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ॐ खाली कुर्सी ॐ

*एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें...बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते...*
*जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे...*
*एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी...संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई...*
*संत...मुझे लगता है कि आप मेरी ही उम्मीद कर रहे थे...*
*पिता...नहीं, आप कौन हैं...*
*संत ने अपना परिचय दिया...और फिर कहा...मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था...*
*पिता...ओह ये बात...खाली कुर्सी...आप...आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे...*...