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" वो काली किताब " लघु कथा

एक गांव में एक उर्वशी नामक एक युवती रहती थी जिसकी उम्र करीब 15 वर्ष की थी जो बहुत ही सुंदर और सादगी पसंद लड़की थी उसे सजना सवरना बिल्कुल भी पसंद ना था मगर वो व्यवहार से थोड़ी चंचल थी ,उसे पढ़ाई से बहुत लगाव था वह अपने ही गांव के एक छोटे से स्कूल में पढ़ाई करती थी मगर जब भी उसे मौका मिलता वो रविवार के दिन पास ही के शहर में जाकर एक पुस्तकालय से पढ़ने के लिए कुछ पुस्तक ले आया करती थी पुस्तकालय में उर्वशी के पिता नंद जी की पहचान थी जिसके कारण उर्वशी को पुस्तक सबमिट करने में एक-दो दिन देर हो जाए तो उसे वहाँ कोई कुछ ना कहता था।

एक बार उर्वशी बस से शहर जा रही थी उसी बस में एक मयंक नाम का युवक भी था जो उर्वशी को देखे जा रहा था जिसके देखने की वजह से उर्वशी थोड़ी असहज सी महसूस कर रही थी,
लड़का दिखने में ठीक-ठाक था उसके पहनावे से लग रहा था वो किसी अमीर घर का लड़का है, मयंक ने उर्वशी की नर्वसनेस को महसूस करते हुए उर्वशी से सीधी बात करना उचित समझा ।

इस कारण वह उर्वशी के सामने जाकर अपने कांधे पर रखे बैग को ठीक करते हुए बोला - ''हेलो मैं मयंक, क्या मैं आप के बगल वाली सीट में बैठ सकता हूं।"

उर्वशी ने मयंक की बातों को अनसुना कर दिया और बस की खिड़की की ओर मुंह करके बैठ गई।

मयंक ने मन ही मन में कहा- "एटीटूड....ह्म्म्म आई लाइक इट..."

ऐसा कहकर मयंक थोड़ा मुस्कुराया और बिना कुछ बोले उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गया।

मयंक के सीट पर बैठते ही, उर्वशी ने उसकी तरफ देख कर कहा -
"ओह ,हेलो मैंने तो आपको यहां बैठने को कहा नहीं, फिर आप यहां...."

मयंक ने उर्वशी की बात बीच में काटते हुए एटीटूड से कहा - "तो आपने मना भी नही किया इसलिए मैं बैठ गया ।"

उर्वशी थोड़ा झिझकते हुए बोली - "हां तो मैं अभी बोल रही हूं, आप मेरे बगल वाली सीट में नहीं बैठ सकते ,जाइये यहां से उठिये यहां से,यहाँ इतनी सारी सीट्स हैं आप जाकर वहाँ बैठ जाइये ।"

मयंक बोला- "मुझे ये सीट पसंद हैं इसलिए मैं तो अब यही बैठूंगा, तुम्हें प्रॉब्लम हैं तुम चली जाओ ।"

उर्वशी ने मयंक से ज्यादा बहस करना सही नहीं समझा इसलिए वो उस सीट से हटते हूए मयंक को "सढ़ू "बोलकर दूसरे सीट में जाकर बैठ गई।

मयंक अपनी ठुड्डी सहलाते हुए होठों ही होठों में बुद्बुदाया - "तीखी मिर्ची....।"

मयंक की बुद्बुदाहट उर्वशी ने सुन ली, मयंक से झगड़ते हुए बोली - -"हे यु क्या, क्या कहा तुमने अभी-अभी मुझे।"

मयंक ने अपना कंधा उठाते हुए कहा - "क्या कहा मैंने कुछ भी तो नहीं।"

मयंक और उर्वशी की कहासुनी आगे बढ़ पाती उससे पहले उर्वशी का स्टॉप आ गया और उर्वशी अपने स्टॉप पर उतर गई।

उर्वशी अभी कुछ ही दूर चली थी कि उसने देखा मयंक उसका पीछा कर रहा है ।

वो थोड़ा रुकी और बिना सोचे समझे मयंक से जाकर बोली -"तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो क्या ,चाहते हो तुम मुझसे।

मयंक ने उर्वशी को समझाते हुए कहा -"देखो मैं तुम्हारा कोई पीछा-विछा नहीं कर रहा हूं ,मुझे तो बस लाइब्रेरी जाना था ,मैं बस इसलिए यहां पर आया हूं और कोई बात नहीं।"

उर्वशी कमर में हाथ रखते...