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एक सुंदर दिन: हिंदी दिवस
"भाषा में जितनी सहजता लाओगी, विचार उतने गहरे मालूम पड़ेंगे और हर एक शब्द से रस टपकेगा।"
"रस टपकेगा शब्दों से?", अपने प्रियतम को देखकर हंसते हुए उसने कहा।
"उदाहरण के तौर पर, मेरी इस पुरानी नज़्म को पढ़ो। अच्छा सुनो, अज्ञेय का वह गीत याद है?" प्रियतम ने कहा।
"जो पहली दफा सुनाया था आपने। भूल कैसे जाऊं? तो कहो, क्या मैं भी तुम्हारे ध्यान में हूं?", हंसते हुए उसने अपने मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा और प्रियतम के साथ गीत याद करने लगी-
''वेदना अस्तित्व की, अवसान की दुर्भावनाएँ
भव-मरण, उत्थान-अवनति, दु:ख-सुख की प्रक्रियाएँ
आज सब संघर्ष मेरे पा गए सहसा समन्वय
आज अनिमिष देख तुमको लीन
मैं चिर-ध्यान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
बह गया जग मुग्ध-सरि-सा
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!"

उसके साथ अज्ञेय के सुंदर गीत का गायन करते प्रियतम ने अपनी प्रेयसी को सीने से लगाया और दोनों ने एक सुंदर साहित्य एवं प्रेममयी भोर से दिन आरंभ किया।
ललाट चूमते हुए उससे कहा-
"हिंदी दिवस की शुभकामनाएं प्रिये।"



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