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आखरी शर्त
#शर्त
चंदन को शर्त लगाना और फिर उसे जीतना बहुत पसंद था। हर बात पर शर्त लगाना उसकी आदत में शुमार हो गया था। इसलिए चंदन को लोग शर्तिया चंदन कह कर बुलाते थे। आज फिर उस ने शर्त लगाई थी आनंद से कि वह बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़ के लायेगा.......!

ऐसा नहीं है की चंदन को ऐसी शर्ते लगाने में कभी कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा था, काफी बार उसको तथा उसके परिवार को उसकी वजह से काफी गहरे संकटों से गुजरना पड़ा था..!
लेकिन इससे वह जितना निडर हो गया, उससे अधिक उद्दंड हो गया था...!

अब तो वह माता पिता की भी सुनने से बाहर हो गया था...!
आखिर उसकी माता ने ही श्राप युक्त चेतावनी दे डाली थी... "जिस दिन तु खुद बेहद भयानक संकट में पड़ जायेगा उसी दिन तेरी आंखे खुलेगी.. किंतु शायद उस दिन ये बताने के लिए भी तु रहेगा की नही भगवान मालिक...!!!"

बहुत गहरी बात बोली थी माई ने... मां का श्राप जायेगा कहां ????

आज फिर उसने शर्त लगाई, शायद आखरी शर्त....!!!!

उस बड़ी हवेली से गांव का हर एक इंसान डरता था... क्यों???? कोई नहीं जानता... इतना की लोगों ने अपने रास्ते भी बदल डाले थे.. या यूं कहो की अपने लिए नए रास्ते बना लिए थे... की हवेली के सामने से या उनकी नजरें हवेली पर पड़े ऐसा कोई रास्ता ही न हो...!

जमींदार की हवेली थी वो... जैसी कल थी वैसी ही आज भी है... ना रंग उतरा न कोई पेड़ पौधा सुखा.. एकदम टकाटक.. बड़ी अच्छी से उसकी व्यवस्था की जा रही हो ऐसे...!

पर जब से जमींदार रसुखलाल, जिनको पुराने लोग 'लालाजी' कहा करते थे... का निधन हुआ तब से उस हवेली से एक एक करके सारे लोग इधर उधर रहने चले गए... उनके ही खानदान के एक वारिस जब की उसी गांव में अन्यत्र स्थानांतरित हो गए थे... आज इस बात को लगभग साठ साल हो गए है.... पर वे भी बड़ी हवेली पर मौन साधे हुए है...!

लोग आज भी मानते है की उसी वारिसदार का शायद वहां व्यवस्थापन है... किंतु वे भी गांववालों को उस ओर जाने से मना करते रहते है..!
सबको उस बंगले को देख कर ही अजीब सा... अनजाना भय अंदर ही अंदर सताता है...!

इसीलिए तो आज चंदन को इस भय से गांव को 'आम लाने' के बहाने मुक्त कराने की शर्त लगी थी...!!!

बड़ी खूबसूरत है यह हवेली, फल फूल के लहलहाते पेड़ पौधों के बीच बड़ी ही खूबसूरत दिखती है...! बस डर इसलिए लगता है की वहां कभी कोई दिखता नहीं... लेकिन चहल पहल बराबर महसूस होती रहती है...!

...... आज निडरता से चंदन ने अंदर जाने का ऐलान कर दिया...!
और निकल पड़ा हवेली की ओर...!

एक दोस्त ने रोकना चाहा.. "चंदन रुक.. आज न जा... फिर कभी चले जाना..!" लेकिन चंदन ना रुका... उल्टा बाकी लोगों ने दोस्त की आवाज को दबा दिया..! दोस्त बोला भी... "लेकिन आज अमावस का दिन है... ऐसी हिम्मत कम से कम आज के दिन तो न करने देनी चाहिए... यदि उसे कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा ???" पर सब ने उसे धमकाकर चुप करा दिया...!

गांव के बाहर की वो बड़ी सी एकांत स्थान की हवेली... उसमें, सालों से लोगों ने उस दिशा की ओर जाना भी छोड़ दिया है.... ! शुरुवात में बड़ा अजीब लगा था चंदन को वहां का नजारा....

जमींदार के क्षेत्र के पहले वाला क्षेत्र बड़ा ही रूखा सूखा कंटीली सूखे पेड़ पौधों से भरा हुआ था.. जैसे सालों से यहां कोई इंसानी हुकूमत ही न रही हो...
लेकिन जैसे ही जमींदार के क्षेत्र में उसने कदम रखा... वहां का वातावरण अजीब से रहस्यों से भरा हुआ लगने लगा... वहाँ का नजारा ऐसा था की.. एकदम हरा भरा... खूबसूरत... फूलों तथा फलों से लहलहाते पेड़ पौधे.. एक मंद लेकिन अजीब सी मादक गंध फैली हुई.. जो अनायास ही इंसान को उस तरफ़ बेबस कर आकर्षित कर ही लेती है...!
चंदन भी आकर्षित हो उस तरफ खींचा जाने लगा.. लेकिन, उस हवेली की दंतकथाएं वह भी सालों से गांववलों से सुन ही रहा था... इसलिए अभी वह काफी सजग था... पेड़ पौधों से लुकते छुपते हुए बढ़ने लगा....,
अचानक उसे ऐसे लगा मानों कोई खुसुरपुसुर कर रहा हो.. "अरे लगता है यहां कोई है... न जाने.. शायद यहां के रखवालदार ही हो...! तो क्या.. मैं डरता हूं क्या????, ...... पर मुझे तो आम चोरी कर के लाने है ना.…. तो इनको पता चले बगैर ही मुझको आम लेने होंगे....!" ऐसा सोच कर चंदन एक पेड़ के पीछे छिप कर टोह लेने लगा कौन है यहां..?? लेकिन दूर दूर तक उसे कोई भी न दिखाई दिया... "अरे..!! शायद मेरा वहम होगा... या शायद कोई मेरी ही तरह आम चोर??" सोच कर उसे हंसी आई...
खुसुरपुसुर की आवाज से जो उसकी धड़कन बढ़ गई थी वो अब शांत हो गयी... ! अब वो वहां छुपकर बैठे प्लान करने लगा की कैसे उसे आम के पेड़ों तक जाना...