...

3 views

सत्संग
सृजनपल्ली नाम का एक गांव था।उस गांव में शिवानंद जी नाम एक सात्विक, अध्यात्मिक तथा दयालु रहते थे। शिवानंद जी उस गांव के मुखिया भी थे। गांव के मध्यभाग में बहुत बड़ा
सुंदर घर था। गांव का विकास तथा विविध अभिवृद्धि कार्यों में उनका बहुत योगदान रहता था, और अपने हाथ से जितना हो सके उतना, गांव कि तरक्की तथा एकता, सद्भावना के लिए कुछ ना कुछ अध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं क्रिडा जैसे अपने नेतृत्व आयोजन किया करते थे। ऐसे गौरवान्वित शिवानंद जी बात हर कोई मानता था शिवानंद सिर्फ मुखिया नहीं बल्कि गांव के छोटे बडे झगड़ों को मिटाकर, सही न्याय भी करते थे।वह प्रामाणिकता तथा न्यायमूर्ति के लिए जाने जाते थे। शिवानंद जी कि पत्नी पद्मिनी भी एक बड़े व्यापारी कि बेटी थी,वह पुजा पाठ और घर कामकाज करती थी। पद्मिनी बड़े व्यापारी की बेटी होने का थोड़ा सा घमंड था ।घर के नौकर-चाकर तथा अपने से कम लोगों के साथ दर्प से व्यवहार करती थी।
एक दिन सृजनपल्ली गांव में संचार करते करते सिद्धनाथ नाम के संत आ गए।यह बात गांव वालों ने मुखिया शिवानंद जी को बताया। शिवानंद जी यह बात सुनते ही, अपने पैरों में चप्पल पहने बीना, वैसे ही संत जी के पास दौड़ते चले आए।उनको प्रणाम कर , उनको अपने गांव में कुछ दिन रहकर, गांव के लोगों को प्रबोधन करने कि विनंती की। शिवानंद जी सात्विक भाव तथा विनम्रता देखकर,संत सिद्धनाथ जी एक हफ्ता सृजनपल्ली गांव में रहकर प्रवचन देने के लिए मान गए। गांव वालों को बहुत आनंद हुआ। मुखिया और गांव वाले मिलकर उनकी रहने के लिए एक मंदिर में वास्तव तथा प्रवचन के लिए पाठशाला के परिसर में आयोजन किया।
संत सिद्धनाथ जी की दिनचर्या एक विशेष थी। संत जी समय के पक्के प्रतिपालक भी थे।संत जी रोज ब्रम्ही मुहुर्त में उठते, कुछ घंटे ध्यान एवं योग साधना करते थे और उसके बाद वायुविहार करते थे, वायु विहार पश्चात नदी में स्नान करके आते थे। मंदिर में पुजा अर्चना करते थे। सुबह-सुबह ही एक घंटा अध्यात्मिक,सामाजिक तथा प्रकृति की विषयों पर प्रवचन देना, उसके...