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पलायन -कारण और निवारण।पृष्ठ 3
2. श्रम सम्मान का अभाव ।
श्रम करने में हमें शर्म क्यों आती है। या समाज में श्रम- सम्मान का अभाव क्यों है।
यह दोनों ही महत्वपूर्ण कारण है। हमें अपने खेतों में काम करने अथवा अपनी उपज को ढोकर ले जाने में शर्म आती है। परंतु जब हम दूसरे शहरों या प्रांत में जाते हैं, तब यह शर्म गायब क्यों हो जाती है।
"डिग्निटी ऑफ लेबर"
जरा सोचिए भारत में हस्त निर्मित कारपेट की मांग अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन,जर्मनी,फ्रांस में इतनी अधिक क्यों है।


जबकि अपने देश में इसे कोई खरीदना मुनासिब नहीं समझता।
मशीन निर्मित कारपेट कम कीमत में उपलब्ध होता है शायद इसलिए।
फर्क समझिए। हमें भी श्रम का सम्मान सीखना होगा शायद विदेशियों से।
गांधीजी खादी , ग्रामोद्योग की बात शायद इसीलिए करते रहे।
अल्विन टॉफलर एक महान अर्थशास्त्री, गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने कंजूमर के
बजाय प्रोज्यूमर शब्द के बारे में सोचा था जिसका मतलब स्वयं निर्मित कर उसे खपत करना था।
यही तो गांधी भी चाहते थे।


वर्तमान संक्रमण काल में यह दोनों शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण हो गए हैं।
देश के जाने माने अर्थशास्त्रियों से जिसमें कई नोबेल पुरस्कार विजेता भी शामिल है ।
सब के सब जीडीपी के ग्रोथ रेट के बारे में प्रश्न उठाते हैं। मेरा उनसे विनम्र निवेदन है की आजादी के 73 साल बाद भी जीडीपी में कृषि का योगदान घटते घटते 15 फीसद पर क्यों चला आया। जबकि इस क्षेत्र में देश की 65 फीसद आबादी निर्भर हुआ करती थी। जो घटते घटते 40 फीसद पर आ गई।





किसका दोष है जब ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई तो ये
अनस्किल्ड लेबर कहां जाते।
पलायन के सिवा उनके पास चारा ही क्या था ।
नाम लेकर पूछूं तो शायद बुरा लग जाएगा। पूरी दुनिया को अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री शूरवीरों, कुछ तो बताओ।
जिस देश में तीन मौसम और नौ ‌ऋतुयें होती हों।
हर मौसम,हर ऋतु में अलग-अलग प्रकार की फसलें उगती हो। अलग-अलग प्रकार के फल- फूल, शाक-सब्जियां, मसाले, ड्राई -फ्रूट ,चाय,कॉफी के बागान हो ।



गांधी जी का खादी-ग्रामोद्योग भूल कर तुम कारपोरेट बनाने चले थे। ठीक है कारपोरेट बनाते, लेकिन 65 फीसद जनसंख्या जो गांव में थी उसका भी कुछ ख्याल कर लेते।
मैं पूछता हूं किअर्थशास्त्र का उद्देश्य क्या होना चाहिए सिर्फ जीडीपी बढ़ाना या यह भी देखना की जीडीपी का बटवारा कैसे हो रहा है।
हम तो पड़ोसी देश चीन से भी नहीं सीख पाए।
"विषादपिमृतम् ग्राह्यम्,बालादपिसुभाषितम्।
अमित्रादपि सद्वृत,ममेध्यादपि कांचनम्।"
श्लोक इसलिए लिख दिया क्योंकि चीन का नाम सुनते ही कुछ लोग भड़क जाए गे।