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जन्मदिन
जोकर वाली टोपी, नए कपड़े, चेहरे पर मुस्कान, हाथ में वो प्लॉस्टिक का छोटा सा चाकू,मेज पर केक और सामने ढेर सारे बच्चे और मेहमान, लाइट्स से सज़ा हुआ कमरा, कमरे की दीवारों पर तरह - तरह के गुब्बारे; ऐसा होता है कुछ आज के ज़माने में जन्मदिन का उत्सव।
पर क्या आप को याद है अपना बचपना?
हम क्या करते थे अपने बचपने में?
चलिए हम अपने बचपन की बात बताते हैं आपको_
हमारे बचपने में तो एक पंडित जी आकर कथा कहते थे, दावत दी जाती थी, दान किया जाता था, सभी लोग ठीक १० बजे आ जाते थे।हम बच्चों को पूरी छूट रहती थी उस दिन।
हमारा बचपन कुछ यूं पागलपन भरा होता था ।
और हम अपने बड़ों से सुनते थे कि आज के दिन हम पूरे एक साल बड़े हो जाते हैं।
यही सोच कर हम रात में ही अपने बिस्तर पर ४-५ तकिया लगाकर लेटते थे ,यह देखने के लिए कि कितना बढ़ते हैं? नतीजें का अंदाज़ा तो आप भी लगा सकते है कि कितना बढ़े होंगे!
हमारी बातें आपको रोमांचक लग सकती है पर ये पूरी तरह सच है।
सच मुच बचपना तो तभी था, वरना अब के बच्चे तो बड़ो से भी बड़े हो गए है।
वैसे वक्त के बदलना भी जायज़ है।
क्या बदला है ये मायने नहीं रखता , मायने रखता है अगर कुछ तो है खुशियां।
मज़ा तब भी बहुत आता था और अब भी बहुत आता है।
अच्छा एक और बात , क्या आपको नहीं लगता कि जन्मदिन किसी एक का नहीं बल्कि सबका होता है,सबके चेहरे पर वहीं मुस्कान, वही खिलखलता चेहरा ,सभी चहकते हुए _ बच्चे ,दोस्त और मेहमान। भाई हमें तो यही लगता है कि उस दिन सबका जन्मदिन होता है।
अच्छा अब शुभकामनाएं भी दे दी जाए_
"जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं और आपका बहुत बहुत आभार जो हमें आमंत्रित किया ,आपके जन्मदिन में शामिल होकर हमे हमारा बचपना और जन्मदिन दोनों याद आ गया।बहुत बहुत आभार!!"
© ख़ुशी🦋