...

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जमीं को चला
तुम शिखर पर रहो ,मैं जमीं को चला
बर्फ बन कर रहा अब पानी हो चला
ताप जीवन का सारा लिये जा रहा
जिस जगह था बना फिर वहीं को चला

बहते-बहते धरा पर था गगन को चला
ताप लेकर धरा का था पवन से मिला
जाने कितने किनारों से लौटा हूँ मैं
जाने कितने गुलिस्तां चमन कर चला

© Akash dey