बुरा न मानो होली है
बुरा न मानो होली है---- एक गोष्ठी में सभा के मुख्य वक्ता ने अपना लंबा भाषण एक सवाल से कुछ इसतरह से शुरू किया -- मैं साहित्य क्यों लिखता हूँ ? और फिर इसके जवाब में वह आँखें मुंदकर घंटों धाराप्रवाह बोलते चले गये । वह बोले-- 'तुलसीदास जी ने मानस में लिखा है-स्वांत: सुखाय रघुनाथगाथा । मुझे भी लगता है कि...