...

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तुम और हम
हर रात मैं और तुम हमसे अकेले में मिलते हैं,
वही अँधेरी रात... वक्त की तन्हाई में मिलते हैं,
चांद अब तक तुम भी अकेले चलते हो....
अकेले में मैं भी चलता हुँ,
कुछ सितारें तुम्हें तो कुछ ख्वाब हमको भी मिले,
मगर उनसे भी दूरी हमेशा रही,
बस तन्हाइयों में आज भी तुमको ही साथ पाते हैं.
© abhay chaturvedi