...

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मिस रॉन्ग नंबर 15
#रॉन्गनंबर

~~~~ पार्ट 15 ~~~~

(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)

आखरी पल~~~~

"इस तरह फिर मैं उसके उस आकृतियों के बीच पहुंच गई... उसने वहां से वो गुड़ियां उठा ली...! मुझे घसीटते ले जाने की वजह से काफी जगह की आकृतियां फैल कर धुंधली हो गई थी...! वो उन आकृतियों को फिर से... कोई... , बड़े अजीबसे मंत्र बोलते हुए... आटा.. या किसी पावडर से उन्ही रेखाओं को दोहराता गया...! जब उसकी वो आकृतियां पूरी तैयार हो गई तब...."

कोमल कुछ सोचते हुए बोले जा रही थी...!

अब आगे~~~~

हां...!!! "कोमल"... अब.. अब.. मुझे उसका नाम जो पता चल गया था...! सचमुच में कोमल ही तो थी वो.... पर अब मेरे लिए वो मिस रॉन्ग नंबर न रहते हुए 'मेरी दोस्त कोमल' जो बन चुकी थी...!
उसकी एक - एक बात को मैं बड़े गौर के साथ सुनता जा रहा था । उसकी बातें, उसके हावभाव, बीच में उसके साथ हुई हाथापाई से जहां जहां उसे लगा था वहां वहां से शायद थोड़ी दर्द की टीस भी उठती जा रही थी.. तो हल्की सी चेहरे की लाइनें दर्द के साथ बदलती जा रही थी...!
वैसे तो उसके द्वारा बोले गए हर एक शब्द में सच्चाई नजर आ रही थी । क्योंकि बातो का सिक्वेंस काफी सटीक तथा सरल लग रहा था । कहीं से भी कोई भी उसमें नुक्स नही निकल सकता था ।.... हां.. भाई... वो पत्रकार जो है...! सारी बातों को सही क्रम में लगाने की आदत तो होनी ही चाहिए .....

पर पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है.... की.. उसकी बातों में से कुछ बातें ऐसी है जो छुपा कर.. या दबा कर.. बोली जा रही है...! या तो कुछ झूठ या फिर आधा सच...! पर क्रम ऐसा की किसी सामान्य इंसान को आसानी से धोखा दिया जा सके । या शायद हो सकता है की उसके व्यवसाय के पॉलिसीज, नियमों के चलते वह सारी की सारी बाते मुझे बताना उसे सही न लग रही हो...! ..... वैसे हमारी पहचान भी ऐसी कितनी है ???... ऐसे में उसका छुपाना लाजमी भी है....!
पर पता नही क्यों मुझे और अधिक से अधिक जानने की उत्सुक बेचैनी सी हो रही थी । या.... शायद मैं उसके केस के बारें में नही... बल्कि उसके खुद के बारे में अधिक से अधिक जानने की चाहत में था...! या उसकी मोहक अदाओं वाली बातें कभी खत्म ही न हो लगता जा रहा था । अब , इस वक्त मैं उन असुरों जैसा था जो अमृत पान के लिए लालायित थे... और वो 'मोहिनी' थी... उसकी गहन सम्मोहन में मैं अधिक से अधिक फंसता जा रहा था... या यूं कहूं की मैं तो खुद ही फंसना चाह रहा था ...!

अचानक उसने मेरे आंखों के सामने फिर से अपनी मदिर सुरीली उंगलियों को नचाते हुए चुटकी बजाई... "अरे मैं बताती जा रही हूं और तुम कहां खोए हुए हो ??"

उसके ये कहते ही वह झेंप सा गया... फिर अपने को संभालते हुए बोला...

"नहीं... कुछ नही.. तुम्हारी ही बातों पर गौर कर रहा था... आय मिन... मैं उस वाकियें में ही रंग गया हूं...!"
जीत किस मुंह से कहे ?? की मैं तो तुममें ही ज्यादा खोता जा रहा हूं...!!


( क्रमशः ~~~~ )

(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~