मानसून की बारिश
मैं निकला ही था बस घर के बाहर, कि पीछे से आवाज़ आई,
'सुनिये'...
मैं ठिठका और रुका पर पलटा नहीं, पता था की घरवाली को कुछ काम याद आ ही जाता है जाते जाते...
'जी' मैंने कहा...
वो बोली 'कितनी देर में आएँगे'
'क्या हुआ'
'जी मैं कह रही थी, बारिश का मौसम सा बन रहा है, बच्चों को स्कूल से लाना था, आप...'
'हाँ, ठीक है, मैं ही चला जाता हूँ'
'अच्छा सुनिये ना, आते वक़्त आलू और प्याज़ भी ले आइयेगा, शाम को आलू प्याज़ के पकोड़े बना दूँगी'
मैंने सोचा कुछ पल, फिर दिमाग में आया की आज काम ही क्या है, जाना तो कहीं था नहीं, बेवजह ऐसे ही निकल रहा था घर से, चलो कुछ काम ही निपट जाएं इसके...
शाम हो गयी, बारिश भी शुरू हो गयी और बच्चे भी अपने स्कूल का होमवर्क करने में व्यस्त हो गए... मैं नीरस मन से बैठा हुआ खिड़की के शीशे से बारिश देख रहा था...
इतने में बीवी आई, दोनों हाथ पीछे किये और आँखों में मुस्कराहट लिए, मेरी तरफ देखकर बोली,
'क्या हुआ, चाय पियोगे'
...