दरीचे पर निगाहें
हर रोज़ की तरह
उस रोज़ भी दरीचे पर टिकी निगाहें
हाँ,था वही ख़ालीपन जो पूरित नहीं हो रहा था
भाविका की निगाहें आज भी अविजित को ढूँढती हैं
वो जानती है सच्चाई को शायद ये मुमकिन ही नहीं
अविजित को वो कभी देख भी पायेगी इस जन्म में
फिर भी वो आस का दीया निगाहों में जलाये
रोज़ ही उस दरीचे से अविजित का इंतज़ार करती है
और ये आस क्यों ना हो अविजित उसका पहला प्यार है
जिसके लिए उसने बरसों तक इंतज़ार का फ़ैसला किया है
कभी-कभी यूँ ही बैठे बैठे सोच हावी होती है भाविका की
क्या इंतज़ार करना या उम्मीद लगाना इतना भारी होता है
जबकि इस प्रश्न का उत्तर इंसान पहले से जानता है कि ये इंतज़ार आख़िरी लमहात में भी मुकम्मल नहीं होगा
इसी उधेड़बुन में कई दिन ,महीने ,बरस बीत गए
पर दरीचे पर निगाहें रोज़ ही किसी आस से टिक जाती है
शायद कहीं से अविजित की आने की उम्मीद वाली पाती मिले
प्रेम की पराकाष्ठा इसी में तय है कि
मैं तुम्हारा अंतिम सफ़र तक इंतज़ार करूँगी
तुम्हारी भाविका
पाती प्रेम की
अविजित और भाविका की कहानी
© mannkibaatein27
उस रोज़ भी दरीचे पर टिकी निगाहें
हाँ,था वही ख़ालीपन जो पूरित नहीं हो रहा था
भाविका की निगाहें आज भी अविजित को ढूँढती हैं
वो जानती है सच्चाई को शायद ये मुमकिन ही नहीं
अविजित को वो कभी देख भी पायेगी इस जन्म में
फिर भी वो आस का दीया निगाहों में जलाये
रोज़ ही उस दरीचे से अविजित का इंतज़ार करती है
और ये आस क्यों ना हो अविजित उसका पहला प्यार है
जिसके लिए उसने बरसों तक इंतज़ार का फ़ैसला किया है
कभी-कभी यूँ ही बैठे बैठे सोच हावी होती है भाविका की
क्या इंतज़ार करना या उम्मीद लगाना इतना भारी होता है
जबकि इस प्रश्न का उत्तर इंसान पहले से जानता है कि ये इंतज़ार आख़िरी लमहात में भी मुकम्मल नहीं होगा
इसी उधेड़बुन में कई दिन ,महीने ,बरस बीत गए
पर दरीचे पर निगाहें रोज़ ही किसी आस से टिक जाती है
शायद कहीं से अविजित की आने की उम्मीद वाली पाती मिले
प्रेम की पराकाष्ठा इसी में तय है कि
मैं तुम्हारा अंतिम सफ़र तक इंतज़ार करूँगी
तुम्हारी भाविका
पाती प्रेम की
अविजित और भाविका की कहानी
© mannkibaatein27