"तुम्हारी कुमुद" भाग-1 लेखक-मनी मिश्रा
..आज जब से मैंने "तुम्हें "अपने बगल में बैठे देखा है, मुझे अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा।
"तुम दुल्हन के जोड़े में हो ,चुपचाप बैठी हुई, मूरत की तरह..."
पलके झुकी हुई हैं, शायद आंखों से बहते हुए आंसू की बूंदों ने तुम्हारी पलकों को भारी कर दिया है। ऐसा तो होता ही है ,जब कोई लड़की अपने घर से पहली बार विदा हो रही हो तो वह रोती ही है ।और वह भी तुम जैसी लड़की! जिसे हर किसी ने बस प्यार ही किया होगा ,क्युंकि तुम हो ही इतनी प्यारी।..... ..".कुमुद" यही नाम है तुम्हारा शायद....
शादी के कार्ड पर भी तो यही लिखा है ..."कुमुद संग महेंद्र "
जानती हो ये महेंद्र कौन है ? ,.... वही जो तुम्हारे बगल में बैठा है, दूल्हा बनकर .....यानी "मै"
महेंद्र चतुर्वेदी अपने मां-बाप का एकलौता...
"तुम दुल्हन के जोड़े में हो ,चुपचाप बैठी हुई, मूरत की तरह..."
पलके झुकी हुई हैं, शायद आंखों से बहते हुए आंसू की बूंदों ने तुम्हारी पलकों को भारी कर दिया है। ऐसा तो होता ही है ,जब कोई लड़की अपने घर से पहली बार विदा हो रही हो तो वह रोती ही है ।और वह भी तुम जैसी लड़की! जिसे हर किसी ने बस प्यार ही किया होगा ,क्युंकि तुम हो ही इतनी प्यारी।..... ..".कुमुद" यही नाम है तुम्हारा शायद....
शादी के कार्ड पर भी तो यही लिखा है ..."कुमुद संग महेंद्र "
जानती हो ये महेंद्र कौन है ? ,.... वही जो तुम्हारे बगल में बैठा है, दूल्हा बनकर .....यानी "मै"
महेंद्र चतुर्वेदी अपने मां-बाप का एकलौता...