...

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मानसून की बारिश


मैं निकला ही था बस घर के बाहर, कि पीछे से आवाज़ आई,

'सुनिये'...

मैं ठिठका और रुका पर पलटा नहीं, पता था की घरवाली को कुछ काम याद आ ही जाता है जाते जाते...

'जी' मैंने कहा...

वो बोली 'कितनी देर में आएँगे'

'क्या हुआ'

'जी मैं कह रही थी, बारिश का मौसम सा बन रहा है, बच्चों को स्कूल से लाना था, आप...'

'हाँ, ठीक है, मैं ही चला जाता हूँ'

'अच्छा सुनिये ना, आते वक़्त आलू और प्याज़ भी ले आइयेगा, शाम को आलू प्याज़ के पकोड़े बना दूँगी'

मैंने सोचा कुछ पल, फिर दिमाग में आया की आज काम ही क्या है, जाना तो कहीं था नहीं, बेवजह ऐसे ही निकल रहा था घर से, चलो कुछ काम ही निपट जाएं इसके...

शाम हो गयी, बारिश भी शुरू हो गयी और बच्चे भी अपने स्कूल का होमवर्क करने में व्यस्त हो गए... मैं नीरस मन से बैठा हुआ खिड़की के शीशे से बारिश देख रहा था...

इतने में बीवी आई, दोनों हाथ पीछे किये और आँखों में मुस्कराहट लिए, मेरी तरफ देखकर बोली,

'क्या हुआ, चाय पियोगे'

मैंने कहा, 'हाँ'

तभी उसने हाथ आगे किये, एक हाथ में चाय की ट्रे और दूसरे में पकोड़ों की थाली...

'लीजिये'

मैं कुछ बोलता इससे पहले ही उसने कह दिया... 'आप फ़िक्र न करो, आपको जल्द ही एक अच्छी नौकरी मिल जायेगी, और सब पहले जैसा हो जायेगा...'

मैंने बोला 'कोशिश तो कर रहा हूँ, पर बात बनती इससे पहले ही कुछ अड़ंगा आ जाता है, साला किस्मत भी अपनी अजीब होती जा रही है'

बीवी बोली 'चलो ये बताओ, कल किस से मिलने जाना है' और कहकर उसने मेरे मुँह में एक आलू का पकौड़ा ठूंस दिया और मुस्कुरा दी

मैंने सोचा की इसको ये वक़्त मैं कभी नहीं देता था, आज है तो उसको पाकर मैं खुश नहीं हूँ, आखिर क्यों? वजह क्या है? शायद इसकी कद्र न करने की सज़ा मिली है मुझे... नहीं नहीं सज़ा नहीं है ये, ये वक़्त है मुझे सोचने देने का की मेरी पहली ज़िम्मेदारी क्या है

सोचते सोचते चाय खत्म हो गयी, और वो खाना बनाने चली गयी... रात नींद भी अच्छी आई और मुझे सुबह कब हुई इसका एहसास उसके उठाने से हुआ...

'सुनिये, आपको जाना नहीं है अपने दोस्त से मिलने, नौकरी के लिए आपने जिसको बोला था

उठिए भी, पानी गर्म कर दिया है, बच्चे चले गए स्कूल, शाम को माँ के पास जायेंगे स्कूल से, उनके मामा ले जायेंगे उन्हें'

मैंने कहा 'और कल स्कूल नहीं जाना फिर'

बीवी 'साहब मेरे, कल 15 अगस्त है, परसो रक्षा बंधन है और उसके बाद शनिवार और इतवार, मैं परसो जाकर ले आऊँगी'

मैं जल्दी जल्दी तैयार होकर भागा, आज इंटरव्यू है, और बारिश भी बेहिसाब आने को आमादा है जैसे... मैं फिर भी निकल गया, कार का वाइपर भी कुछ खराब था, सिर्फ दाहिना ही चल रहा था...

नौकरी मिल गयी मुझे, और तनख्वाह पहले की नौकरी से कम है पर मुझे मंज़ूर है... मैंने बीवी को फ़ोन किया...

'सुनो सोमवार से ऑफिस जाना है मुझे, शाम को कहीं फ़िल्म देखने चलें'

बीवी 'नहीं, फ़िल्म नहीं, आपके साथ रहना है मुझे, आप घर आएंगे तो मैं तैयार रहूँगी, फिर खाना खाने कहीं चल लेंगें, बच्चे भी नहीं हैं आज घर पर, तो दूर भी जा सकेंगें, नहीं तो सुबह स्कूल, नाश्ता, खाना, बर्तन, कपड़े, सफाई...

मैंने कहा 'ठीक है मेमसाब, खाना खा लेंगें कहीं बहार'

शाम को बारिश तेज़ हो गयी... मेरे घर से कुछ दूर एक रेस्तौरां था, पर उसके यहाँ बहुत बार जा चुके थे इसलिए मैं दुविधा में था, कार भी सही नहीं है... बीवी कहेगी की आज नौकरी लगी, दिन भी ख़ुशी का है पर देखो इनको...

बीवी: 'सुनिये, कार सही नहीं है, वो पास वाला रेस्तौरां खुला होगा, वहीँ चलते हैं, बस मुझे आइसक्रीम और पान दोनों खाना है उसके बाद'

अब वो रास्ता पैदल

एक छतरी

सिमटे हुए हम दोनों

छतरी के किनारे से गिरती पानी की बूँदें

उनका ज़मीन से छू कर छींट का पड़ना, हमपर

आँखों का मिचिया जाना

बिजली की चमक से सब दिख के गायब हो जाना

सूखे पत्ते भीग कर भारी हो जाना

भरे पेट और हलके मन से हम दोनों

मीठा पान और अपने एक एक हाथ से छतरी को पकड़े

हम अपने मकान तक आ गए

और मैं

शायद अपने घर
© सारांश