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एक गलत फैसला (भाग 4)
अगले ही दिन उन लोगों ने बाहर घूमने जाने का इरादा बना लिया। सरला, मीठी, रेखा, प्रशांत और उनके कुछ दोस्त सभी लोगों ने मिलकर कुछ खट्टी मीठी यादें बना ली। सब अपनी थकान और मुश्किलों को भूल से गए थे। शाम हुई तो सबने बाहर ही खाना खाया और फिर अपने अपने घर चले गए।

"आह!! मैं बहुत थक गई।" सरला घर में प्रवेश करते हुए बोली।
"मैं भी।" मीठी और रेखा भी आह भरते हुए बोल पड़े। सोफे पर बैठे बैठे वे लोग कब सो गए उनको पता भी नहीं चला। सुबह हुई तो सब एक एक करके अपने कमरे में सोने चले गए। पूरा हफ़्ता सभी ने यूँही खिलखिलाते हुए बीता दिया।

अब सगाई हुए एक महीना होने को था सो काम भी बड़ी फुर्ती के साथ होने लगे। सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को शादी का निमंत्रण देना। घर की सजावट देखना, इत्यादि के कामों में समय पता ही नहीं चलता था। तभी एक दिन उनके घर पर एक वृद्ध से आदमी ने दस्तक दी। वो सरला से मिलने आया है।

"जी आप कौन?"

"मैं, धीरज। मुझे सरला देवी से मिलना है। ये उनका ही घर है न?"

"हांँ, अंदर आ जाइए।" "क्या काम है आपको उनसे?"

धीरज बड़ी देर तक बस उसको ख़ामोश देखता ही रहा फिर अचानक बोल पड़ा "आप सरला की बेटी हो?" "सगी बेट?"

"जी, मैं उनकी ही बेटी हूंँ, सगी बेटी।" मीठी ने क्रोधित होते हुए जवाब दिया।

"और आपके पिता जी कहां हैं वो नज़र नहीं आ रहे हैं।" "आप अकेली रहती हैं यहां?" "क्या करती हैं आप वैसे?" धीरज उस पर अपने सवालों की वर्षा किए जा रहा था और उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुंँचे जा रहा था।

मीठी बड़ी देर तक उसे घूरती ही रही, मानो इसके मन को पढ़ने की कोशिशें कर रही हो। ये वही व्यक्ति था जिसको उसने सरला के साथ कई बार देखा था।

"मीठी, ओ! मीठी, ये सामान देखकर अंदर रखवा दो। मैं रहा हाथ-मुंँह धो आती हूंँ तब तक।" कहते हुए सरला अपने कमरे की तरफ जाने लगती है।

"कोई आप से मिलने आया है। पहले उनसे मिल लीजिए।" कहकर मीठी गुस्से में वहांँ से चली गई।


© pooja gaur