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शकुंतला की प्रेम गाथा
मेनका, विश्वामित्र की अधूरी
कहानी से जन्मी, शकुंतला बेचारी

छोड़ उपवन मे उसे,
गई लौट मेनका इंद्र नगरी

निसर्ग के सानिध्य मे
बड़ी हुई, मेनका की छवि,
कणव ऋषि दत्त पुत्री,

देख हार जिसे गए, दुष्यंत ह्रदय अपना
कर दिया सबकुछ न्योछावर अपना

स्वीकार कर दुष्यंत का प्रस्ताव
निसर्ग को मान साक्षी
कर लिया गन्धर्व विवाह

दुष्यंत के ध्यान मे मग्न,
शकुंतला ने
कर दिया दूर्वासा ऋषि को अनसुना

क्रोधित हो उठे दूर्वासा,
दे दिया शकुंतला को श्राप
क्रोध का बन गई शकुंतला ग्रास

प्रेम निशानि,रा ज मुद्रीका,घुमा कर
अधिकृत हक़, मांगने गई दुष्यंत की ओर

श्राप ने मचा दिया हाहाकार,
दुष्यंत ने कर दिया पहचान ने से भी इंकार

दुष्यंत के व्यवहार से रह गई सन्न
लौट गई उपवन,
लेकर "भरत "वंश का अंश

भूल गया, उसको निरमोही,
कर कठोर अपना मन
दिया "भरत " को जन्म

ऐसे मे एक मामला आया
मछुआरे ने "राजमुद्रीका "
से दुष्यंत का सामना करवाया

दुष्यंत को सब याद आया,
भागा भागा वो, ऋषि आश्रम आया

दुष्यंत संग "भरत" का हुआ सामना
पिता के नाम पर खुद का नाम पाया

समझ सारी स्तिथि,
शकुंतला से राजा,मांगे माफी

मुख से फूटे ना शब्द,
खड़ी खड़ी दुष्यंत को
निहारे शकुंतला बेचारी




स्मृति.