प्रेम
प्रेम तो परिभाषाओं से परे हैं
परिभाषा तो परिधि है
प्रेम परिधि में कहां है
यह तो परिधि में आ ही नहीं सकता
यह तो स्वतंत्र है
जैसे हवा, खुशबू,पानी,
कायनात में धुला हुआ
उन्मुक्त ,स्वछंद
इतना खूबसूरत है कि
इसका वर्णन ही नहीं कर सकते
इतना पावन है की
भावनाओं में समेट ही नहीं सकते
इसका एहसास ही
शक्ति देता है
कोई...
परिभाषा तो परिधि है
प्रेम परिधि में कहां है
यह तो परिधि में आ ही नहीं सकता
यह तो स्वतंत्र है
जैसे हवा, खुशबू,पानी,
कायनात में धुला हुआ
उन्मुक्त ,स्वछंद
इतना खूबसूरत है कि
इसका वर्णन ही नहीं कर सकते
इतना पावन है की
भावनाओं में समेट ही नहीं सकते
इसका एहसास ही
शक्ति देता है
कोई...