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जब रखोगे, तभी तो उठाओगे
धनीराम नाम का एक व्यक्ति था। वह मेहनत करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। व धीरे-धीरे कामचोर बनता गया और एक दिन नाकारा हो गया। बैठे-ठाले ठगी का काम शुरू कर दिया। उसने पहले जान-पहचान वालों से उधार लेना शुरू कर दिया। जब लोग पैसे वापस मांगते, तो तरह-तरह के बहाने बना देता।
जैसे-जैसे उसके जान-पहचान के लोग आपस में मिलते गए, उसकी पोल-पट्टी खुलती गई। सब यही बात करते कि जबसे उसने पैसे लिए हैं, तब से मिलना ही बंद कर दिया। जब जान-पहचान के लोगों ने पैसे देने बंद कर दिए, तो वह अपने रिश्तेदारों से उधार के नाम पर पैसे ऐंठने लगा। पहले सगे रिश्तेदारों से पैसे लेने शुरू किए। इसके बाद दूर के रिश्तेदारों से पैसे मांगना शुरू कर दिया।

एक दिन वह एक साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति के पास गया। उसने बैठाकर पानी पिलाया। फिर उससे पूछा, “तुम धनीराम ही हो न?” उसने हां में सिर हिलाया। फिर पूछा, “कहो, कैसे आना हुआ इतने वर्षों बाद। सब ठीक-ठाक तो है।” धनीराम ने उत्तर देते हुए कहा, “सब ठीक तो है, लेकिन, 1 काम नहीं मिल पा रहा है।

घर में तंगी आ गई है। यदि कुछ रुपए उधार दे दें, तो हालत संभल जाएगी।” वह व्यक्ति बात करते हुए उठा और सामने आले में पचास रुपए रख आया जब धनीराम चलने के लिए खड़ा हुआ, तो उस व्यक्ति ने आले की ओर इशारा करते हुए कहा, “सामने आले में पचास रुपए रखे हुए हैं, ले जाओ। जब हो जाएं, इसी में रख जाना।” उसने आले में से रुपए उठाए और चला गया।

इसी प्रकार ठगी से वह अपनी नेया खेता रहा। किसी ने दोबारा दे दिए, किसी ने नहीं दिए। अब वह बैठा-बैठा गणित लगाता रहता कि कोई छूट तो नहीं गया, जिससे पैसे मांगे जा सकते हैं या किस-किस के पास जाएं। कितना-कितना समय बीत गया जिनके पास दोबारा जाया जा सके। ऐसे लोगों की उसने सूची बनाई, जिनसे पैसे लिए हुए तीन साल हो गए थे।

इस सूची के लोगों के पास जाना शुरू कर दिया, लेकिन बहुत कम लोगों ने पैसे दिए। अचानक उसे साधु प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की याद आई। सोचा, अब तो वह भूल गया होगा। उसी के पास चलते हैं। जब धनीराम वहां पहुंचा तो उसे बैठाया। पानी पिलाया और नाश्ता कराया।

उस व्यक्ति ने पूछा, “सब ठीक-ठाक तो है।” धनीराम ने उत्तर देते हुए कहा, “सब ठीक तो है, लेकिन…. ।” उसने फिर पूछा, “लेकिन क्या ? (Valium) ” धनीराम बोला, “बच्चे भूखे हैं। काम भी नहीं मिल रहा है। कुछ पैसे उधार दे देते, तो काम चल जाता।” “ले जाओ उसमें से।” आले की ओर इशारा करते हुए उस व्यक्ति ने कहा वह खुश होता हुआ उठा कि यह वास्तव में पिछले पैसे भूल गया है। इसने न पिछले पैसों की चर्चा की और न मांगे ही सोचते-सोचते यह आने तक आ गया। उसने आले में हाथ डाला तो कुछ नहीं मिला।

धनीराम ने उस व्यक्ति की ओर देखते हुए कहा, “इसमें तो कुछ नहीं है? “इतना सुनकर वह बोला, “जो तुम पहले पैसे ले गए थे, क्या रखकर नहीं गए थे?” उसके मुंह से कोई उत्तर नहीं निकला। उसने न में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया। उस साधु प्रवृत्ति वाले व्यक्ति ने सहज रूप से कहा, तब फिर कहां से मिलेंगे? ‘जब रखोगे, तभी तो उठाओगे’। वह चुपचाप बाहर आया और अपना सा मुँह लिए चला गया
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