प्यारी वैदेही (भाग-1)
प्यारी वैदेही....
समझ ही नहीं आता तुम्हारी ये नादानीयाँ कम क्यूँ नहीं होती, जानती हो ना तुम अम्मा को तुम्हारा सजना सँवरना ज़रा भी नहीं भाता, फिर भी ना जाने क्यूँ उनसे छिप कर पैरों में महावर लगाया करती हो, और बाद में अपनी ऊंचाई से अधिक लंबी फ्रॉक पहन उसके भीतर ही छिपाती जाती हो अपने महावर लगे पांवो को, दोपहर में जब सो जाया करते हैं सब,
तुम किताबों की अलमारी में सबसे पीछे छिपा कर रखे, अपने आईने को निकाल बैठ जाया करती हो चौखट पर,...
समझ ही नहीं आता तुम्हारी ये नादानीयाँ कम क्यूँ नहीं होती, जानती हो ना तुम अम्मा को तुम्हारा सजना सँवरना ज़रा भी नहीं भाता, फिर भी ना जाने क्यूँ उनसे छिप कर पैरों में महावर लगाया करती हो, और बाद में अपनी ऊंचाई से अधिक लंबी फ्रॉक पहन उसके भीतर ही छिपाती जाती हो अपने महावर लगे पांवो को, दोपहर में जब सो जाया करते हैं सब,
तुम किताबों की अलमारी में सबसे पीछे छिपा कर रखे, अपने आईने को निकाल बैठ जाया करती हो चौखट पर,...