हमारी मां (३)
हमें अचानक देख करआंटी कीबहन चौंक गयीं।रात हो गयी थी,भोजन हमने बस स्टेशन के होटल में कर लिया था।सो हम लोग गये।बारिश भी तेज थी वहां।सुबह जब हम उठे तब मम्मी और आंटी नहीं थे।हमें परेशान देख आंटी आईं(छोटी बहन)और बोलीं"तुम्हारी मम्मी और आंटी विशाल गणपति मंदिर के दर्शन के लिए गये हैं।तुम लोग नहा-धो लो फिर डाइनिंग टेबल परआ जाना।
हमने वैसा ही किया।
जब हम डाइनिंग टेबल पर पहुंचे तब वे लोग चाय पी रहे थे।हमें भी उन्होंने चाय और टोस्ट दिए,टेबल पर हमारी ही उम्र के उनके दो बच्चे थे।हमें उनसे मिलाया गया।जब उनकी लड़की मुझसे बात करना चाह रही थी,तब उनकी मांने इशारा किया।वह जल्दी से अपना दूध पी कर बाहर चली गयी।
अंकल (आंटी के बहनोई)ने हमसे हमारा नाम पूछा,फिर कौनसी कक्षा में पढ़ रहे हैं ये जाना।फिर अपनी पत्नी से मराठी में बात करने लगे।कैसे आना हुआ इनका?वो इनकी मम्मी किसी मिशन पर निकलीं हैं सो...
बच्चे इतने छोटे भी नहीं हैं न घर पर भी रह सकते थे।इनके पिता भी होंगे न घर पर?सुनकर मुझे बुला लागा,क्योंकि मुझे मराठी समझती थी।मैं भाई को लेकर बालकनी में चली गयी।
वहां उनकी लड़की पढ़ाई कर रही थी,बाहर बारिश हो रही थी।तभी मम्मी आ गये।फिर हम लोग पैसे खाकर औरंगाबाद के लिए निकले।वहां पहुंचते ही हमारे लिए भोजन तैयार था।भोजन करने के बाद जब हम बैठे तब आंटी के बेटे ने मम्मी से पूछा,बताइए आंटी कैसे निकलना हुआ?
"मैं शिंदे मैडम के पास मेरे लड़के के लिए गयी थी,वहां वे अपने पति को बता रही थीं कि कोई पटवारी आपके लिये आकर गया है।"
मैंने उनसे पटवारी का अर्थ पूछा वे बोलीं जो गांव खेती-बाड़ी का हिसाब-किताब रखता है उसे पटवारी कहते हैं।'मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?'शिंदे मैडम ने पूछा।जी मुझे आज से तीस साल पहले दौलताबाद के पटवारी कौन थे जानना है,मम्मी ने जवाब दिया।तब वे बोलीं अरे!हमारे किरायदार का मायका कुर्ता बाद है वह दौलताबाद के पास ही है।मैं उन्हें बुलाती हूं।
। तुम्हारी मम्मी आकर बोलीं 'चलो चलते हैं,मैं तुम्हें ले चलती हूं।'मुझे स्कूल सेदस दिन की छुट्टी मिली है।अब हम यहां आए हैं,मुझे यहां औरंगाबाद में चंद्रकांत मास्टर के बारे में जानना है।'मैं एक मास्टर को जानता हूं।सुबह उन्हें बुलाकर लाऊंगा।अभी आप लोग आराम कीजिए,आप चिंता मत कीजिए आंटी आपकी खोजमें हमसे जो संभव होगा हम मदद करेंगे।बच्चों की तो बिल्कुल चिंतामत करना'। हम लोग फिर आराम से सो गये।
हमने वैसा ही किया।
जब हम डाइनिंग टेबल पर पहुंचे तब वे लोग चाय पी रहे थे।हमें भी उन्होंने चाय और टोस्ट दिए,टेबल पर हमारी ही उम्र के उनके दो बच्चे थे।हमें उनसे मिलाया गया।जब उनकी लड़की मुझसे बात करना चाह रही थी,तब उनकी मांने इशारा किया।वह जल्दी से अपना दूध पी कर बाहर चली गयी।
अंकल (आंटी के बहनोई)ने हमसे हमारा नाम पूछा,फिर कौनसी कक्षा में पढ़ रहे हैं ये जाना।फिर अपनी पत्नी से मराठी में बात करने लगे।कैसे आना हुआ इनका?वो इनकी मम्मी किसी मिशन पर निकलीं हैं सो...
बच्चे इतने छोटे भी नहीं हैं न घर पर भी रह सकते थे।इनके पिता भी होंगे न घर पर?सुनकर मुझे बुला लागा,क्योंकि मुझे मराठी समझती थी।मैं भाई को लेकर बालकनी में चली गयी।
वहां उनकी लड़की पढ़ाई कर रही थी,बाहर बारिश हो रही थी।तभी मम्मी आ गये।फिर हम लोग पैसे खाकर औरंगाबाद के लिए निकले।वहां पहुंचते ही हमारे लिए भोजन तैयार था।भोजन करने के बाद जब हम बैठे तब आंटी के बेटे ने मम्मी से पूछा,बताइए आंटी कैसे निकलना हुआ?
"मैं शिंदे मैडम के पास मेरे लड़के के लिए गयी थी,वहां वे अपने पति को बता रही थीं कि कोई पटवारी आपके लिये आकर गया है।"
मैंने उनसे पटवारी का अर्थ पूछा वे बोलीं जो गांव खेती-बाड़ी का हिसाब-किताब रखता है उसे पटवारी कहते हैं।'मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?'शिंदे मैडम ने पूछा।जी मुझे आज से तीस साल पहले दौलताबाद के पटवारी कौन थे जानना है,मम्मी ने जवाब दिया।तब वे बोलीं अरे!हमारे किरायदार का मायका कुर्ता बाद है वह दौलताबाद के पास ही है।मैं उन्हें बुलाती हूं।
। तुम्हारी मम्मी आकर बोलीं 'चलो चलते हैं,मैं तुम्हें ले चलती हूं।'मुझे स्कूल सेदस दिन की छुट्टी मिली है।अब हम यहां आए हैं,मुझे यहां औरंगाबाद में चंद्रकांत मास्टर के बारे में जानना है।'मैं एक मास्टर को जानता हूं।सुबह उन्हें बुलाकर लाऊंगा।अभी आप लोग आराम कीजिए,आप चिंता मत कीजिए आंटी आपकी खोजमें हमसे जो संभव होगा हम मदद करेंगे।बच्चों की तो बिल्कुल चिंतामत करना'। हम लोग फिर आराम से सो गये।
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