जमीं को चला
तुम शिखर पर रहो ,मैं जमीं को चला
बर्फ बन कर रहा अब पानी हो चला
ताप जीवन का सारा लिये जा रहा
जिस जगह था बना फिर वहीं को चला
बहते-बहते धरा पर था गगन को चला
ताप लेकर धरा का था पवन से मिला
जाने कितने किनारों से लौटा हूँ मैं
जाने कितने गुलिस्तां चमन कर चला
© Akash dey
बर्फ बन कर रहा अब पानी हो चला
ताप जीवन का सारा लिये जा रहा
जिस जगह था बना फिर वहीं को चला
बहते-बहते धरा पर था गगन को चला
ताप लेकर धरा का था पवन से मिला
जाने कितने किनारों से लौटा हूँ मैं
जाने कितने गुलिस्तां चमन कर चला
© Akash dey
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