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शायद वह पढ़ नहीं सकतीं

जब मैं 10वीं कक्षा में थी,एक बच्चा अक्सर हमारे घर के पास से गुजरता, आप सोच रहे होंगें कि इतने आने जाने वालों में से मुझे उसे बच्चे का ही स्मरण क्यों है।बात असल में यह है कि वह बालक सबसे मुस्कुरा के बात करता था। मुझे भी कभी-कभार बात की है उसने। वह सिर्फ एक इंसान की ओर कभी नहीं जाता था। और वह इंसान थीं,इस दिखावे के युग में सादगी से रहने वाली एक बूढ़ी अम्मा।यूं तो मैंने उन्हें कभी किसी से ज्यादा बात करते नहीं देखा। उनके पोता-पोती स्कूल से सीधा अम्मा के पास आया करते। विडंबना तो इस बात की होती, की अम्मा एक छोटी सी कुटिया में रहती है और उनके पोता-पोती शहर के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ते।वह बच्चा भी अम्मा के पोता-पोती के साथ ही पढ़ता था। स्कूल आना-जाना,खेलना-कूदना सब साथ में करते, मगर जब अम्मा के घर जाने की बात आती तो, वह लड़का सबकी पुकार अनसुनी करके सीधा अपने घर चला जाता।यह सब चीज़ें देख कर मेरे मन में अनेक प्रश्न खड़े हो रहे थे।एक दिन लालसा इतनी बड़ी की काबू ही ना रहा। और मैं पूछ पड़ी,"सुनो!तुम अम्मा के घर क्यों नहीं जाते", वह कुछ क्षण सिर नीचे किए खड़ा रहा। फिर बोला,"मुझे ऐसा लगता है कि,शायद वह पढ़ नहीं सकतीं"।