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अधूरे प्यार की डगर
प्रस्तावना:

कुछ कहानियाँ सिर्फ शब्दों में नहीं, दिल की धड़कनों में बसती हैं। वे न तो पूरी होती हैं और न ही भुलाई जा सकती हैं। यह कहानी भी ऐसी ही एक अधूरी मोहब्बत की है, जहाँ दिल तो जुड़ते हैं, लेकिन हालात और समाज की दीवारें उनके रास्ते में खड़ी हो जाती हैं।

शहर की एक सजी-संवरी लड़की और गांव से आया एक साधारण टैक्सी ड्राइवर, जिनकी मुलाकातें रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं। इन छोटी-छोटी मुलाकातों में पनपता है एक अनकहा रिश्ता, जो कभी नाम नहीं पाता। यह कहानी है उन ख्वाबों की, जो कभी हकीकत नहीं बनते, और उन एहसासों की, जो दिल के किसी कोने में हमेशा के लिए बस जाते हैं।

"कुछ रिश्ते अधूरे होकर भी मुकम्मल लगते हैं, क्योंकि उनमें सच्चाई का एक टुकड़ा हमेशा रहता है।"


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भाग 1: पहली मुलाकात

शहर की सुबह हल्की ठंडक लिए हुए थी। आयुषी हर दिन की तरह अपने ऑफिस के लिए निकलने वाली थी। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं, क्योंकि आज उसे एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर प्रेजेंटेशन देना था। घर से बाहर निकलते वक्त उसे अहसास हुआ कि उसकी गाड़ी का ड्राइवर नहीं आया है। वह हड़बड़ी में गली के नुक्कड़ तक दौड़ी, जहां अक्सर टैक्सियां खड़ी होती थीं।

वहां, एक मामूली सी लेकिन चमचमाती हुई टैक्सी खड़ी थी। टैक्सी के बाहर खड़ा एक युवक मोबाइल पर बात कर रहा था। उसकी कद-काठी औसत थी, लेकिन चेहरे पर गहरी सादगी और आत्मविश्वास झलक रहा था।...