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मां की सीख
निशा शादी के बाद पहली बार मायके आई थी ।
आते ही मां से लिपट गई देखने से वह बेहद खुश लग रही थी मगर मां की नजरों में भगवान ने वो शक्ति दी है जो अपने बच्चों के मन को पढ ले ।आखिर चूल्हे चौके से निपटकर निशा के पास आ बैठी और पूछा -निशा ...क्या बात है ! कुछ कहना चाहती हो ? कहो बेटा !!
मां ...आपने मुझे कहां फंसा दिया ?
क्यों! क्या हुआ?
मां ! इतना बड़ा परिवार है। सास - ससुर, ननद, देवर।
मुझे नही रहना इन सबके साथ। मुझे अपनी अलग दुनिया बसानी है बस....
क्यों? क्या तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हें परेशान करते है,
कुछ ताने या मारपीट करते है या फिर वह लोग अच्छे नही है?
नही मम्मी ...वो सब तो बहुत अच्छे हैं । सासू मां और ननद हमेशा पूछती रहती है किचन में ! कोई न कोई काम करने में हमेशा मदद करती है । कोई ताने या मारपीट की तो बात ही नही । देवर छोटे भाईयों जैसे तो ससुर जी पापा की तरह सिरपर हाथ रखकर हमेशा आशीषें देते रहते है ।
इसका मतलब कमी तुम में है !
नहीं मम्मी ! मुझमें कोई कमी नही ! आपके सिखाए खानपान को जब भी बनाकर सबको खिलाती हूं सभी तारीफो के पुल बांधते हैं। पर मम्मी इतने सारे लोग ! वो भी अजनबी ! मुझे अच्छा नही लगता ।
अच्छा बैठ कॉफी पिएगी ?
हां ...
आ जा बनाते है । कहकर निशा को रसोईघर में ले आई।
देख ये कॉफी! वैसे तो ये अपने आप में बहुत स्वादिष्ट होती है, मगर जब इसमें दूध और शक्कर मिल जाती है तो इसका स्वाद और भी बढ जाता है। बेटा तुम भी एक काफी की तरह हो और तुम्हारे परिवार वाले शक्कर और दूध जैसे । जब सब साथ में एक साथ रहेंगे तभी तो परिवार पूरा रहेगा । हर सुख दुख में सबसे पहले परिवार ही तो होता है जो साथ खडा होता है । बेटा कल जब तुम मां बनोगी तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा जब कोई तुम्हारे कलेजे के टुकड़े को तुमसे जुदा करेगा तो? अच्छा अगर तुम्हारी भाभी भी यदि तुम्हारी तरह सोचकर हमसे दूर हो जाएं तो ? बेटा ये देखो ये अंगुलियों को, जब तक ये साथ है एक मजबूत मुट्ठी है मगर अलग अलग कमजोर अंगुली ! एक अकेली अंगुली इतना भार नही उठा सकती जितना ये सब मिलकर एक हथेली बनकर उठा सकती है । अब बोलो, क्या अब भी अपने परिवार के साथ नहीं। अब सब समझ गई। मुझे हमेशा अपने परिवार में रहना है एकसाथ एक माला मे ! ये कॉफी वाकई बहुत स्वादिष्ट है। कहकर मां से निशा लिपट गई!!
© Lovedeep Kapila