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चिट्ठी
#चिट्ठी
लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी। जब वहाँ पर सुप्रिया आई तो निकिता ने बड़ी बेचैनी से पूछा कौन है किसकी चिट्ठी है बताओ सुप्रिया उसने कहा रक्षित की| रक्षित ही था जो उस चिट्ठी भेजता था अंजान के नाम से| दरसल यह कहानी शुरू हुई थी उस दिन से जब रक्षित ने उसे डांस करते हुए देखा था अनुअल् डे पर उस देखते ही उसने ठान लिया था अब तो उसे ही वो अपनी जिंदगी का मकसद बनायेगा | वो उसे रोज़ एक चिट्ठी लिखता और वो उसे पढ़ कर यह सोचती की यह आखिर भेजी किसने है जो उसे तनहाई में भी उसे ढूंढता है | वो रक्षित से बहुत नफरत करती थी पर उसे मालूम नहीं था की रक्षित ही उसे मन ही मन चाहता है बहुत दिन गुज़र गए कोई चिट्ठी नहीं आई रक्षित भी नहीं दिखा कुछ दिन से फिर कुछ दिन बाद जाकर पता लगा की रक्षित की मौत हो गई निकिता ने कहा चलो अच्छा हुआ कोई है नहीं अब मुझे सताने वाला यह उसने बोला ही था की कुछ देर बाद सुप्रिया का फोन आया की मुझे पता चल गया है की तुम्हे चिट्ठी कौन भेजता था और वो यह केहकर् रोने लगी उसने उसे लिएब्ररी में बुलाया निकिता वहाँ पर दो घण्टे से खड़ी थी सुप्रिया वहाँ आई और जब उसने निकिता को बताया की जो उसे चिट्ठी भेजता था अंजान बनकर वो और कोई नहीं बल्कि रक्षित है उसके पैरों तले ज़मीन निकल गई उसके आँसुं नहीं रुके और वो खुदको कोसती रही सुप्रिया ने कहा वो मरते दम तक सिर्फ़ तुम्हारा नाम लेता रहा और मुझसे बोल अंजान बनकर उसको चिट्ठी लिखने वाला मैं ही था उसको बोलना की मुझे ढूंढे नहीं वर्ना थक जायेगी | वो रोते रोते कहने लगी मैं कितनी पागल हूँ जो मेरे सामने था उसे ढूंढ रही थी मुझे माफ करदो रक्षित बोल कर वो रोने लगी| और आज तक वो उसे ही अपना सब कुछ मानती है|
© alone

God sabko unki life main esa insan dena jo unhe marte dam tak chahe.