...

4 views

" वो काली किताब " लघु कथा

एक गांव में एक उर्वशी नामक एक युवती रहती थी जिसकी उम्र करीब 15 वर्ष की थी जो बहुत ही सुंदर और सादगी पसंद लड़की थी उसे सजना सवरना बिल्कुल भी पसंद ना था मगर वो व्यवहार से थोड़ी चंचल थी ,उसे पढ़ाई से बहुत लगाव था वह अपने ही गांव के एक छोटे से स्कूल में पढ़ाई करती थी मगर जब भी उसे मौका मिलता वो रविवार के दिन पास ही के शहर में जाकर एक पुस्तकालय से पढ़ने के लिए कुछ पुस्तक ले आया करती थी पुस्तकालय में उर्वशी के पिता नंद जी की पहचान थी जिसके कारण उर्वशी को पुस्तक सबमिट करने में एक-दो दिन देर हो जाए तो उसे वहाँ कोई कुछ ना कहता था।

एक बार उर्वशी बस से शहर जा रही थी उसी बस में एक मयंक नाम का युवक भी था जो उर्वशी को देखे जा रहा था जिसके देखने की वजह से उर्वशी थोड़ी असहज सी महसूस कर रही थी,
लड़का दिखने में ठीक-ठाक था उसके पहनावे से लग रहा था वो किसी अमीर घर का लड़का है, मयंक ने उर्वशी की नर्वसनेस को महसूस करते हुए उर्वशी से सीधी बात करना उचित समझा ।

इस कारण वह उर्वशी के सामने जाकर अपने कांधे पर रखे बैग को ठीक करते हुए बोला - ''हेलो मैं मयंक, क्या मैं आप के बगल वाली सीट में बैठ सकता हूं।"

उर्वशी ने मयंक की बातों को अनसुना कर दिया और बस की खिड़की की ओर मुंह करके बैठ गई।

मयंक ने मन ही मन में कहा- "एटीटूड....ह्म्म्म आई लाइक इट..."

ऐसा कहकर मयंक थोड़ा मुस्कुराया और बिना कुछ बोले उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गया।

मयंक के सीट पर बैठते ही, उर्वशी ने उसकी तरफ देख कर कहा -
"ओह ,हेलो मैंने तो आपको यहां बैठने को कहा नहीं, फिर आप यहां...."

मयंक ने उर्वशी की बात बीच में काटते हुए एटीटूड से कहा - "तो आपने मना भी नही किया इसलिए मैं बैठ गया ।"

उर्वशी थोड़ा झिझकते हुए बोली - "हां तो मैं अभी बोल रही हूं, आप मेरे बगल वाली सीट में नहीं बैठ सकते ,जाइये यहां से उठिये यहां से,यहाँ इतनी सारी सीट्स हैं आप जाकर वहाँ बैठ जाइये ।"

मयंक बोला- "मुझे ये सीट पसंद हैं इसलिए मैं तो अब यही बैठूंगा, तुम्हें प्रॉब्लम हैं तुम चली जाओ ।"

उर्वशी ने मयंक से ज्यादा बहस करना सही नहीं समझा इसलिए वो उस सीट से हटते हूए मयंक को "सढ़ू "बोलकर दूसरे सीट में जाकर बैठ गई।

मयंक अपनी ठुड्डी सहलाते हुए होठों ही होठों में बुद्बुदाया - "तीखी मिर्ची....।"

मयंक की बुद्बुदाहट उर्वशी ने सुन ली, मयंक से झगड़ते हुए बोली - -"हे यु क्या, क्या कहा तुमने अभी-अभी मुझे।"

मयंक ने अपना कंधा उठाते हुए कहा - "क्या कहा मैंने कुछ भी तो नहीं।"

मयंक और उर्वशी की कहासुनी आगे बढ़ पाती उससे पहले उर्वशी का स्टॉप आ गया और उर्वशी अपने स्टॉप पर उतर गई।

उर्वशी अभी कुछ ही दूर चली थी कि उसने देखा मयंक उसका पीछा कर रहा है ।

वो थोड़ा रुकी और बिना सोचे समझे मयंक से जाकर बोली -"तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो क्या ,चाहते हो तुम मुझसे।

मयंक ने उर्वशी को समझाते हुए कहा -"देखो मैं तुम्हारा कोई पीछा-विछा नहीं कर रहा हूं ,मुझे तो बस लाइब्रेरी जाना था ,मैं बस इसलिए यहां पर आया हूं और कोई बात नहीं।"

उर्वशी कमर में हाथ रखते हुए बोली -"अच्छा तो अब तुम्हें ये भी मालूम हो गया कि मैं भी लाइब्रेरी जा रही हूं।"

मयंक मुस्कुराते हुए अपनी बातों को खीचते हुए बोला -"अच्छा तो आप भी... लाइब्रेरी जा रही हैं।"

उर्वशी अभी भी मयंक को सवालिया नजर से देख रही थी कि तभी वहां एक बुजुर्ग व्यक्ति आये और मयंक को "मयंक बाबा" कहकर पुकारने लगे ।

जिसे देखकर उर्वशी थोड़ी हैरान हो गई।
वो हैरानी से उस बुजुर्ग व्यक्ति से बोली- "अंकल, क्या आप इन्हें जानते हैं?"

दरअसल वह बुजुर्ग व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि लाइब्रेरी का मैनेजर महेंद्र था।

महेंद्र जी उर्वशी को मयंक से मिलवाते हुए बोले - "जी बेटा यह हमारे बड़े साहब के बेटे मयंक त्रिवेदी है।"

महेंद्र जी की बात सुनकर उर्वशी को अपनी गलती का अंदाजा हुआ और और वह जैसा मयंक के बारे में सोच रही थी वैसा कुछ भी नहीं था।

ये बात पता चलते ही उर्वशी ने मयंक से हिचकिचाते हुए बोली- "मुझे माफ करना मैने आपको गलत समझा ।"

बिना मयंक के जवाब का इंतजार किए उर्वशी बोली- "वैसे मुझे जाना चाहिए काफी लेट हो रही है ।"

इतना कहकर उर्वशी वहां से दौड़कर लाइब्रेरी में चली गई।

इधर मयंक उर्वशी को देख कर मुस्कुराए जा रहा था जिसे देखकर महेंद्र जी ने कहा- "छोटे बाबा क्या आप इन्हें जानते हैं?"

मयंक खोए हुए अंदाज में बोला -"जानता तो नहीं हूं ,मगर जानना चाहता हूं।"

महेंद्र जी बोले -"जिस छोटे बाबा मैं कुछ समझा नहीं।"

मयंक हड़बढ़ाते हुए बोला-" जी कुछ नहीं ,चलिए चलते हैं।"

मयंक के इतना कहते ही महेंद्र जी और मयंक दोनों आगे बढ़ गए मगर लाइब्रेरी तक पहुंचते-पहुंचते मयंक ने उर्वशी के बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल कर ली थी।

मयंक को देखते ही उर्वशी अपनी नज़रे चुराने लग जाती थी,

मयंक उर्वशी की खातिर हर रविवार आता मगर कभी वो उर्वशी से मिल पाता, तो कभी नही मिल पाता था ।

धीरे-धीरे वक्त बीतता गया उर्वशी और मयंक दोनों अच्छे दोस्त बन गए,
कुछ वक्त और बीत गए और ये दोस्ती कब मोहब्बत में तब्दील हुई दोनों को पता ना चला।

अब उर्वशी की उम्र 17 साल हो चुकी थी वो दोनों अक्सर छुप-छुपकर एक दूसरे से मिलने लगे।

इसी दौरान उर्वशी को लाइब्रेरी से एक काली किताब नामक किताब मिली, जिसे देखकर उर्वशी को उस किताब को पढ़ने की लालसा उसके मन में जागृत होने लगी, और वह उसे चुपके से अपने बैग में भरकर अपने पास रख लिया।

मगर वो उसे जब भी पड़ती वो उस किताब में लिखी बातों को बकवास समझती मगर उस किताब से उसका मनोरंजन होने लगा था इस वजह से वो उसे धीरे-धीरे पड़ने लगी थी।
वह इस किताब को पढ़कर बहुत हंसती थी मानो कोई चुटकुले वाले किताब पढ़ रहे हो।

दरअसल उर्वशी को यह किताब बकवास लगती थी जो किसी सनकी व्यक्ति ने लिखी होगी वो ये समझती थी।

वक्त का पहिया चलता गया और उर्वशी 18 साल की हो चुकी थी और मयंक 22 वर्ष का।
उर्वशी मयंक से शादी करना चाहती थी, मयंक भी उर्वशी से शादी करना चाहता था इसलिए मयंक ने फैसला किया की वो अपने घर पर उर्वशी के बारे में बात करेगा मगर वो उर्वशी के बारे में बात करे उससे पहले मयंक के पिताजी ने खुश होते हुए मयंक के सामने अपनी बात रखते हुए बोले - "बेटा मयंक ,मैंने अपने दोस्त किशन की बेटी के साथ तेरा रिश्ता तय कर दिया हैं।"

मयंक अपने पिता की बात सुनकर हैरान रह गया और गुस्से से बोला - "ये क्या पिता जी आपने मेरी पसंद भी नही पूछी और मुझसे बिना पूछे शादी तय कर आये, मैं ये शादी नहीं करूंगा ,मैं किसी और से प्यार करता हूं।"

मयंक के पिता ने शांति भरे भाव से बोले - "लेकिन बेटा मैं अपने दोस्त को जुबान दे चुका हूं, मैंने उन्हें मना नहीं कर सकता ,अगर तुम किसी और से प्यार करते हो ,तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया।"

मयंक ने कहा - "पिताजी बताता तब ना, जब आप मेरी इच्छा जानने की कभी कोशिश करते हैं।"

मयंक के पिताजी ने मयंक को समझाते हुए कहा - "ठीक है बेटा अगर तुम्हारी पसंद ,हमारे खानदान को मैच करती होगी तो मैं बिल्कुल तुम्हारी शादी उस लड़की से करवा दूंगा लेकिन अगर नहीं करती होगी तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता तुम्हें अपने प्यार को भूलना होगा।"

(ये बात वो मयंक से इसलिए कह रहे थे, क्युकी मयंक के पिता को उर्वशी और मयंक के बारे में पता चल गया था तो मयंक के पिता जी ने उर्वशी के परिवार के बारे में पता करवाया था जिससे उन्हें पता चला था की उर्वशी एक मास्टर जी की बेटी हैं जो मिडिल क्लास परिवार से आते हैं ।)

मयंक ने गुस्से से कहा- "पिता जी मैं अपना प्यार नहीं भूल सकता, आप अपना वादा तोड़ दीजिए ,मैं ये शादी नहीं करूंगा, हरगिज़ नहीं करूंगा।"

मयंक के पिताजी जो अब तक शांत थे वो मयंक की बात सुनकर तिलमिला उठे और मयंक से बोले-"अगर तुम ये शादी नहीं करोगे, तो निकल जाओ मेरे घर से।"

मयंक गुस्से से बोला - "हाँ-हाँ चला जाऊंगा ,मुझे भी नहीं रहना, जिस घर में मेरी बातों का मान नहीं ,मुझे उस घर में नहीं रहना।"

ऐसा कहकर मयंक अपने कमरे में जाकर गुस्से से अपना समान पैक करने लगा कि तभी मयंक की माँ मयंक के कमरे में आई और रोते हुए बोली - "बेटा तुम कहाँ जाओगे घर छोड़कर, मुझे अकेला छोड़कर ,मत जा बेटा।"

मयंक गुस्से से बोला -" माँ ये बात आप पिता जी को जाकर क्यु नही समझाती।"

मयंक की माँ बोली -" बेटा वो मेरी बात कहाँ सुनते हैं जो आज सुनेंगे,मगर तु तो मेरा बेटा हैं न , तु तो मेरी हर बात मानता हैं,तो मेरी बात मान जा बेटा मत जा, कर ले ये शादी ।"

मयंक अपनी माँ की बातों का बिना जवाब दिये अपना समान लिए वहाँ से जाने लगा।

तभी मयंक की माँ मयंक का हाथ पकड़कर अपने सिर पर रखते हुए बोली -"मयंक तुझे तेरी माँ की सौगंध हैं जो तुने इस शादी से इंकार किया और यहाँ से गया तो...."

अपनी माँ की सौगंध सुनकर मयंक के आँखों से आँसू छलक पड़े, उसने रोते हुए कहा -" ऐसे क्यु किया माँ आपने आखिर क्यु ?

मयंक की मां रोते-रोते बोली -"बेटा अगर तू चला जाता तो हमारी समाज में थु-थु हो जाती, बरसो की बनाई हमारी इज्जत पल भर में मिट्टी में मिल जाती ।"

मयंक रोते हुए बोला -"माँ तुने अपनी सौगंध देकर 3 जिंदगी बर्बाद कर दी माँ, सिर्फ तेरी सौगंध की खातिर मैं शादी करूँगा मगर प्यार मैं तो सिर्फ उर्वशी से करता हूँ और उसी से ही करता रहूँगा ।

इधर उर्वशी मयंक और अपने शादी के सपने संजो रही थी मगर उसे कहाँ मालूम था उसकी जिंदगी बदलने वाली थी ।

मयंक की शादी जबरदस्ती मयंक के पिता की मर्जी से उनके दोस्त की बेटी से हो गई।

मयंक की शादी वाली बात जब उर्वशी को पता चली ,उर्वशी पागल सी हो गई वह तमतमाई हुई मयंक के सामने जा पहुंची ।

मयंक ने जब उर्वशी को देखा वो उसे देख पल भर के लिए उसमें खो गया वो बस उसे देखे जा रहा था ।

मगर उर्वशी गुस्से से मयंक से बोली - " मयंक अगर तुम्हें मुझसे प्यार नहीं था तो पहले ही बोल देना था मुझे, यूं मुझे धोखे में रखकर यू मेरे दिल के साथ खेलकर तुम्हें क्या मिला ,मैं तो कहीं की नहीं रही मयंक ,मैं तो लुट गई ...मुझे तुमने बर्बाद कर दिया मयंक...सबकुछ खत्म कर दिया तुमने ।"

ऐसा कहकर उर्वशी मयंक के सामने बेतहाशा रोने लगी ।

मयंक को उर्वशी के आँसू देखे नही गए वो उर्वशी को शांत करवाने की खातिर उसका हाथ थामते हुए बोला - " उर्वशी मेरी बात को समझने की कोशिश करो, मैं प्यार तो सिर्फ तुमसे ही करता हूँ और हमेशा तुमसे ही करता रहूँगा, मगर मेरी मजबूरी हैं उर्वशी जिसके कारण मुझे ये शादी करनी पड़ी ।

इतना कहते कहते मयंक के आंखों से भी आंसू बहने लगे लेकिन मयंक की शादी हो चुकी थी,इसलिए मयंक के आँसू उर्वशी के दिल को पिघला नही पा रहे थे ।

उर्वशी की मोहब्बत अब नफरत में तब्दील हो चुकी थी उसकी मोहब्बत अब इंतकाम चाहती थी।

उर्वशी ने अपने हाथ से मयंक का हाथ झटकते हुए अपने बहते हुए आंखों को अपने हाथों से पूछते हुए मयंक से बोली -"मयंक जिस तरह तुमने मेरे प्यार के साथ खिलवाड़ किया है, मैं भी तुम्हें नहीं छोडूंगी ,मैं भी तुम्हें बर्बाद करके रख दूंगी।

ऐसा कहकर उर्वशी अपने टूटे दिल के साथ अपने घर आ गई ।

उर्वशी अब उस काली किताब का सहारा लेने लगी थी ,जिस किताब को वो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए पढ़ा करती थी ।

अब "वो काली किताब" एकमात्र उसके जीने का सहारा बन गई थी, अब वह सिर्फ और सिर्फ मयंक को बर्बाद करने के लिए जी रही थी ,उसके सीने में जो दर्द था वो उसे टोने-टोटके सीख कर मिटा रही थी।

उर्वशी धीरे-धीरे उस किताब के जरिए एक काला जादू करने वाली औरत बन गई थी । उसने अपने काले जादू से मयंक के परिवार में परेशानियां खड़ी करनी शुरू कर दी ।
मयंक की पत्नी निर्मला, उर्वशी के टोने की वजह से इस दुनिया से चल बसी।

जब मयंक को पता चला कि उर्वशी काले जादू की दुनिया में चली गई है।


मयंक उर्वशी को चाह कर भी उसकी दुनिया से वापस नही ला सकता था ।

मयंक उर्वशी को चाहता तो बहुत था मगर वो उर्वशी थी ही नहीं जिसे कभी मयंक ने चाहा था,

मयंक भी अपने प्यार की चाह में धीरे-धीरे मायूसी के दलदल में फसता चला गया और उसने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया जहां सिर्फ उर्वशी की यादें और सिर्फ मयंक रहा करती थी।

उर्वशी गलतफेमि का शिकार हुई और वो गलत रास्ते में चली गई ।

"समाप्त "
======

#writtenbyआफरीन
#myshortstory #love #misunderstanding #vokalikitab #compliteshortstory
© sincere girl