मन नहीं है।🍂
आज भी नदी बह रही है कल कल,
जिसके ऊपर से अक्सर गुजरता हूं मैं।
आज भी बन रहा सूर्य का धवल प्रतिबिंब,
जिसे रवि वासर पे जल अर्पण करता हूं।
आज भी किनारे पे खड़ा शिवालय,
मानो मेरी राह देख रहा हो।
पीपल मुझ तक नई कोमल कोपलें पहुंचा कर,
मानो मुझसे कुछ कह रहा हो।
लेकिन मेरा कुछ कहने का मन नही है।
आज नदी के साथ बहने का मन...
जिसके ऊपर से अक्सर गुजरता हूं मैं।
आज भी बन रहा सूर्य का धवल प्रतिबिंब,
जिसे रवि वासर पे जल अर्पण करता हूं।
आज भी किनारे पे खड़ा शिवालय,
मानो मेरी राह देख रहा हो।
पीपल मुझ तक नई कोमल कोपलें पहुंचा कर,
मानो मुझसे कुछ कह रहा हो।
लेकिन मेरा कुछ कहने का मन नही है।
आज नदी के साथ बहने का मन...