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बुढ़िया की ईर्ष्या
मैंने आज बहुत साल बाद तुम्हें देखा पर पहचाना नहीं, पता है क्यों? तुम बिल्कुल भी बूढ़े नहीं हुए हो, मेरी कल्पना में जब मैं घर से चली थी तो यह अनुमान लगाती जाती थी, कि सफ़ेद पके बालों में थूथलती जुबान में जो बातें किया करेंगे कुछ भी समझ नहीं आएगा, फिर एक दूसरे की स्थिति देख खिलखिलाएंगे। बोलेंगे बचपन में तो कहते थे रोज़ दूध पियूंगा हरी...