवेली से एक एक करके सारे लोग इधर उधर रहने चले गए... उनके ही खानदान के एक वारिस जब की उसी गांव में अन्यत्र स्थानांतरित हो गए थे... आज इस बात को लगभग साठ साल हो गए है.... पर वे भी बड़ी हवेली पर मौन साधे हुए है...!

लोग आज भी मानते है की उसी वारिसदार का शायद वहां व्यवस्थापन है... किंतु वे भी गांववालों को उस ओर जाने से मना करते रहते है..!
सबको उस बंगले को देख कर ही अजीब सा... अनजाना भय अंदर ही अंदर सताता है...!

इसीलिए तो आज चंदन को इस भय से गांव को 'आम लाने' के बहाने मुक्त कराने की शर्त लगी थी...!!!

बड़ी खूबसूरत है यह हवेली, फल फूल के लहलहाते पेड़ पौधों के बीच बड़ी ही खूबसूरत दिखती है...! बस डर इसलिए लगता है की वहां कभी कोई दिखता नहीं... लेकिन चहल पहल बराबर महसूस होती रहती है...!

...... आज निडरता से चंदन ने अंदर जाने का ऐलान कर दिया...!
और निकल पड़ा हवेली की ओर...!

एक दोस्त ने रोकना चाहा.. "चंदन रुक.. आज न जा... फिर कभी चले जाना..!" लेकिन चंदन ना रुका... उल्टा बाकी लोगों ने दोस्त की आवाज को दबा दिया..! दोस्त बोला भी... "लेकिन आज अमावस का दिन है... ऐसी हिम्मत कम से कम आज के दिन तो न करने देनी चाहिए... यदि उसे कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा ???" पर सब ने उसे धमकाकर चुप करा दिया...!

गांव के बाहर की वो बड़ी सी एकांत स्थान की हवेली... उसमें, सालों से लोगों ने उस दिशा की ओर जाना भी छोड़ दिया है.... ! शुरुवात में बड़ा अजीब लगा था चंदन को वहां का नजारा....

जमींदार के क्षेत्र के पहले वाला क्षेत्र बड़ा ही रूखा सूखा कंटीली सूखे पेड़ पौधों से भरा हुआ था.. जैसे सालों से यहां कोई इंसानी हुकूमत ही न रही हो...
लेकिन जैसे ही जमींदार के क्षेत्र में उसने कदम रखा... वहां का वातावरण अजीब से रहस्यों से भरा हुआ लगने लगा... वहाँ का नजारा ऐसा था की.. एकदम हरा भरा... खूबसूरत... फूलों तथा फलों से लहलहाते पेड़ पौधे.. एक मंद लेकिन अजीब सी मादक गंध फैली हुई.. जो अनायास ही इंसान को उस तरफ़ बेबस कर आकर्षित कर ही लेती है...!
चंदन भी आकर्षित हो उस तरफ खींचा जाने लगा.. लेकिन, उस हवेली की दंतकथाएं वह भी सालों से गांववलों से सुन ही रहा था... इसलिए अभी वह काफी सजग था... पेड़ पौधों से लुकते छुपते हुए बढ़ने लगा....,
अचानक उसे ऐसे लगा मानों कोई खुसुरपुसुर कर रहा हो.. "अरे लगता है यहां कोई है... न जाने.. शायद यहां के रखवालदार ही हो...! तो क्या.. मैं डरता हूं क्या????, ...... पर मुझे तो आम चोरी कर के लाने है ना.…. तो इनको पता चले बगैर ही मुझको आम लेने होंगे....!" ऐसा सोच कर चंदन एक पेड़ के पीछे छिप कर टोह लेने लगा कौन है यहां..?? लेकिन दूर दूर तक उसे कोई भी न दिखाई दिया... "अरे..!! शायद मेरा वहम होगा... या शायद कोई मेरी ही तरह आम चोर??" सोच कर उसे हंसी आई...
खुसुरपुसुर की आवाज से जो उसकी धड़कन बढ़ गई थी वो अब शांत हो गयी... ! अब वो वहां छुपकर बैठे प्लान करने लगा की कैसे उसे आम के पेड़ों तक जाना होगा, वैसे भी अभी कुछ खास अंतर तो बचा न था उसमें और आम के पेड़ों में बड़ी मुश्किल से बीस तीस फिट...!

"हां.... , ठीक है मैं ऐसे ही करूंगा...!" कुछ मन में तय करके उसने एक लंबी गहरी सांस ली..! ठीक उसी वक्त किसीने उसके कंधे पे हांथ रख दिया...!
भय की एक लहर उसके सीने में उठी... पलट कर देखा तो एक हट्टा कट्टा मुष्टंडा आदमी जिसके हांथ में मोटी सी लट्ठ थी, उसके कंधे पर हांथ रखे हुए था ।
"ओ तेरी', सब गुड़ गोबर हो गया... आखिर इसने मुझे देख ही लिया... अब क्या करूं??? ठीक है कह देंगे थक गए थे सो विश्राम कर रहे थे...!" ये सोचकर चंदन एकदम रिलेक्स हो गया...! और बड़ी निश्चिंतता से उसकी और देखा... किंतु ये क्या उस आदमी ने बड़े ही विनम्रता से कहा, "अरे आप यहां क्यों बैठे हो"?? आपको विश्राम करना है तो आप हवेली में चलिए वहां विश्राम करें थोड़ा ठीक लगने लगे तब चले जाइएगा । हमें भी आपके आवभगत का अवसर प्रदान करें...!"

"ऐं.... ये क्या ??? ये तो पासा ही उल्टा पड़ गया...! मुझे तो लगा था ये डांट के भागा देगा..! पर यह तो अंदर चलने की, आवभगत का अवसर प्रदान करने की बात कह रहा है...!" चंदन की सोच की भट्टी तेज चलने लगी... "जरूर यह मुझे अंदर ले जा कर कुटेगा...!"

"अरे नहीं... नहीं... आपको तो मालिक स्वयं बड़े स्नेह से बुला रहे है...! आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ की कोई यहां आया और मालिक ने उनकी खातिरदारी किए बगैर छोड़ा हो...! बड़े दयालु है मालिक..!!" मुष्टंडा बोला...
"क्या इसे मेरे मन की बात समझती है??, इसे कैसे पता चला की मैं क्या सोच रहा हूं?? और इनके मालिक को कैसे पता चला की मैं यहां आया हूं या छुपा बैठा हूं".... चंदन..

"अरे बाबूजी आप बड़ा सोचते रहते हो..!! देखिए तो आपके चेहरे की रंगत कितनी उड़ गई है...! ये हमारे बाल अनुभव से सफेद हुए है..! लोगों को देख कर ही समझ जाते है मन में क्या उथल पुथल मची होगी..!! आप निश्चिंतता से चलें आपको अच्छा ही लगेगा...! फिर जब चाहें चले जाना.. जाना चाहें तो...!!"

अब उसकी विनम्रता चंदन के दिमाग पर हावी होने लगी थी...!!
"और वैसे भी, मैं इतने दूर हूं की गांव वालों को मैं दिख भी नही सकता...!! तो क्या हुआ... चुरा के हो... चाहे मांग के हो... मैने आम कैसे लिए ये उन लोगों को क्या पता चलेगा?? इस मुष्टंडे ने देख भी लिया है.. और अपना मजबूत पंजा भी मेरे कंधे से हटा ही नहीं रहा है... अब जो होगा सो होगा.. देखा जायेगा..!!" सोच कर चंदन उसके साथ चलने लगा...!

हवेली जितनी नजदीक आती गई ऐसा लगने लगा मानो स्वर्ग में है वो... एक असीम शांति... पेड़ पौधे.... तरह तरह के सुगंधित फूल तथा फलों से इतने लदे थे की पूछो ही मत..., कुछ कच्चे तो कुछ पके फल थे... पर किसी ने तोड़ा ही नहीं था... शायद इनके लिए ये रोज की बात हुई, इसलिए इसे तोड़ते नहीं हो.. ! इति चंदन की सोच...

एक बड़ा सा दरवाजा किर्र आवाज से खुला तब जा कर उसकी नजर सामने गई... एक पल ऐसा लगा मानो हवेली में बहुत सारे लोग है... या थे... जो दरवाजे की आवाज के साथ एकदम शांत हो गए..!

"बैठिए बाबूजी...!!" एक आलीशान सोफे की तरफ हांथ दिखाकर मुष्टंडा बोला.. !
"मालिक को मैं आपके आने की इत्तिला कर के आता हूं..!" कह कर वह तुरंत चला गया..
"वाह....!!! हवेली कहें की कोई बड़ा, राजा महाराजों का महल कहें ??? एक एक चीज बड़ी खूबसूरती से सजाई हुई है... सब विशाल.... नेत्रदीपक है...!
चंदन चारो ओर नजरें घुमा घुमा कर देख रहा था... "ऐसा महल कोई छोड़के जाता है क्या ?? पता नहीं इनके वारिसों को क्या सूझी ??" चंदन सोच ही रहा था... की... खट - खट की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ...!

आवाज की तरफ वह बड़े गौर से देखने लगा... इतनी निशब्द शांति में वो आवाज बड़ी भयावह लग रही थी... जैसे तैसे अपने को ढाढस बंधाते चंदन देख रहा था... सामने का पर्दा हिला... जैसे अपने आप ही परदे उठे हो... सामने से एक खूबसूरत लगभग पचास पचपन साल के वयस्क आदमी, बड़े महंगे लिबास और गहनों से लदे... हांथ में एक काठी.. जो आधे से ज्यादा सोने तथा हीरे की कशीदाकारी से सजी थी... लेकर बड़ी गंभीर चाल से आने लगे...!
"जरूर ये ही मालिक होंगे और ये ही यहां का कारोबार संभाल रहें होंगे... हो सकता है की बाकी के लोगों के साथ उनका विवाद हो इसलिए बाकी के सारे वारिस यहां नहीं रहते है..!" पच्चीस छब्बीस साल का चंदन सोचता हुए उनके सम्मान में अदब से उठ खड़ा हुआ.. उनको झुक कर प्रणाम किया...!
"अरे आओ आओ बेटा... बैठो... हमें बहुत खुशी हुई की आज हमें मेहमान के आवभगत का अवसर प्राप्त हुआ...!" मालिक बोले..

चंदन को उनका व्यवहार जितना सुखद लगा था उतना अजीब भी...! "इतना बड़ा आदमी.. इतना विनम्र फिर भी लोग न जाने यहां आने से क्यों कतराते है?? खैर मुझे क्या ??" ... चंदन

लेकिन उसके बाद जो हुआ वो सब तो और अचंभे में डालने वाला था.. ।

उसके बाद शुरू हुआ आवभगत का आश्चर्य जनक सिलसिला... जैसे चंदन कोई आम इंसान नही बल्कि कोई महान व्यक्तित्व हो इस तरह उसके साथ व्यवहार हो रहा था.. उसे नहाने के लिए जबरन ही आग्रह किया गया.. जिसे वह ज्यादा देर तक मना नहीं कर पाया.. !
गुसलखाने में ले जाकर इत्र के पानी से, चंदन को ही चंदन आदि लगा के मालिश के साथ नहलाया गया.. फिर वहीं के ऊंचे रेशमी वस्त्र पहनाएं गए... वो भी ऐसे जैसे की उसी के नाप के बने हो.. कुछ जेवर पहनाएं गए.. फिर दो लोग उठाकर खाने की टेबल पर बिठा गए...! मालिक के साथ भोजन... भोज तो ऐसा था की न भूतो न भविष्यति...!
मालिक भी बड़े संतुष्ट लगे हमारे साथ भोजन करने से... बिल्कुल महाराजा जैसा महसूस कर रहा था चंदन...!
बहुत बुरा लगा उसे... की "ऐसे इंसान के बगीचे से आम क्या चुराना??? ये तो खुद ही, एक मांगु तो सौ लाकर देंगे...!! चंदन की सोच ने उसमें पछतावा भर दिया.. नहीं... नहीं... अब चुरा कर नहीं, मांग कर ही ले जाऊंगा आम.. वह भी कितने चाहिए?? सिर्फ दस ही तो ले जाना है..!"
इतने में मालिक ने ताली बजाई... चंदन उस तरफ़ देखने लगा..!
दो नौकर हांथ में बड़े से थाल में अलग अलग तरह के मधुर फल लेकर आ रहे थे... उनसे आ रहे बेहद मीठी खुशबू से इतना भर पेट खाने के बाद भी फलों का आस्वाद लेने के लिए जिव्हा ललचाने लगी..!
"बिल्कुल ऐसे ही तो फल बाहर बाग में लगे थे..! उसमें... ये बड़े बड़े आम भी वहां पेड़ पर लटके हुए आते समय देखा था..!" चंदन सोच ही रहा था.... की मालिक बोल पड़े... "हां... ये हमारे बागीचे के ही फल है.. जिसे तुमने आते हुए देखा होगा ही...??"
" जी... जी बिलकुल.. बहुत ही उत्तम गुणवत्ता वाले फल है आपके बागान में".. चंदन
"हां होंगे क्यों नहीं ??? हमें अपने बागान से बेहद.. अत्याधिक प्रेम.., लगाव.. या यूं कहो की बस मोह है हमारा अपने बगीचे के प्रति...! हम खुद उसका खास ख्याल रखते है...!" ... मालिक

"ओह तो ये बात है...! इसीलिए ये इतने अत्याधिक फलों से लदे दिखते है...!" .... चंदन

"अरे भाई बातें बहुत हुई लो इन फलों का आस्वाद लो...!" मालिक
"जी ... जी..." कहते हुए चंदन लगभग टूट पड़ा था फलों का आस्वाद लेने को..! वह अकेला ही खाता जा रहा था...! थाल लगभग खत्म होने को थी... "बस अब नहीं खाया जायेगा... बहुत छक के खा लिए है...! पर मन है की अब भी नहीं मानता रुकने से...!" ... चंदन
"हां... हमारे फल है ही ऐसे स्वादिष्ट जो एकबार खाएं तो दोबारा किसी फल को खा ही नहीं पाता है..!" मालिक ये कह कर बेहद पहाड़ी आवाज में ठहाके लगाकर हंस पड़े थे..!
वो हंसी चंदन को कुछ सही नहीं लगी... सीने में हल्की दर्द की लकीर उठ गई...! पर अपने सोच को झटक दिया था उसने....!

"उफ्फ न जाने कितना वक्त बीत गया... मुझे अब चलना चाहिए..! चंदन को अचानक याद आया की वह बहुत समय से वहां आया हुआ है.. और अब उसे वहां से चलना चाहिए... !

पर इतना खा चुका था की न पैर उसे इजाजत दे रहे थे न पेट ना ही सिर...! अब तो आंखों में नींद भी भरने लगी थी...!

फिर भी उसने मालिक की इजाजत लेनी चाही... "जी अब मुझे चलना चाहिए...! न जाने कितना समय बीत चुका है...! अरे हां... आपसे एक गुजारिश थी...!!" चंदन
"बोलो बेटा जरूर बोलो हम तुम्हारी पूरी सहायता करेंगे... हमारा सौभाग्य रहेगा.. वैसे भी अब तो तुम हमारे अपने हो गए हो...!!"

" जी... वो... मुझे आपके बागीचे के कुछ आम चाहिए थे...! दरअसल अब आपसे क्या झूठ बोलना.... मैने किसी से शर्त लगाई थी की आपके अर्थात इस हवेली के बागीचे के आम चुरा लाऊंगा... किंतु आपसे मिल कर चोरी करना सही नहीं लगता है इसलिए आपसे विनती करता हूं..!"... चंदन
" अरे बेटा ये क्या कह रहे हो... ये पूरा बागीचा ही आज से तुम्हारा अपना है... तुम यहां के ही हो... तुम एक क्या सारे के सारे आम ले जाओ हमें कोई आपत्ति नहीं है...! पर बेटा इतनी भी क्या जल्दी है??? देखो एक तो तुम थके हारे यहां आए थे.. और अभी भरपेट भोजन और फल आस्वाद भी ले चुके हो.. तो देखो तुम्हारे चेहरे से थकान साफ झलक रही है... तुम एक काम करो... थोड़ी देर विश्रांति ले लो.. फिर ले लेना चाहे जितने आम या सारे के सारे फल...!"... मालिक
चंदन बेहद खुश और संतुष्ट हो गया था... आज उसने जैसे सबसे बड़ी शर्त जीत ली थी..!
हां...!! भारी भोजन और फलों से सही में थकान बहुत हो गई है... एक बढ़िया झपकी की जरूरत तो वास्तव में है..!
" जाओ बेटा अब तुम विश्रांति ले लो हम थोड़ी देर बाद फिर मिलते है...! और अब तो हमारा मिलना हमेशा का हो गया है...!! ठीक है?? अब जाओ विश्रांति लो...!" कहते हुए मालिक ने नौकर की ओर इशारा किया... नौकर ने एक दिशा की तरफ हांथ करते हुए चंदन को उधर चलने को कहा... चंदन, अब बहुत भारी सा पेट लेकर जैसे तैसे लगभग लड़खड़ाते हुए एक कमरे की तरफ गया...!
"वा...ह.. !!! बेहद खूबसूरत कमरा है, स्वर्ग जैसा.. या उससे भी अधिक सुंदर...!" बिस्तर पर बैठते ही... इतना मुलायम गद्दा तो उसने अपनी जिंदगी में कभी छुआ तो क्या नजरों ने कभी देखा भी नहीं है..। ये विचार करते ही चंदन ने अपने को बिस्तर पर धड़ाम से झोंक दिया था..! नींद भी जैसे उसके बिस्तर पर लेटने का ही इंतजार कर रही थी..!

अभी अभी उसकी आंख लगी ही थी की ऐसा लगा मानों कहीं दूर से किसी की बातें सुनाई पड़ रही है... !
"लालाजी... गुलाम पूरी तरह तैयार है..!"
"ला... ला...जी...??" ये नाम सुना सुना सा लग रहा है..!! चंदन सोचने लगा...पर दिमाग ज्यादा साथ न दे रहा था.. !

..... हल्के हल्के उसे होश आने लगा... "पता नहीं अभी अभी कुछ सुना... न जाने मैं कितना सो गया ???...."
दिमाग में जैसे करंट दौड़ा हो, एक झटके में उसकी आंख खुली...! अब उसे बहुत हल्का महसूस हो रहा था...! जैसे वह हवा में तैर रहा हो...!!
इतना की शायद उसका बदन ही हवा हों गया हो...!!!

"टक - टक " दरवाजे पर दस्तक हुई..

कौन??

"मालिक जानना चाहते थे की आपका विश्राम हुआ की नही ?? आप काफी समय से जो सो रहे है" ... नौकर

क्या ?? चंदन...
अब जैसे उसकी सारी बेहोशी खत्म हो चुकी थी..!
"हां .. हां... मैं अभी बाहर आता हूं !" कहकर चंदन उठ बैठा...!

उसे अपने जीवन में कभी नहीं लगी ऐसी खुशी, हल्का पन, आनंद वाला एहसास उसे हुए जा रहा था.. पर मालिक इंतजार कर रहे होंगे ये सोच कर वो जल्दी से उठ कर फ्रेश होकर बाहर आया... मालिक बेहद संजीदगी से हंसमुख हो उसका इंतजार कर रहे थे.. "आओ... आओ ... बेटा जलपान करते है...!"
"जी... जी... ! लेकिन अब मैं तुरंत चला जाना चाहता हूं !
"बिल्कुल चले जाना... चायपान कर लो और हां जाते समय आम जरूर लेते जाना ठीक है???" एकदम ठहाके लगाकर वे हंस दिए थे...!

इसबार भी ये हंसी उसको कुछ जम नहीं पाई थी..
"खैर.... मुझे क्या ??" सोच कर जल्दी फल्दी उसने चाय समाप्त की... और उनसे विदा ली...
" जी अब चलता हूं...! आपके आवभगत के लिए मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं...!" कहकर चंदन निकलने को हुआ...
"अरे भाई तुम तो बहुत तकल्लुफ की बात करते हो..! हमने कहा ना की अब तुम हमारे हो..! तो बिकुल तकल्लुफ की बात न करो...! और हां फल जरूर ले लेना... ठीक है??" कहकर एकबार फिर पहाड़ी हास्य करते हुए वे वहां से निकल गए ।

चंदन वहां से उठा और खुशियों से लगभग दौड़ता हुआ... नहीं.. नहीं... लगभग हवा में उड़ता हुआ.. बागीचे की तरफ लपका...आज के भी ' शर्त की जीत' में..... जल्द से जल्द फल तोड़ने लगा... उसे सबको अपनी जीत जो दिखानी थी ... इतना ही नहीं तो इस बंगले से जुड़े सारे डर कितने बेवजूद है ये भी बताना था...! कितने विनयशील और बड़े दिल वाले है यहां के मालिक... क्या नाम सुना था तब... शायद.... ला.. ला...जी....!!" ये सोचते सोचते वह आम के पेड़ के पास पहुंच चुका था... ! पेड़ पर लदे पके, सुगंध से पागल करने वाले आम देख कर वह भूल गया की वह क्या सोच रहा था... ! उसने अब चुन चुन के बड़े बड़े आम तोड़ने का कार्य प्रारंभ किया...

पर ये क्या ??? जैसे जैसे एक एक आम टूटता जाता उसका बदन और ... और हल्का होता गया... जैसे ही उसने दसवां आम तोड़ा उसे महसूस हुआ की उसका शरीर भी इस पेड़ पर लदे आमों की तरह आम बनकर लटक गया है...! उसने अपने को छुड़ाने की बहुत कोशिश की...! बहुत चीखा चिल्लाया... किंतु आवाज जैसे उसके गले के गलें में ही घूमती रह गई थी..!

सारे तोड़े आम अब हवा में तैरते हुए फिर से अपनी अपनी जगह पेड़ को जा कर चिपक चुके थे....!

अचानक सब तरफ घना अंधेरा छा गया था..!

जैसे ...... एक गहन चिरनिद्रा से.... भयानक तंद्रा से उसकी आंख खुली हो ... या कोई भयानक सपना देखा हो...!
अचानक किसी तेज आवाज ने उसे झकझोर दिया... कोई उसे हिलाते हुए बुला रहा था... !
"ऐ चल.... मालिक तुम्हे बुला रहे है... कोई नया बंदा बगीचे में घुस आया है... अब सेवा करने की तुम्हारी बारी है....!

पेड़ पर आम की तरह लटका चंदन पेड़ से टूट कर नीचे गिरा..... और इंसानी भेस बनाकर दौड़ा मालिक की तरफ...

"जी लालाजी... क्या आज्ञा है..?? आपका गुलाम हाज़िर है !"
........ ........

गांव वाले आज भी शर्तिया चंदन की शर्त की आदतों पर कहानियां सुनाते हुए पाएं जाते है...! शर्तिया चंदन सबके लिए एक सबक का रूप ले चुका है...!
अब गांव में कोई भी शर्त लगाते नहीं है..!

क्योंकि मां का श्राप सत्य हो चुका है...!
(समाप्त).
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