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...तलाश–ए–मंज़िल...
क्या है मंजिल

बहुत सोचा की दुनिया की हक़ीक़त क्या है कि इस के लिए क्यूं मैं इतनी मेहनत करू जब की ये सब तो खत्म होने वाला है! सब तो दिखावा है हक़ीक़त तो बस दिल का धड़कना और फिर उस का रुक जाना है! बाकि तो बस वक्त के अनुसार चल रहे है बिना किसी मक्सद के की दुनिया में वो क्यूं रुके है और किसलिए पैदा हुए है ये सब के सब अपनी हकीकत से बहुत दूर है और ग्लैमर की लाइटनिंग को धर्म और रास्ता समझ लिया है।

किसी ने कहा है कि :-

जिंदगी एक दम (सांस) के सिवा कुछ भी नही

दम है ही क्या, एक रम (जहर) के सिवा कुछ भी नहीं । ।

मैं मंजिल की तलाश में हूं जो सिर्फ इश्क के रास्ते पर चल कर मिलता है! इश्क वो जो किसी एक से न हो कर कुल इंशानियत से हो ! जिसमे भेद भाव की गुंजाईश न हो, और सब को एक नजर से देख कर जिस राह की तस्वीर दिखती है उसी राह पर मंजिल होती है आशिकों की..!
ये वो आशिक नहीं है कि किसी हसीना पर फिदा होकर अपने आप को ही भूल जाए ।। मैं ऐसे इश्क की बात कर रहा हूं जहा तुम्हारी रूह तुम्हारे तलब मैं तुम्हारा इंतजार करे.. जहा जिंदगी और मौत की हकीकत से पर्दा उठ कर फिर जिंदगी और मौत की हकीकत की खबर मिल जाए और जहा तुम्हे तुम्हारा रब (तू) मिल जाए....

मैं तलाश में हूं ऐसे जिंदगी की जिसमे मैं की मैं न हो, बस और बस,
तू ही तू हो!!!

जहां मैं की आरजू खत्म हो जाए और जहां तू मिल जाएं! बस यहीं तो मंजिल है जिसकी तलाश में हूं मैं!