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इश्क इबादत - 2
अब तक तो आप वैष्णवी को जान गए होंगे और अंदाजा भी होगा की अब क्या होगा? हम्म तो अब आगे बढ़ते है। हां तो मैं कह रही थी, की वो क्लास में आया और वैष्णवी के ठीक सामने बैठ गया और अपने दांतो की नुमाइश करने लगा। कसम से वो आवारगी वो बेबांकी वो बेपरवाही वो हसी उफ्फ! वैष्णवी की नज़र लिखते लिखते ऊपर की ओर उठी और सीधे विश्वास पर जा पड़ी। विश्वास कौन हा हा हा इन महाशय का नाम ही विश्वास है। हां तो मैडम वैष्णवी की नज़र तो विश्वास पे टिकी और ऐसी टिकी की उसकी दांतो की नुमाइश में वैष्णवी के दिल की अजमाइश हो रही थी। नज़रे बार बार ना चाहते हुए भी उसे देखने को बेचैन थी ये पहली बार था जब किसी को बस एक नज़र देख के वैष्णवी का दिल बाहर उछाले मार रहा था। मज़े की बात तो ये की विश्वास को खबर तक नहीं की किसी ने सिर्फ एक नज़र देख कर ही अपना दिल निकल कर उसके सामने रख दिया है। कैसे धड़कनों को काबू करते है क्या पता। वैष्णवी के लिए क्लास में उसके सामने बैठना मुश्किल हो रहा था बड़ी मुश्किल से उसने खुद को नार्मल कर रखा था सांसों को धौकनी बनने से रोक रखा था।हथेलियों में पेन पकड़ना मुश्किल था इतना पसीना आ रहा था
to be continued
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