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"काली कुर्सी"
#कालीकुर्सी
भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी...
सरिता को अपने मालिक के लिए एक आलीशान कुर्सी की दरकार थी तभी उसकी नज़र एक शानदार कुर्सी पर पड़ी जिसे कुर्सी कहना भी ठीक नहीं होगा, उसे एक सिंहासन कहना ज्यादा उचित होगा। सरिता को अपने मालिक के लिए वो कुर्सी भा गई, पूछने पर कुर्सी का मूल्य दस हज़ार बताया गया पर मालिक ने उससे एक सुंदर कुर्सी लाने को कहा था और कहा था कि दाम की चिंता वो न करें, वो बस पसंद कर घर ले आए बाद में दाम वो चुका देंगे। सरिता ने वो कुर्सी पसंद कर उसे घर पहुंचाने के लिए कहकर अपने घर चली गई।
दूसरे दिन जब वो घर पहुंची तो मालिक उठ चुके थे। जल्दी से उसने मालिक को चाय नाश्ता दिया और अपने कार्यों में व्यस्त हो गई कि तभी उसके मालिक की आवाज़ उसे सुनाई दी सरिता..... यहां आना जरा.... सरिता लगभग दौड़ते हुए मालिक के कमरे में गई तो मालिक ने उससे आग्रह...