भारत निर्माण
दोस्तों सहनशीलता देखनी हो तो राम की देखो।
सीखना है तो रामचरितमानस पढ़ो।
रामायण के हर अध्य्याय में आपको एक सिख मिलेगी जो
जो आपके जीवन को नई दिशा देगी।
श्री राम का बचपन जब शिक्षा के लिए कुलगुरु वशिष्ठ के आश्रम गए ।
और अल्पआयु में ही शास्त्रों की शिक्षा लिये अपने भाइयों के साथ
अयोध्या वापस आये
तत्पश्चात ऋषि विश्वमित्र के साथ दानवों असुरों के सर्वनाश के लिए वन को गए
तत्पश्चात उनकी शादी माता सीता से हुई
फिर वापस अयोध्या लौटे
कुछ दिनों के बाद राम को वनवास जाने की आज्ञा मिली जो माता कैकयी की इच्छा थी।
राम ने मुस्कुरा के आज्ञा का पालन किया
और भाई भरत को राज काज सौपकर वन को चले गये।
संग में माता सीता और अनुज लछमण भी वन को चले ।
राम भगवान विष्णु के अवतार हैं लेकिन उनका जीवन अभी एक मनुष्य का है
उनका धर्य देखिए।
एक राजकुमार जो कि एक राजा बनकर अयोध्या में राज में करता
उन्होंने सब त्याग कर माता कैकयी को दिए वचनों से मजबूर हुये पिता की वचन की मर्यादा के लिए
अपनी खुशी का बलिदान कर दिया
वहाँ उन्होंने एक सर्वश्रेष्ठ पुत्र होने प्रमाण दिया जो पिता के वचन और माँ की इच्छा दोनों का मान रखकर वन को चल दिये।
आज हमारे भारत मे ही किसी भी विद्यालय महाविद्यालय में रामायण की शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं?
आप बिना राम जैसे पुत्र के समाज मे रामराज्य की परिकल्पना कैसे कर सकते हैं
उद्योग आवश्यक है कारोबार आवश्यक है
तो संस्कार और परमपरा की शिक्षा क्यों नहीं
आज डॉक्टर भी आत्महत्या कर लेता है
इंजीनियर भी और एक अभिनेता भी
धन है पर मानसिक शांति नहीं
ऐसे शिक्षा का क्या महत्व जिंसमे धन तो है पर मानसिक सुख नहीं
शिक्षा अनिवार्य है एक जीवन की प्रगतिशील कार्यप्रणाली के लिए
डॉक्टर बनो इंजीनियर बनो प्रसाशनिक अधिकारी बनो
अच्छी बात है
लेकिन क्या भारत की सनातन संस्कृति जो पूरे विश्व को एक जीवन मंत्र देती है वसुदैवकुटुंब का उसको भारत के शिक्षा संस्थानों में ही जगह न मिले ।
पश्चिमी शिक्षा से भारत को कभी फायदा हुआ ही नही है
मैकाले की शिक्षा नीति एक कूटनीतिक षड्यंत्र था भारत को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का ।
मैकाले जानता था कि भारत मे अगर राज करना है तो पहले उनके संस्कृति पे आक्रमण करो और उनके ग्रन्थों को जो जीवन को सफल और एकता के सूत्र में बांध कर रखती है उसको नई शिक्षा पद्धति लाकर गुरुकुल की भारतीय प्राचीन वैदिक संस्कृति को बाहर निकाल फेंको।
आज वही हो रहा है देश आजाद हो गया अंग्रेज़ो से
लेकिन आज भी हम उनके गुलाम हैं
भारत जहाँ हिंदी भाषा की आज स्थिति
दयनीय है
अंग्रेजी भाषा जो जबदस्ती हमारे ऊपर कूटनीतिक षड्यंत्र कर लादी गयी है
उस पर हमें अभिमान करते हैं
जिसने भारत को अपने संस्कृति और परंपरा वंचित कर दिया।
चीन में चीनी बोला और लिखा जाता है
जापान में जापानी भाषा
सभी संयुक्त देश अपने अपने राष्ट्रीय भाषा पे अपना कार्य करते हैं
लेकिन भारत मे हिंदी सिर्फ एक राष्ट्रभाषा है जो सिर्फ नाम के लिए है
कब तक राजनीतिक फायदों के लिए हम अपना नुकसान करेंगें
सरकारें जानती हैं कि रामायण और गीता अगर विद्यालय और महाविद्यालय में अनिवार्य किया गया तो आपसी समरसता और अच्छे और बुरे का ज्ञान लोगो को स्वतः ही मिल जायेगी
फिर उनकी हिन्दू मुस्लिम और दलित पिछड़ा वर्ग की राजनीति नहीं चलेगी
क्योंकि सब को अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाएगा ।
आज राम की धरती में राम तो है लेकिन सिर्फ नाम बनकर
गीता तो है लेकिन एक पुस्तक की तरह जो जीवन को दिशा देने को तैयार है
लेकिन हम शेक्सपियर की कहानियों को अपना आदर्श मान कर बैठे हैं
हम एलिजाबेथ को रानी मानकर बैठे हैं
जो भारत को लूटकर अपना देश चला रही है।
चिकित्सा पद्धति जो भारत की देंन भगवान धनवंतरी है
शिल्पकार विश्वकर्मा जो सिविल इंजीनियरिंग के जनक हैं
श्री राम के युग में ही वायुयान का चलन था
जो आज के वायुयान से बड़ी और गतिशील थी
लेकिन हमने राइट बंधुओं की थ्योरी को अपना आदर्श माना
लेकिन भारत कभी अपनी प्रतिभा को पहचान नहीं सका
और हमारे ग्रन्थों का अवलोकन कर दुनिया आज हमें हमारी ही थ्योरी अपना बताकर श्रेय लेती है
और अपनी शिक्षा पद्धति हम पर लादती है
संस्कार नहीं तो भारत कहाँ जिंदा है
परम्परा तो हमने अब अपनी दादी और दादा के मुँह से सुना है कहानी में
वो कहानी हमारी धार्मिक ग्रंथ की थी
जो आज रामायण को सिर्फ एक पुस्तक मानकर किसी पुस्कालय में कोने में डाल दिये जाते हैं।
धूल खाने को
आज की नई पीढ़ी उलझी पढ़ी है
की शुरू कहाँ से करें।
दोस्तों जिस दिन हमारा देश अपनी पुरानी शिक्षा पद्धति को अपनाकर
आगे बढ़ेगी
तो हर बेटा राम बनेगा ,और हर बहु सीता
हर बेटा कृष्ण बनेगा ,स्थापित करेगा आदर्श जैसे शिक्षा मिलती है
पढ़कर गीता ।
भारत निर्माण के लिये राम का होना आवश्यक है
शिक्षा में और मन मे
© kuldeep rathore
सीखना है तो रामचरितमानस पढ़ो।
रामायण के हर अध्य्याय में आपको एक सिख मिलेगी जो
जो आपके जीवन को नई दिशा देगी।
श्री राम का बचपन जब शिक्षा के लिए कुलगुरु वशिष्ठ के आश्रम गए ।
और अल्पआयु में ही शास्त्रों की शिक्षा लिये अपने भाइयों के साथ
अयोध्या वापस आये
तत्पश्चात ऋषि विश्वमित्र के साथ दानवों असुरों के सर्वनाश के लिए वन को गए
तत्पश्चात उनकी शादी माता सीता से हुई
फिर वापस अयोध्या लौटे
कुछ दिनों के बाद राम को वनवास जाने की आज्ञा मिली जो माता कैकयी की इच्छा थी।
राम ने मुस्कुरा के आज्ञा का पालन किया
और भाई भरत को राज काज सौपकर वन को चले गये।
संग में माता सीता और अनुज लछमण भी वन को चले ।
राम भगवान विष्णु के अवतार हैं लेकिन उनका जीवन अभी एक मनुष्य का है
उनका धर्य देखिए।
एक राजकुमार जो कि एक राजा बनकर अयोध्या में राज में करता
उन्होंने सब त्याग कर माता कैकयी को दिए वचनों से मजबूर हुये पिता की वचन की मर्यादा के लिए
अपनी खुशी का बलिदान कर दिया
वहाँ उन्होंने एक सर्वश्रेष्ठ पुत्र होने प्रमाण दिया जो पिता के वचन और माँ की इच्छा दोनों का मान रखकर वन को चल दिये।
आज हमारे भारत मे ही किसी भी विद्यालय महाविद्यालय में रामायण की शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं?
आप बिना राम जैसे पुत्र के समाज मे रामराज्य की परिकल्पना कैसे कर सकते हैं
उद्योग आवश्यक है कारोबार आवश्यक है
तो संस्कार और परमपरा की शिक्षा क्यों नहीं
आज डॉक्टर भी आत्महत्या कर लेता है
इंजीनियर भी और एक अभिनेता भी
धन है पर मानसिक शांति नहीं
ऐसे शिक्षा का क्या महत्व जिंसमे धन तो है पर मानसिक सुख नहीं
शिक्षा अनिवार्य है एक जीवन की प्रगतिशील कार्यप्रणाली के लिए
डॉक्टर बनो इंजीनियर बनो प्रसाशनिक अधिकारी बनो
अच्छी बात है
लेकिन क्या भारत की सनातन संस्कृति जो पूरे विश्व को एक जीवन मंत्र देती है वसुदैवकुटुंब का उसको भारत के शिक्षा संस्थानों में ही जगह न मिले ।
पश्चिमी शिक्षा से भारत को कभी फायदा हुआ ही नही है
मैकाले की शिक्षा नीति एक कूटनीतिक षड्यंत्र था भारत को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का ।
मैकाले जानता था कि भारत मे अगर राज करना है तो पहले उनके संस्कृति पे आक्रमण करो और उनके ग्रन्थों को जो जीवन को सफल और एकता के सूत्र में बांध कर रखती है उसको नई शिक्षा पद्धति लाकर गुरुकुल की भारतीय प्राचीन वैदिक संस्कृति को बाहर निकाल फेंको।
आज वही हो रहा है देश आजाद हो गया अंग्रेज़ो से
लेकिन आज भी हम उनके गुलाम हैं
भारत जहाँ हिंदी भाषा की आज स्थिति
दयनीय है
अंग्रेजी भाषा जो जबदस्ती हमारे ऊपर कूटनीतिक षड्यंत्र कर लादी गयी है
उस पर हमें अभिमान करते हैं
जिसने भारत को अपने संस्कृति और परंपरा वंचित कर दिया।
चीन में चीनी बोला और लिखा जाता है
जापान में जापानी भाषा
सभी संयुक्त देश अपने अपने राष्ट्रीय भाषा पे अपना कार्य करते हैं
लेकिन भारत मे हिंदी सिर्फ एक राष्ट्रभाषा है जो सिर्फ नाम के लिए है
कब तक राजनीतिक फायदों के लिए हम अपना नुकसान करेंगें
सरकारें जानती हैं कि रामायण और गीता अगर विद्यालय और महाविद्यालय में अनिवार्य किया गया तो आपसी समरसता और अच्छे और बुरे का ज्ञान लोगो को स्वतः ही मिल जायेगी
फिर उनकी हिन्दू मुस्लिम और दलित पिछड़ा वर्ग की राजनीति नहीं चलेगी
क्योंकि सब को अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाएगा ।
आज राम की धरती में राम तो है लेकिन सिर्फ नाम बनकर
गीता तो है लेकिन एक पुस्तक की तरह जो जीवन को दिशा देने को तैयार है
लेकिन हम शेक्सपियर की कहानियों को अपना आदर्श मान कर बैठे हैं
हम एलिजाबेथ को रानी मानकर बैठे हैं
जो भारत को लूटकर अपना देश चला रही है।
चिकित्सा पद्धति जो भारत की देंन भगवान धनवंतरी है
शिल्पकार विश्वकर्मा जो सिविल इंजीनियरिंग के जनक हैं
श्री राम के युग में ही वायुयान का चलन था
जो आज के वायुयान से बड़ी और गतिशील थी
लेकिन हमने राइट बंधुओं की थ्योरी को अपना आदर्श माना
लेकिन भारत कभी अपनी प्रतिभा को पहचान नहीं सका
और हमारे ग्रन्थों का अवलोकन कर दुनिया आज हमें हमारी ही थ्योरी अपना बताकर श्रेय लेती है
और अपनी शिक्षा पद्धति हम पर लादती है
संस्कार नहीं तो भारत कहाँ जिंदा है
परम्परा तो हमने अब अपनी दादी और दादा के मुँह से सुना है कहानी में
वो कहानी हमारी धार्मिक ग्रंथ की थी
जो आज रामायण को सिर्फ एक पुस्तक मानकर किसी पुस्कालय में कोने में डाल दिये जाते हैं।
धूल खाने को
आज की नई पीढ़ी उलझी पढ़ी है
की शुरू कहाँ से करें।
दोस्तों जिस दिन हमारा देश अपनी पुरानी शिक्षा पद्धति को अपनाकर
आगे बढ़ेगी
तो हर बेटा राम बनेगा ,और हर बहु सीता
हर बेटा कृष्ण बनेगा ,स्थापित करेगा आदर्श जैसे शिक्षा मिलती है
पढ़कर गीता ।
भारत निर्माण के लिये राम का होना आवश्यक है
शिक्षा में और मन मे
© kuldeep rathore
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