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एक सफ़र अनजाना सा (प्रकाशित अक्टूबर 2022) Episode 3
"A story (Novel) which has a flavor of adventure, mystery and love."

Copyright © 2022 Ashok Harendra
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Episode 3

कितनी ही देर से करण उस सर्द और सुनसान रात में बुत की तरह खड़ा हुआ उस सड़क को ताक रहा था जो आगे कोहरे में गुम हो रही थी। इसी सड़क से अभी - अभी वह लड़की बाहर की ओर गई थी। हालाँकि वह अबतक वहाँ से जा चुकी थी, लेकिन उसके कहे आख़िरी शब्द अभी भी करण के कानों में गूँज रहे थे। लड़की की वह कुटिल मुस्कान करण के जेहन से निकल ही नहीं रही थी। उस समय उसे डर कम, और दर्द ज़्यादा महसूस हो रहा था। आलम यह था कि झींगुरों की चिर्र-चिर्र करती आवाज़ भी उसके कानों तक नहीं पहुँच रही थी। लग रहा था जैसे आस-पास की हर चीज़ उस सर्द रात में ख़ामोश खड़ी काँप रही हो।

फिर उसने ख़ुद को समझाया, “आख़िर उसकी बातों का इतना गम क्यों मान रहा है? क्या रिश्ता है तेरा उससे? वह तो एक अनजान महकती हवा-सी थी। जो आयी और अपनी ख़ुशबू बिखेरती हुई चली गई।” एक गहरी आह भरते हुए वह बड़बड़ाया, “अब हवाओं से मोहब्बत तो कर सकते हैं, लेकिन दिलों में कैद कैसे करें?”

“ग़र है दर्द इधर, तो ख़ामोश हसरतें उधर भी हैं,
“जल रहा है दिल इधर, तो सुलगती साँसें उधर भी है”

शायरी सुनते ही वह एकदम से चौंक पड़ा, क्योंकि उसके सिवाय वहाँ कोई न था। उसने फिर से सुनने की कोशिश की, लेकिन झींगुरों की चिर्र-चिर्र के अलावा वहाँ कुछ भी सुनायी नहीं दे रहा था। ख़ामोश होकर वह उस आवाज़ को दोबारा सुनने का प्रयास करने लगा।

“मैंने उस लड़की के दिल की ख़ामोशी को बहुत क़रीब से महसूस किया है, उसका दिल मुझसे कुछ कहना चाहता था!”

इस बार करण ने महसूस किया कि वह आवाज़ किसी और की नहीं बल्कि ख़ुद उसके ही दिल की आवाज़ है। उसके साथ ऐसा पहली बार हुआ था जब वह अपने दिल की आवाज़ को इतना साफ़-साफ़ सुन पा रहा था। और कमाल की बात यह थी कि उसका दिल सुनाई न देने वाली आवाज़ में उससे बातें कर रहा था।

यह सुनकर उसने अपने दिल से पूछा, “तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि उस लड़की का दिल तुमसे कुछ कहना चाहता था?”

“क्योंकि हम सभी दिल आपस में बातें कर सकते हैं और एक दूसरे को महसूस भी कर सकते है।” उसके दिल ने जवाब दिया, “उस लड़की का दिल भी मुझसे बात कर सकता है और मैं उस लड़की के या फिर किसी के भी दिल से बात कर सकता हूँ। ठीक उसी तरह जिस तरह तुम लोग आपस में किसी से भी बात कर सकते हो।”

“लेकिन तुम किसी भी दिल से कैसे बात कर सकते हो! मेरे लिए यह आश्चर्य की बात है!” करण ने दिल से पूछा।

“जिस तरह कुदरत ने तुम इंसानों को क्षमतायें दी हैं, जिनके द्वारा तुम लोग अपने विचारों को बड़ी ही सहजता से दूसरों से कह देते हो। ठीक उसी प्रकार हमारे पास भी ऐसी अद्रश्य क्षमतायें हैं, जिनके ज़रिए हम दूर होते हुए भी एक दूसरे से बात कर पाते हैं।” दिल ने बताया।

“लेकिन आज से पहले मैंने कभी तुम्हें इस तरह मुझसे बातें करते हुए नहीं सुना,” करण बोला।

“मैंने हमेशा ही तुमसे बातें की हैं। शायद मेरी आवाज़ तुम्हारे दिमाग़ जितनी ऊँची नहीं हैं। इसलिए ही तुमने हमेशा दिमाग़ को ज़्यादा और मुझे कम सुना है,” दिल ने ज़वाब दिया।

“अच्छा! यदि तुमने मुझसे पहले भी बात की है, तो बताओ आख़िरी बार तुमने कब मुझसे बात की थी?” करण ने दिल से पूछा।

लेकिन दिल की ओर से इस बार कोई ज़वाब नहीं आया। करण ने फिरसे अपने दिल को पुकारा लेकिन उसे कोई आवाज़ फिर दोबारा सुनायी नहीं दी।

यह कमाल की बात थी जो करण को पहले नहीं मालूम थी। आज उसे एक ऐसे अदृश्य सम्पर्क सूत्र का पता चला था, जो सभी दिलों के बीच विध्यमान है। और यह सम्पर्क सूत्र दिलों की आवाज़ों को एक दूसरे तक पहुँचाने का ज़रिया है। अब उसे पता चला कि क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि वह उस लड़की को पसन्द करने लगा था। और क्यों उसे अन्दर-ही-अन्दर ऐसा लगा कि वे दोनों मित्र बन गए हैं। शायद हमारी जानकारी में आए बिना ही ये दिल आपस में जो बातें करते हैं उन्हीं के आधार पर ही एक दूसरे से हमारे रिश्ते बन जाते हैं। करण इन दिलों के बारें में और बहुत कुछ जानना चाहता था, लेकिन उसका दिल तो जैसे कहीं ओर ही गुम हो चुका था।

एक गहरी साँस लेकर फिर वह बाहर की ओर चल पड़ा जहाँ से उसे सवारी मिलने की उम्मीद थी। बाहर जाने के लिए उसने बगीचे के बायीं तरफ़ की सड़क को चुना, क्योंकि दायीं ओर की सड़क से वह लड़की गई थी। और करण नहीं चाहता था कि वह फिर उसके पीछे-पीछे जाए, या उस लड़की को लगे कि वह उसके पीछे आ रहा है।

वह तेज़ कदमों से चलता हुआ अभी कुछ ही दूर चला था कि उसने अपने पीछे पत्तियों की सरसराहट महसूस की। जैसे कुछ रेंगता हुआ-सा उसके नज़दीक आ रहा है। सूखी पत्तियों की चरमराहट किसी के चलने की आहट उसके कानों तक पहुँचा रही थी। उसे अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ। इस एहसास से उसके कानों के नीचे हल्की ग़र्माहट-सी महसूस हुई। टाँगे जड़-सी होकर रह गयी और गला खुश्क हो चला था। अपने दिल की धड़कनें उसे एक़दम साफ़-साफ़ सुनायी दे रही थीं। एकदम स्तब्ध हो वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया। कुछ पलों तक भी जब कोई हरक़त नहीं हुई तो उसने हिम्मत जुटाई और पलटकर देखा। वहाँ कोई भी नहीं था केवल सूखी पत्तियों से भरी सड़क कोहरे में लुप्त हो रही थी। यह देखकर उसकी जान में जान आयी। फिर तुरन्त ही वह सतर्कता से सड़क की ओर लपका।

सड़क किनारे लगे खम्बों में से केवल दो-चार पर ही लाइट रोशन थीं, जोकि उस कोहरे में काफ़ी नहीं थीं। झींगुरों की चिर्र-चिर्र करती आवाज़ ने उस सुनसान रात को खौफ़नाक बनाने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ रखी थी। उसी समय फिरसे दूर कहीं भेड़ियों की हू-हूssss करती आवाज़ सुनायी दी। ऐसी भयानक आवाज़ो को सुनकर उसके शरीर में सिहरन-सी दौड़ गयी। ठण्ड होने के बावज़ूद भी वह अपने चेहरे पर पसीना महसूस कर रहा था। ख़ुद के जूतों तले दबते सूखे पत्तों की चरमराहट, उसके कानों को झकझोर रही थी। कई बार उसे ऐसा लगा कि मानों क़दम-से-क़दम मिलाकर कोई उसके पीछे चल रहा हो। लेकिन मुड़कर देखने की उसमें ज़रा भी हिम्मत नहीं थी। तभी दाहिनी तरफ़ दरख़्तों के झुरमुठ में उसे एक परछाई-सी महसूस हुई, जो उसके साथ-साथ चलती हुई-सी लग रही थी। उसने घबराते हुए तुरन्त ही उधर देखा, वहाँ अंधेरे के सिवा कुछ नहीं था। तभी बाईं ओर बगीचे में एक छाया-सी तेज़ी से गुज़र गयी। उसने फौरन ही उधर देखा, वहाँ भी हल्की रोशनी और कोहरे के अलावा केवल सन्नाटा ही था। अब तो हद हो चुकी थी। एक गहरी साँस अपने अन्दर भरकर उसने हिम्मत जुटाई और मुख्य सड़क की तरफ़ तेज़ी से दौड़ लगा दी। दौड़ते हुए उसने बगीचे को पार किया और एक बड़े खुले स्थान पर पहुँच गया।

यहाँ उसे वाहन मिलने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन कुछ भी न पाकर उसे बड़ी ही मायूसी हुई। दौड़ने से उसका गला सूख गया और साँसे उथल पुथल हो गई थीं। अपने हालातों पर उसे बहुत ही गुस्सा आ रहा थ। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वह क्या करे क्या नहीं।

“उफ! अब तो सड़क पर ही चलकर किसी वाहन का इंतज़ार किया जाए!” सोचते हुए वह सामने मुख्य सड़क की तरफ़ बढ़ चला।

यह वही मुख्य सड़क थी जो उसके गाँव के साथ-साथ और भी कई गाँवों को शहर से जोड़ती थी। लेकिन रेल्वे स्टेशन के बदले रूप के साथ-साथ यह सड़क भी बदली-बदली ही नज़र आ रही थी। जहाँ कभी सड़क के पार ढेरों दुकानें होती थीं, अब वहाँ कुछेक ही कच्ची-पक्की दुकानें थीं जोकि उस समय बन्द पड़ी थीं।

टैक्सी या किसी वाहन की उम्मीद में टकटकी लगाए वह सड़क पर देख रहा था। लेकिन दूर-दूर तक किसी भी वाहन की वहाँ कोई उम्मीद नज़र ही नहीं आ रही थी। थोड़े इंतज़ार के बाद भी जब कोई न दिखायी दिया तो वह सड़क के किनारे ही अपने गांव की ओर आगे बढ़ चला।

अभी वह कुछ दूर तक ही चला था कि तभी सामने नज़र पड़ते ही उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। यह क्या है? उसने अपनी आँखें झपकाकर फिरसे देखा। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था! सामने कुछ ही दूरी पर सड़क के बायीं तरफ़ एक मोटरकार खड़ी थी। वह सफ़ेद रंग की फ़ियट कार थी।

करण ने आसमान की तरफ़ देखते हुए ईश्वर को धन्यवाद दिया, “हे प्रभु! आप धन्य हैं, इस मदद का बहुत-बहुत शुक्रिया!”

करण लगभग दौड़कर ड्राइविंग सीट पर जा पहुँचा। जैसे ही उसने कार के अन्दर देखा तो चौंक पड़ा। ड्राइविंग सीट पर वही स्टेशन वाली लड़की बैठी थी। लड़की ने शीशे को आधा नीचे किया और अपनी भौहें उठाकर इशारे से उसकी हालत पूछी।

लड़की को दोबारा देखकर करण के बदन में ख़ुशी की एक मीठी लहर दौड़ गई। उसकी उपस्थिति से वह बहुत आश्वस्त हुआ। और उपस्थिति भी उसकी जिसकी उसने उम्मीद भी नहीं की थी।

“क्या मुझे लिफ़्ट मिल सकती है?” बड़ी विनम्रता के साथ वह बोला।

वह लड़की बड़ी ही मासूमियत से बोली, “कार स्टार्ट नहीं हो रही है!”

“क्या हुआ है?” करण ने सहानुभूति जताते हुए पूछा, “बैटरी वीक हो गई है क्या?”

“नहीं मालूम!” लड़की के चेहरे पर उदासी के भाव थे।

“यह तो बड़ी समस्या हो गई! अब आप क्या करेंगी राजकुमारी जी?” करण ने चिंता जताते हुए पूछा।

“पता नहीं!” कुछ सोचकर वह बोली, “अच्छा! क्या आप कार के बारे में कुछ जानते हैं?”

लड़की को नज़रंदाज़ करते हुए करण ने पहले बाएं देखा फिर दाएं। चारों ओर धुँध दिखाई दे रही थी, सड़क पर वाहनों की जगह कोहरा तैर रहा था और मौसम का मिज़ाज ठण्डाता ही जा रहा था।

“आपने बताया नहीं कि आप कार के बारे में कुछ जानते हैं?” लड़की ने थोड़ा और प्यार से पूछा।

“जी हाँ!” करण ने कार से टेक लगाते हुए कहा, “बहुत कुछ जानता हूँ,”

ज़वाब सुनकर लड़की ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा, “ओह गुड! इसका मतलब आप इस कार को स्टार्ट कर सकते हैं?”

“पता नहीं स्टार्ट होगी भी या नहीं!” करण ने मुँह बनाते हुए कहा।

“मतलब?” लड़की असमंजस के साथ बोली, “अभी तो आपने कहा कि आप कार के बारे में बहुत कुछ जानते हैं!”

“मेरा मतलब यह था राजकुमारी जी,” करण ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, “जब कार ऐसे ही बन्द पड़ जाती है तब लोग अक्सर उसमें धक्का लगाते है!”

“क्या?” उसने आश्चर्य से करण को देखा।

“जी हाँ! और हम भी इस कार के साथ वही करेंगे जो सभी लोग करते हैं,” वह बोला।

“मैं समझी नहीं!” लड़की बोली।

“यदि मैं कार को धक्का लगाता हूँ,” करण ने उससे पूछा, “तो क्या आप कार को स्टार्ट करने की कोशिश कर सकती हैं?”

“ओह! यस-यस ह्वाइ नोट?” लड़की ख़ुशी से चहक उठी।

“फिर तो मैं अपना बैग कार में रख सकता हूँ?” लिफ्ट मिलने की उम्मीद में झटसे करण बोला।

लड़की ने कुछ पलों के लिए सोचा, और फिर पीछले दरवाज़े की नॉब उठाते हुए बोली, “ठीक है!”

अपना बैग कार की पिछली सीट पर रखकर करण ने दरवाज़ा बंद किया और अपने दोनों हाथों को गर्म करने के लिए फूँक मारने लगा।

वह वापस आया और लड़की से पूछा, “तो क्या आप तैयार हैं राजकुमारी जी?”

“बिल्कुल! मैं तैयार हूँ।” आधी खुली खिड़की में से ही वह मुस्कराते हुए बोली।

करण गाड़ी को धक्का लगाने पीछे पहुँच गया। उसने जैकिट की बाजुओं को थोड़ा ऊपर किया और कार को 10-12 कदमों तक धक्का दिया तो कार झट से स्टार्ट हो गई। लेकिन फ़ौरन बाद ही फिरसे बन्द भी हो गई।

वह पहले ही अपने सफ़र से थका हुआ था। स्टेशन से यहां तक पहुंचने में उसे जो मशक्कत करनी पड़ी वो अलग। और अब यह थक्का परेड। हाँफता हुआ वह ड्राइविंग सीट पर पहुँचा।

उसके कुछ कहने से पहले ही लड़की ने बड़ी मासूमियत के साथ अनुरोध किया, “फिरसे ट्राई करें? प्लीज़!”

बड़े ही थके शब्दों में उसने सहमति जताते हुए कहा, “ठीक है पहले थोड़ा साँस ले लूँ, फिर कोशिश करता हूँ।”

वह फिरसे पीछे गया और अपने दोनों हाथों को कार की डिक्की पर अच्छे से जमाकर पूरी ताकत के साथ कार को धक्का देता ही चला गया। अबकी बार मेहनत रंग लाई, कार स्टार्ट हो गई और करीब 15-20 फीट की दूरी पर जाकर रुक गई। कार की पिछली लाल लाइट्स में कोहरा बाएं से दाएं तैरता हुआ दिखाई दे रहा था। तेज़ ठण्ड होने के बावज़ूद भी करण को पसीना आ गया। उसकी साँसे बहुत तेज़ चलने लगी थी। कई पलों तक वह अपने घुटनों पर बैठा रहा और साँसों को संतुलित करने लगा।

रात के सन्नाटे में कार के इंजन की तेज़ आवाज़ गूंज रही थी। तभी इंजन की आवाज़ के साथ ज़मीन पर कुछ गिरने की आवाज़ भी आयी। करण ने सिर उठाकर आवाज़ की दिशा में देखा। कार धीरे-धीरे वहाँ से जा रही थी और उसकी पिछली जलती लाल लाइट्स में नीचे पड़ा उसका बैग चमक रहा था। इससे पहले की वह कुछ समझ पाता कार उसके देखते-ही-देखते तेज़ एक्सीलेटर के साथ कोहरे में ग़ायब हो गई। कार के इंजन की आवाज़ दूर और दूर होती चली गई और पिछे वातावरण में छोड़ गई वही जानी पहचानी ख़ामोशी। अब जैसा कि प्रकृति को खाली जगह पसन्द नहीं, इसलिए झिंगुरों ने चिर्र-चिर्र के अपने शोर से वह खाली जगह तुरन्त ही भर दी।

“ग़लत इंसान से उम्मीद कर बैठा!” अपना सिर नीचे लटकाते हुए वह बड़बड़ाया।

इस बार लड़की की उस हरक़त से वह बहुत परेशान हो उठा था। गुस्से में आकर उसने जमीन पर जूते से ठोकर दे मारी।

“एहसान फरामोशssss!” वह ज़ोर से चीख़ा।

कितनी ही देर तक वह ठगा-सा पीछे खड़ा अँधेरे में पड़े अपने बैग को घूरता रहा। फिर कुछ देर बाद वह बड़े ही भारी मन से अपने बैग की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगा। परेशान हाल में उसने अपना बैग झाड़ते हुए उठाया और कंधे पर लटका लिया।

उसके चेहरे पर दर्द और थकान साफ़ झलक रही थी। तभी एकाएक उसने अपने जबड़े कस लिए और मन ही मन एक बड़ा फ़ैसला लिया कि अब वह सड़क के रास्ते पैदल ही अपना सफ़र जारी रखेगा चाहे कुछ भी हो जाए। अपने इस बड़े फैसले के साथ अब वह आगे बढ़ रहा था।

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to be continued. . . . .