...

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बदलते हुए समाज में लड़की होने के मायने
हमारा समाज बदल रहा है!!


सब कहते है हमारा समाज बदल रहा है।
हम आगे बढ़ रहे है।
लेकिन
फ़िर लड़की होने के मायने आज भी वही क्यों है??
फ़िर क्यों लड़की को हर बात पे जज किया जाता है:
कि उसको घरेलू काम आता है कि नहीं
कि वो घर संभाल सकती है या नहीं
इतना खिलखिला के क्यों हंसती हो लड़की हो ना तो बस मुस्कुराओ,
वैसे क्यों बैठी है ठीक से बैठ ना,
क्यों लडको की तरह हर बात पे ज़िद करती है यह लड़की,
अरे ये गुस्सा ये एटिट्यूड कंट्रोल कर हम तो झेल लेंगे
पर शादी के बाद तेरा पति नहीं झेलेगा ये सब,
अरे, औरत का जन्म लिया है तूने:
ये सब नहीं चलेगा (नोट: औरत का जन्म=नर्क की ज़िंदगी)
अरे ये लड़की इत्ति आज़ाद खयाल क्यों है,
अरे, तू तो नाक कटा देगी ससुराल में मां-बाप का,


लड़की पढ़ी - लिखी हो,
फिर तो कल्याण ही हो गया बस,
चार अक्षर क्या पढ़ लिए हमें सिखाने लगी,
ग़लत बर्दाश्त ना करें और सही बात समझाने की कोशिश करें तो:
अपना ज्ञान अपने पास रख और हां इतना ही घमंड है ना अपने पढ़ाई लिखाई पे तो गले में मंगलसूत्र की जगह डिग्री डाल लेना

मतलब, हद्द हैं,
वो ना खुल के हंस सकती है,
ना रो सकती है ,
ना अपनी बातें दुनिया के सामने रख सकती हैं,
ना अपनी ज़िन्दगी अपने शर्तों पर जी सकती हैं
मानो उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही ना हो......

पर फ़िर भी सब कहते है,
हमारा समाज बदल रहा हैं
आगे बढ़ रहा हैं

क्या सच में हमारा समाज बदल रहा है??
क्या सच में हम आगे बढ़ रहे है??
या, जा
रहे हैं रसातल में दिन - ब - दिन????????????????
© kajal