...

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see you tomorrow
चलो, तुम्हें घर तक छोड़ दूँ?
हाहा, अरे नहीं, बस इस गली के आख़िर में ही तो है, देखो यहाँ से किवाड़ दिख भी रहा है, मैं चली जाऊँगी।

उस सर्द सन्नाटें में तैरते बादलों के बीच चाँद भी असमंजस में था।

मैंने उससे कहा, ‘कुछ कहो भी’
‘और कितनी देर रुक सकती हो तुम?’
दस मिनट और 😊
तुरंत ही उसने कलाई पे बंधी घड़ी पे नज़र डाली और कहा, ‘ठीक है, हो सके तो कल शाम जल्दी आना।’

ना जाने क्यों मैंने सुन लिया उसके ‘ठीक है’ के पीछे छुपा ‘काश’
ना जाने क्यूँ उसने मेरी मुस्कान को हाँ समझ लिया

मैं जाने लगी, दस मिनिट भी खतम हो गया
फिर बादलों ने पूरी गली को स्याह कर दिया

जाते वक़्त गले लगाने का रिवाज सिर्फ़ सिनेमा में होता है, असल ज़िंदगी में सिर्फ़ संकोच मिलता है।

मैंने पलट के तो नहीं देखा, लेकिन मेरा दिल बखूबी जानता था कि वो बिजली के खंभे से टिका खड़ा मुझे जाते हुए देख रहा है।

मेरे घर पहुँचते ही उसका मेसेज आ गया, ‘पहुँच गयी?’
एक पल के लिये मैंने फ़ोन को सीने से लगाया और कहा, ‘हाँ’
‘see you tomorrow’,
मैं जवाब दे कर इस मुलाक़ात को पूरा नहीं करना चाहती थी, अधूरेपन की ज़िंदगी लम्बी सी लगती है,
मैं चाहती थी एक और कल,
एक आज जैसा,
एक और कल, कुछ अधूरे सा, कुछ पूरे जैसा,
मैं बाँधना चाहती थी उम्मीद के धागे उसके कहे इन शब्दों पे,
मैं उगाना चाहती थी अपना सूरज इंतज़ार उसकी आँखों में देखते हुए।

Romantic #loveislove