"ऐसी लड़की के साथ तो बलात्कार होना ही चाहिए!"
"देखो! देखो! ये वही है..!!"
सामने कूरियर रिसीव करने के लिए खड़ी अर्पिता को देख मीनल गुंजन से बोली। अर्पिता उन्हीं के मोहल्ले में रहने वाली एक युवा लड़की थी जो अपने पैरों पर खड़े होकर अपने परिवार के भरण-पोषण में अपना योगदान देती थी। लेकिन पिछले दिनों उसके साथ ऐसी दुर्घटना हुई की अर्पिता की आत्मा भी कलप गई पीड़ा से। बताने की तो अब ज़रूरत ही नहीं की वो कैसी घटना रही होगी।
"क्या!! ये 'वो' है??"
मीनल की बात सुन गुंजन फुसफुसाते हुए बोलीं।
"हाँ! हाँ! और नहीं तो क्या!!"
बड़े गंभीर रहस्यमयी अंदाज़ में उसने जवाब दिया।
"देख के तो नहीं लगता.. इतना सज-धज के ये घर से बाहर कैसे निकल सकती है.. और चेहरा तो देखो.. कोई शिकन नहीं है इसके चेहरे पर.. मेकअप से चमका लिया है ख़ुद को!!!!"
गुंजन के मुँह से सहसा निकला।
"मेकअप से चेहरा पोंत लेने से इसके पाप पर पर्दा थोड़े पड़ जायेगा!! मुँह काला करवाकर तन के चल रही है जो!!"
मीनल अर्पिता के चरित्र का चीर-हरण करने की पूरी तैयार कर के बैठी थी। मौके पर चौका दे मारा।
"तुमको पता है ये हमेशा ऐसे ही सज-धज के घर से निकला करती थी.. कई लड़के दोस्त भी थे इसके और.. पार्टी में भी जाया करती थी..!!"
मीनल आगे बोली।
"हे भगवान!!!! मतलब पूरे गुलच्छर्रे उड़ाती थी ये..!!"
गुंजन हैरानी से मुँह पर हाथ रखते हुए बोली।
"हाँ!! और नहीं तो क्या!!"
मीनल पुष्टि करती बोली।
"लेकिन मैंने तो इसे जब भी देखा सलवार-सूट में सलीके से दुपट्टा लिए ही देखा! मुझे तो ये 'वैसी' नहीं लगी!!"
गुंजन ने भी अपनी बात रखी।
"अरे हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और!! वो सब दिखावा था इसका!! बाहर जाकर क्या करती थी ये ही जाने!!"
गुंजन की बात सुन मीनल को अपने चौपाल कार्यक्रम पर पानी फिरता नज़र आया लेकिन फ़िर वो बात संभालती बोली.. "बाप नहीं था इसका। मर गया होगा बहुत पहले ही। बाप नहीं होता तो दुनिया समाज किन नज़रों से लड़की को देखता है ये तो हर कोई जानता है ऐसे में घर से निकलने की ही क्या ज़रूरत थी!! और निकली तो निकली, पर इतने सजने-सँवरने की क्या ज़रुरत थी! जब खुद को इतना पेंट पालिस से चमकायेगी तो खरीददार तो आयेंगे ही! अपना सामान खुद से ना देगी तो ज़बरदस्ती लेकर जायेंगे!"
मीनल ने कहा और फ़िर एक विकृत सी हँसी हँस दी। गुंजन भी मुँह दबा खींखीं करने लगी। अब...
सामने कूरियर रिसीव करने के लिए खड़ी अर्पिता को देख मीनल गुंजन से बोली। अर्पिता उन्हीं के मोहल्ले में रहने वाली एक युवा लड़की थी जो अपने पैरों पर खड़े होकर अपने परिवार के भरण-पोषण में अपना योगदान देती थी। लेकिन पिछले दिनों उसके साथ ऐसी दुर्घटना हुई की अर्पिता की आत्मा भी कलप गई पीड़ा से। बताने की तो अब ज़रूरत ही नहीं की वो कैसी घटना रही होगी।
"क्या!! ये 'वो' है??"
मीनल की बात सुन गुंजन फुसफुसाते हुए बोलीं।
"हाँ! हाँ! और नहीं तो क्या!!"
बड़े गंभीर रहस्यमयी अंदाज़ में उसने जवाब दिया।
"देख के तो नहीं लगता.. इतना सज-धज के ये घर से बाहर कैसे निकल सकती है.. और चेहरा तो देखो.. कोई शिकन नहीं है इसके चेहरे पर.. मेकअप से चमका लिया है ख़ुद को!!!!"
गुंजन के मुँह से सहसा निकला।
"मेकअप से चेहरा पोंत लेने से इसके पाप पर पर्दा थोड़े पड़ जायेगा!! मुँह काला करवाकर तन के चल रही है जो!!"
मीनल अर्पिता के चरित्र का चीर-हरण करने की पूरी तैयार कर के बैठी थी। मौके पर चौका दे मारा।
"तुमको पता है ये हमेशा ऐसे ही सज-धज के घर से निकला करती थी.. कई लड़के दोस्त भी थे इसके और.. पार्टी में भी जाया करती थी..!!"
मीनल आगे बोली।
"हे भगवान!!!! मतलब पूरे गुलच्छर्रे उड़ाती थी ये..!!"
गुंजन हैरानी से मुँह पर हाथ रखते हुए बोली।
"हाँ!! और नहीं तो क्या!!"
मीनल पुष्टि करती बोली।
"लेकिन मैंने तो इसे जब भी देखा सलवार-सूट में सलीके से दुपट्टा लिए ही देखा! मुझे तो ये 'वैसी' नहीं लगी!!"
गुंजन ने भी अपनी बात रखी।
"अरे हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और!! वो सब दिखावा था इसका!! बाहर जाकर क्या करती थी ये ही जाने!!"
गुंजन की बात सुन मीनल को अपने चौपाल कार्यक्रम पर पानी फिरता नज़र आया लेकिन फ़िर वो बात संभालती बोली.. "बाप नहीं था इसका। मर गया होगा बहुत पहले ही। बाप नहीं होता तो दुनिया समाज किन नज़रों से लड़की को देखता है ये तो हर कोई जानता है ऐसे में घर से निकलने की ही क्या ज़रूरत थी!! और निकली तो निकली, पर इतने सजने-सँवरने की क्या ज़रुरत थी! जब खुद को इतना पेंट पालिस से चमकायेगी तो खरीददार तो आयेंगे ही! अपना सामान खुद से ना देगी तो ज़बरदस्ती लेकर जायेंगे!"
मीनल ने कहा और फ़िर एक विकृत सी हँसी हँस दी। गुंजन भी मुँह दबा खींखीं करने लगी। अब...