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एक भटका इन्सान
#DivyaPr
एक युवक था जिसका नाम गौरव था। नाम गौरव और काम बिल्कुल उल्टा। वो बस खयालीपुलाव बनाने में माहिर था। सोच उसकी अमीर बनने की थी तो कभी सोचता कि ये डॉक्टर लोग बहुत अच्छा पैसा कमाते होंगे तो मेडिकल फ़ील्ड अच्छा होगी और ढेर सारी मेडिकल की किताबें खरीद लीं लेकिन उसका उसमें भी मन नहीं लगा। किताबें पड़ी रहीं सन्दूक में। अब सोच रहा था कि क्यूँ ना मैं आई टी में अपना भाग्य आजमाऊँ लेकिन उसकी भी किताबें खरीद कर रख लींऔर पढ़ा कुछ नहीं अब सोच रहा था कि लोग बिजनेस में बहुत अच्छा कमाई कर रहे हैं क्यूँ ना बिजनेस ही किया जाए अब वो शेयर मार्केट में पैसा लगाने लगा और पिता का बहुत सारा धन बर्बाद कर दिया, रहा बेरोजगार का बेरोजगार ही। इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि किसी एक राह पर चलो और सफलता पाए बिना उस राह को छोड़कर दूसरी राह मत पकड़ो।
बस हार मिलेगी लेकिन रास्ता वो ही रखो जब तक सफ़ल ना हो जाओ।
© Divya Prakash Mishra