...

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सिर्फ तुम
तुम्हें यकीन न हो हम पर तो बिछड़ कर देख लो,
तुम मिलोगे सबसे, मगर हमारी ही तलाश में।

इश्क का कोई रंग नहीं फिर भी वो रंगीन है,
मोहब्बत का कोई चेहरा नहीं फिर भी वो हसीन है।

कर दे नजर-ए-करम मुझपर मैं तुझ पर एतबार कर लूँ,
दीवाना हूं मैं तेरा ऐसा कि दीवानगी की हद पार कर लूं।

होता अगर मुमकिन, तुझे ‪साँस‬ बना कर रखते सीने में !
तू रुक जाये तो मैं नही, मैं ‪‎मर‬ जाऊँ तो तू नही !!

नहीं बस्ती किसी और की सूरत अब इन आँखों में,
काश की हमने तुझे इतने गौर से ना देखा होता ..

दिखने में वो बहुत गरीब थी साहब पर..
उसकी हँसी किसी शहजादी से कम नहीं थी।

जागना भी कबूल है तेरी यादो में रात भर,
तेरे एहसासों में जो मज़ा है वो नींद में कहा!!

में नासमझ सही पर वो तारा हूँ
जो तेरी ख्वाइशों के लिए सौ बार टूट जाऊ

तेरे इश्क़ में में इस तरह नीलाम हो जाऊ….
आख़री हो तेरी बोली और में तेरे नाम हो जाऊ

कितनी खूबसूरत हो जाती है दुनिया जब कोई अपना कहता है
© दो शब्द