बड़ी हवेली (खोपड़ी का कहर)
डायरी पढ़ते पढ़ते कब सुबह हो गई तन्नू को इस बात का पता ही नहीं चला, सुबह उसकी पलकें भारी हो जाने के कारण उसे नींद आ जाती है। सपने में उसकी आँखों के सामने उस डायरी की कहानी के दृश्य चलते हैं, तभी शहनाज़ वहाँ पहुँच कर, खिड़कियों पर टंगे परदों को सरकाती है, गुड मॉर्निंग, नवाब साहब", शहनाज़ ज़ोर से कहती है।
तनवीर (तन्नू) की नींद खुलती है," ओह तुम, थोड़ी देर और सोने दो न प्लीज़ ", तन्नू शहनाज़ से कहता है।
" आज मोती झील जाने का प्लान बनाया था, भूल गए क्या, तुमने मेरे छोटे भाई हैदर को कानपुर घुमाने का वादा किया था और वह डाइनिंग टेबल पर ब्रेक फास्ट के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहा है ", शहनाज़ अपनी बात पूरी करती है।
" मुझे 10 मिनट दो मैं तैयार होकर आता हूँ", तन्नू कहते ही सीधे बाथरूम की ओर फ्रेश होने चला जाता है।
नाश्ते के बाद तन्नू, हैदर को अपने वालिद की कार से कानपुर घुमाने ले जाता है। काफ़ी घूम कर खिलौने और सामान खरीदने के बाद दोनों गाड़ी की ओर बढ़ ही रहे थे कि तनवीर की नज़र एक लड़की पर पड़ती है," यह यहाँ.... ये तो निहारिका है, ये यहाँ पर क्या कर रही है, इसे तो अपने गांव में होना चाहिए था। इसका पीछा करना पड़ेगा, आखिर ये कौन सी नई पहेली है, इसका पता तो लगाना ही पड़ेगा," तनवीर अपने मन में कहता है ।
तनवीर हैदर को सामान सहित अपने हाथों से पकड़ उठा लेता है और जल्दी से अपनी कार की तरफ लपकता है।
निहारिका सामने रोड क्रॉस कर रही थी। तनवीर बिना देरी किए रोड क्रॉस कर, गाड़ी उसके पीछे पीछे चलाने लगता है।
अब तक निहारिका की नज़र तनवीर पर नहीं पड़ी थी, वो एक अस्पताल के अंदर चली जाती है। तनवीर भी गाड़ी पार्क करके अस्पताल के अंदर चला जाता है, हैदर भी उसके साथ ही था।
अस्पताल के कुछ कमरों में देखने के बाद निहारिका उसे दिखती है, वो अस्पताल में किसी मरीज़ को देखने पहुंची थी, तनवीर को अपने सामने देखकर पहले तो वह थोड़ा चौंक जाती है फिर बाद में तनवीर को बाहर आने का इशारा कर कॉरिडोर की तरफ चल पड़ती है।
तन्नू अपने साथ हैदर को लेकर उसके पीछे चल देता है, बाहर जाकर निहारिका उसे बताती है कि उसके पिता जो अन्दर बेहोश पड़े हैं नैनीताल के फ़ार्म हाउस की देखभाल करते थे, वह तनवीर को बताती है कि उसे झूठ बोल कर तनवीर के यहाँ नौकरानी का काम करना पड़ा क्यूँकि उसकी वजह वो कमांडर का कटा हुआ सिर है।
तनवीर उसे सारी बातें विस्तार से बताने को कहता है।
"मेरा नाम उर्मिला है, मैं आपके पिता द्वारा रखे गए फ़ार्म हाउस के केयर टेकर की बेटी हूँ, मैं पढ़ी लिखी हूँ और बी. ए फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूँ। हम लोग नैनीताल में बड़ी हंसी खुशी जीवन बिता रहे थे। एक दिन आपके वालिद वहाँ पहुँचे उनके हाथों में वज़न दार छोटा संदूक था। साथ में कुछ पुरातत्व से संबंधित कलाकृतियां थीं।
फ़ार्म हाउस के माली और नौकरों ने मिलकर सामान उनके कमरे में रखवा दिया। वह ज़्यादातर समय अकेले ही बिताते थे, वो वहाँ दो दिन रुके थे, अपने जाने से पहले उन्होंने अपने कमरे का ताला ख़ुद बंद किया और चाभी मेरे पिता जी को दे दी।
ऐसे तो कभी आपके वालिद के कमरे को हाँथ नहीं लगाया जाता था, पर आपके वालिद को गुज़रे हुए जब काफ़ी साल बीत गए। तो एक दिन फ़ार्म हाउस को फिर से पेंट करने का फैसला लिया गया, क्यूँकि दीवारों से पानी रिसने लगा था ऐसा पहली बार हो रहा था इतने सालों में। आपके पिता के कमरे की दीवारों पर भी पेंट करने का फैसला किया गया, उनके कमरे का ताला खोला गया और अंदर जाकर साफ़ सफ़ाई शुरू हुई, पहले दो दिन तो सबकुछ ठीक था, फिर आपके पिताजी का कमरा खोल कर ही रखा जाने लगा क्यूँकि पेंट करने का काम तब भी चालू था ।
पर एक रात जब सभी अपने अपने कमरों में सो रहे थे, तभी अचानक मेरे पिताजी अपने बिस्तर से उठ सीधे आपके पिताजी के कमरे की ओर चल दिए। ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें नींद में कोई पूकार रहा हो और उन्हें उस कमरे तक लेकर गया। उस रात मैं अपनी खिड़की के सामने स्टडी टेबल पर बैठकर अगले दिन होने वाले अपने पेपर की तैयारी कर रही थी, खिड़की से आपके पिताजी का कमरा साफ़ दिखता है जो ठीक नीचे है, मैंने देखा कि मेरे पिताजी अंदर गए और वहां एक ओर लटकी शेर की तस्वीर के सामने जाकर खड़े हो गए, फिर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद उन्होंने उस तस्वीर को हटाया। उसके पीछे एक दीवार पर बनी अलमारी में संदूक रखा हुआ मिला।
मेरे पिताजी ने संदूक को नीचे उतारा और पास ही एक टेबल पर रख दिया। उसे हेयर पिन की मदद से खोल उसके अंदर से एक कपड़े के झोले जैसे बटुए को बाहर निकाला, फिर उसकी रस्सी ढीली कर जैसे ही अंदर देखा तो तेज़ लाल रोशनी चमकी, मेरे पिताजी बेहोश होकर वहीं गिर पड़े , कपड़े का बटुआ हाँथ से नीचे गिर चुका था।
मैं भागते हुए उस कमरे में पहुंची तो देखा कि उस बटुए के अंदर का सामान बाहर नहीं निकला था लेकिन रोशनी फिर भी जल रही थी।
अपने पिता जी को उठाने जैसे ही मैं आगे बढ़ी तो इतने में एक आवाज़ सुनाई पड़ी, "इन द नेम ऑफ द क्वीन , आखिर कमांडर ब्राड शॉ रोउडी जाग ही गया। सुनो लड़की ये तुम्हारा बाप अभी मरा नहीं है, आँखो पर रोशनी की चमक से बेहोश हुआ है और ऐसा ही रहेगा जब तक तुम हमारा बाकी का बॉडी का मदद नहीं करता है, तुमको करना ये है कि कानपुर के बड़ी हवेली के तहखाने पर लटकी ताविज़ और जंजीरे हटा देना है, जिससे मेरा शरीर वहाँ टहल सके और लोगों में खौफ़ पैदा हो जाए।
किसी को पता नहीं चल पाए कि तुम कौन हो, वहां तुम्हें रहना पड़ेगा फ़िर जो तुम देखोगी या सुनोगी, हम यहाँ बंद संदूक में देखेंगे और सुनेंगे , अगर कोई होशियारी दिखाई तो तुम्हारा बाप अब भी मेरे ही कब्जे में है जब चाहें इसकी जान ले लें। अब बैठे हुए.... क्या देखता और सुनता है, इधर आ कर हमारा खोपड़ी को उठाओ और इज़्ज़त के साथ संदूक में वापस रख दो"।
पहले तो मैं डर गई फिर थोड़ी हिम्मत उसकी बातों को सुनकर मिली, ऐसा लगा वो जो भी है मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएगा सो मैंने वही किया जो उसने कहा मैंने उसे संदूक के अंदर बंद कर उसी जगह पर रख दिया और वही तस्वीर उस जगह को छुपाने के लिए दीवार पर लटका दी।
इस हादसे के बाद मेरे पिताजी की हालत गंभीर हो गई, बहुत इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ, फिर हम सब यहाँ चले आए और मैंने उसकी बताई हुई योजना को मजबूरी में अंजाम दिया। मैं आपके यहाँ हवेली पर दो बार नौकरानी के रूप में काम कर चुकीं हूँ, एक बार नन्दनी के रूप में जब पहली बार मैंने वहाँ आप लोगों के रहने से पहले नौकरानी का काम कर तहखाने पर लटके ताविज़ और जंजीरों को हटाया और उस कमांडर के धड़ कि मदद की। जिससे उसका बिना सिर का शरीर हवेली में इधर-उधर टहलने लगा, नौकरों में दहशत फैल गई और नौकर नौकरी छोड़ कर जाने लगे, कुछ दिनों बाद मैंने भी काम छोड़ दिया।
आपकी अम्मी के आने से पहले एक बार फिर वहां झाड़ फूंक करवाई गई और एक बार फिर से उस तहखाने को ताविज़ और जंजीरों से बांध दिया गया इसलिए इस बार निहारिका का रूप लेना पड़ा।
मैं क्या करूं नवाब साहब मैं मजबूर थी, मुझे अपने पिता की जान बचानी थी, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए, " निहारिका ने हांथों को जोड़ते हुए कहा।
तनवीर उसकी मजबूरी समझ गया और उससे हमदर्दी जताते कहा कि " अब जब तहखाना खुल ही चुका है, सब कुछ पता चल ही गया है तो मैंने दो दिन बाद उस फ़ार्म हाउस पर जाने का फैसला किया है, तुम चाहो तो अपने पिता और बाकी परिवार के साथ हवेली पर रह सकती हो । तुम्हारे हवेली पर रहने से मैं भी थोड़ा निश्चिंत हो जाऊंगा और एक ही जगह पर रहने से तुम्हें भी सहारा मिलेगा, कब तक अस्पताल और किराए के मकान पर रुकोगी। एक बार इस कमांडर वाली गुत्थी सुलझ जाए फिर तुमलोग भी आराम से नैनीताल के उसी फ़ार्म हाउस पर रह सकते हो, तब तक हवेली पर ही रुको, मैं कल ही गाड़ी भिजवा दूंगा, अस्पताल से छुट्टी लेकर सीधा परिवार के साथ हवेली पर रहने चले आओ"।
उर्मिला भी तनवीर के फैसले से सहमत हो गई । तनवीर अपने संग हैदर को लेकर वहाँ से अपनी कार पर सवार होकर सीधा बड़ी हवेली की ओर चल दिया।
हवेली की तरफ़ जाते समय रास्ते भर तनवीर यही सोचता रहा कि आखिर ऐसा कौन सा राज़ था जो उसके वालिद ने डायरी में लिखा था, जिसका ज़िक्र कमांडर ने उनसे किया था, तनवीर के दिमाग में एक तरफ उन करोड़ों के हीरों का भी ख़याल आ रहा था। एक तरफ हीरे और दूसरी तरफ कमांडर के सीने में दफ्न राज़ ने तनवीर के अंदर बेचैनी सी जगा दी थी।
-Ivan Maximus
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तनवीर (तन्नू) की नींद खुलती है," ओह तुम, थोड़ी देर और सोने दो न प्लीज़ ", तन्नू शहनाज़ से कहता है।
" आज मोती झील जाने का प्लान बनाया था, भूल गए क्या, तुमने मेरे छोटे भाई हैदर को कानपुर घुमाने का वादा किया था और वह डाइनिंग टेबल पर ब्रेक फास्ट के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहा है ", शहनाज़ अपनी बात पूरी करती है।
" मुझे 10 मिनट दो मैं तैयार होकर आता हूँ", तन्नू कहते ही सीधे बाथरूम की ओर फ्रेश होने चला जाता है।
नाश्ते के बाद तन्नू, हैदर को अपने वालिद की कार से कानपुर घुमाने ले जाता है। काफ़ी घूम कर खिलौने और सामान खरीदने के बाद दोनों गाड़ी की ओर बढ़ ही रहे थे कि तनवीर की नज़र एक लड़की पर पड़ती है," यह यहाँ.... ये तो निहारिका है, ये यहाँ पर क्या कर रही है, इसे तो अपने गांव में होना चाहिए था। इसका पीछा करना पड़ेगा, आखिर ये कौन सी नई पहेली है, इसका पता तो लगाना ही पड़ेगा," तनवीर अपने मन में कहता है ।
तनवीर हैदर को सामान सहित अपने हाथों से पकड़ उठा लेता है और जल्दी से अपनी कार की तरफ लपकता है।
निहारिका सामने रोड क्रॉस कर रही थी। तनवीर बिना देरी किए रोड क्रॉस कर, गाड़ी उसके पीछे पीछे चलाने लगता है।
अब तक निहारिका की नज़र तनवीर पर नहीं पड़ी थी, वो एक अस्पताल के अंदर चली जाती है। तनवीर भी गाड़ी पार्क करके अस्पताल के अंदर चला जाता है, हैदर भी उसके साथ ही था।
अस्पताल के कुछ कमरों में देखने के बाद निहारिका उसे दिखती है, वो अस्पताल में किसी मरीज़ को देखने पहुंची थी, तनवीर को अपने सामने देखकर पहले तो वह थोड़ा चौंक जाती है फिर बाद में तनवीर को बाहर आने का इशारा कर कॉरिडोर की तरफ चल पड़ती है।
तन्नू अपने साथ हैदर को लेकर उसके पीछे चल देता है, बाहर जाकर निहारिका उसे बताती है कि उसके पिता जो अन्दर बेहोश पड़े हैं नैनीताल के फ़ार्म हाउस की देखभाल करते थे, वह तनवीर को बताती है कि उसे झूठ बोल कर तनवीर के यहाँ नौकरानी का काम करना पड़ा क्यूँकि उसकी वजह वो कमांडर का कटा हुआ सिर है।
तनवीर उसे सारी बातें विस्तार से बताने को कहता है।
"मेरा नाम उर्मिला है, मैं आपके पिता द्वारा रखे गए फ़ार्म हाउस के केयर टेकर की बेटी हूँ, मैं पढ़ी लिखी हूँ और बी. ए फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूँ। हम लोग नैनीताल में बड़ी हंसी खुशी जीवन बिता रहे थे। एक दिन आपके वालिद वहाँ पहुँचे उनके हाथों में वज़न दार छोटा संदूक था। साथ में कुछ पुरातत्व से संबंधित कलाकृतियां थीं।
फ़ार्म हाउस के माली और नौकरों ने मिलकर सामान उनके कमरे में रखवा दिया। वह ज़्यादातर समय अकेले ही बिताते थे, वो वहाँ दो दिन रुके थे, अपने जाने से पहले उन्होंने अपने कमरे का ताला ख़ुद बंद किया और चाभी मेरे पिता जी को दे दी।
ऐसे तो कभी आपके वालिद के कमरे को हाँथ नहीं लगाया जाता था, पर आपके वालिद को गुज़रे हुए जब काफ़ी साल बीत गए। तो एक दिन फ़ार्म हाउस को फिर से पेंट करने का फैसला लिया गया, क्यूँकि दीवारों से पानी रिसने लगा था ऐसा पहली बार हो रहा था इतने सालों में। आपके पिता के कमरे की दीवारों पर भी पेंट करने का फैसला किया गया, उनके कमरे का ताला खोला गया और अंदर जाकर साफ़ सफ़ाई शुरू हुई, पहले दो दिन तो सबकुछ ठीक था, फिर आपके पिताजी का कमरा खोल कर ही रखा जाने लगा क्यूँकि पेंट करने का काम तब भी चालू था ।
पर एक रात जब सभी अपने अपने कमरों में सो रहे थे, तभी अचानक मेरे पिताजी अपने बिस्तर से उठ सीधे आपके पिताजी के कमरे की ओर चल दिए। ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें नींद में कोई पूकार रहा हो और उन्हें उस कमरे तक लेकर गया। उस रात मैं अपनी खिड़की के सामने स्टडी टेबल पर बैठकर अगले दिन होने वाले अपने पेपर की तैयारी कर रही थी, खिड़की से आपके पिताजी का कमरा साफ़ दिखता है जो ठीक नीचे है, मैंने देखा कि मेरे पिताजी अंदर गए और वहां एक ओर लटकी शेर की तस्वीर के सामने जाकर खड़े हो गए, फिर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद उन्होंने उस तस्वीर को हटाया। उसके पीछे एक दीवार पर बनी अलमारी में संदूक रखा हुआ मिला।
मेरे पिताजी ने संदूक को नीचे उतारा और पास ही एक टेबल पर रख दिया। उसे हेयर पिन की मदद से खोल उसके अंदर से एक कपड़े के झोले जैसे बटुए को बाहर निकाला, फिर उसकी रस्सी ढीली कर जैसे ही अंदर देखा तो तेज़ लाल रोशनी चमकी, मेरे पिताजी बेहोश होकर वहीं गिर पड़े , कपड़े का बटुआ हाँथ से नीचे गिर चुका था।
मैं भागते हुए उस कमरे में पहुंची तो देखा कि उस बटुए के अंदर का सामान बाहर नहीं निकला था लेकिन रोशनी फिर भी जल रही थी।
अपने पिता जी को उठाने जैसे ही मैं आगे बढ़ी तो इतने में एक आवाज़ सुनाई पड़ी, "इन द नेम ऑफ द क्वीन , आखिर कमांडर ब्राड शॉ रोउडी जाग ही गया। सुनो लड़की ये तुम्हारा बाप अभी मरा नहीं है, आँखो पर रोशनी की चमक से बेहोश हुआ है और ऐसा ही रहेगा जब तक तुम हमारा बाकी का बॉडी का मदद नहीं करता है, तुमको करना ये है कि कानपुर के बड़ी हवेली के तहखाने पर लटकी ताविज़ और जंजीरे हटा देना है, जिससे मेरा शरीर वहाँ टहल सके और लोगों में खौफ़ पैदा हो जाए।
किसी को पता नहीं चल पाए कि तुम कौन हो, वहां तुम्हें रहना पड़ेगा फ़िर जो तुम देखोगी या सुनोगी, हम यहाँ बंद संदूक में देखेंगे और सुनेंगे , अगर कोई होशियारी दिखाई तो तुम्हारा बाप अब भी मेरे ही कब्जे में है जब चाहें इसकी जान ले लें। अब बैठे हुए.... क्या देखता और सुनता है, इधर आ कर हमारा खोपड़ी को उठाओ और इज़्ज़त के साथ संदूक में वापस रख दो"।
पहले तो मैं डर गई फिर थोड़ी हिम्मत उसकी बातों को सुनकर मिली, ऐसा लगा वो जो भी है मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएगा सो मैंने वही किया जो उसने कहा मैंने उसे संदूक के अंदर बंद कर उसी जगह पर रख दिया और वही तस्वीर उस जगह को छुपाने के लिए दीवार पर लटका दी।
इस हादसे के बाद मेरे पिताजी की हालत गंभीर हो गई, बहुत इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ, फिर हम सब यहाँ चले आए और मैंने उसकी बताई हुई योजना को मजबूरी में अंजाम दिया। मैं आपके यहाँ हवेली पर दो बार नौकरानी के रूप में काम कर चुकीं हूँ, एक बार नन्दनी के रूप में जब पहली बार मैंने वहाँ आप लोगों के रहने से पहले नौकरानी का काम कर तहखाने पर लटके ताविज़ और जंजीरों को हटाया और उस कमांडर के धड़ कि मदद की। जिससे उसका बिना सिर का शरीर हवेली में इधर-उधर टहलने लगा, नौकरों में दहशत फैल गई और नौकर नौकरी छोड़ कर जाने लगे, कुछ दिनों बाद मैंने भी काम छोड़ दिया।
आपकी अम्मी के आने से पहले एक बार फिर वहां झाड़ फूंक करवाई गई और एक बार फिर से उस तहखाने को ताविज़ और जंजीरों से बांध दिया गया इसलिए इस बार निहारिका का रूप लेना पड़ा।
मैं क्या करूं नवाब साहब मैं मजबूर थी, मुझे अपने पिता की जान बचानी थी, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए, " निहारिका ने हांथों को जोड़ते हुए कहा।
तनवीर उसकी मजबूरी समझ गया और उससे हमदर्दी जताते कहा कि " अब जब तहखाना खुल ही चुका है, सब कुछ पता चल ही गया है तो मैंने दो दिन बाद उस फ़ार्म हाउस पर जाने का फैसला किया है, तुम चाहो तो अपने पिता और बाकी परिवार के साथ हवेली पर रह सकती हो । तुम्हारे हवेली पर रहने से मैं भी थोड़ा निश्चिंत हो जाऊंगा और एक ही जगह पर रहने से तुम्हें भी सहारा मिलेगा, कब तक अस्पताल और किराए के मकान पर रुकोगी। एक बार इस कमांडर वाली गुत्थी सुलझ जाए फिर तुमलोग भी आराम से नैनीताल के उसी फ़ार्म हाउस पर रह सकते हो, तब तक हवेली पर ही रुको, मैं कल ही गाड़ी भिजवा दूंगा, अस्पताल से छुट्टी लेकर सीधा परिवार के साथ हवेली पर रहने चले आओ"।
उर्मिला भी तनवीर के फैसले से सहमत हो गई । तनवीर अपने संग हैदर को लेकर वहाँ से अपनी कार पर सवार होकर सीधा बड़ी हवेली की ओर चल दिया।
हवेली की तरफ़ जाते समय रास्ते भर तनवीर यही सोचता रहा कि आखिर ऐसा कौन सा राज़ था जो उसके वालिद ने डायरी में लिखा था, जिसका ज़िक्र कमांडर ने उनसे किया था, तनवीर के दिमाग में एक तरफ उन करोड़ों के हीरों का भी ख़याल आ रहा था। एक तरफ हीरे और दूसरी तरफ कमांडर के सीने में दफ्न राज़ ने तनवीर के अंदर बेचैनी सी जगा दी थी।
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