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पतंग की डोर {भाग-1}
1."अरे! क्या कंबल में घुसकर आलसी की तरह लेटे हो ? आज तो जल्दी उठ जाओ मकरसंक्रान्ति हैं|" मेरी प्यारी-सी पत्नी ने कहा | ठंड वाकई आलस का सबसे बड़ा और सुहाना मौसम हैं और मैं उस नाव में लेटे बहता चला जा रहा था |दस मिनट बाद, उनका फिर से आकर मुझ पर क्रोधित होकर उठाना मानो मेरा अलार्म बन गया था | मैं करीब नौ बजे, अपने बिस्तर से उठकर स्नान, पूजा-पाठ करके और मकरसंक्रान्ति पर विशेष दही-चुरा, तिलकूट और तिल से बनी हुई कई प्रकार की मिठाई खाकर थोड़ा आराम कर, मैं थोड़े देर बाद छत पर जाकर बच्चों की पतंग प्रतियोगिता देखने लगा | मैं अपनी पत्नी के साथ झूले पर बैठकर पतंग प्रतियोगिता देख रहा था |कुछ देर बाद, उन्होंने मेरे हाथ को अपने हाथ पर रख प्रेम भरी नजरों से मुझे देखा | उस क्षण उनकी आँखों ने मुझे उस दिन का एहसास करा दिया.......

2 ."रामू! जा राकेश अंकल के पास से दूध ले आजा|"

मेरी सुबह की शुरुआत मां के कहे इस काम से ही शुरू होती | वैसे, आपको बता दूँ रामू मेरा घर का नाम हैं |

"प्रणाम राकेश चा ! क्या हाल है ? गुड मॉर्निंग|"

"अरे! बेटा रामू कल रेल्वे का परिक्षा देने गए थे ना ! कैसा परिक्षा गया?"

"परिक्षा तो अच्छा गया चाचा अब बस जनवरी तक रिजल्ट आ जाएगा|" मैं उनसे यह कह कर दूध लेकर घर आ जाता हूँ |

"मां! पेपर वाले भैया की बहन भाग गई, राकेश चाचा ने बताया|"

पता नहीं क्यों प्यार करने वाले ऐसा कदम उठाते हैं | उन्हें इस बारे में अपने परिवार वाले खासकर माँ और पापा को बताना चाहिए |

"अरे! तू ये सब बाते छोर, बुरबक छोकरी थी कल तक खुद वापस आ जाएगी|" माँ यह कहकर रोसैया में जाकर काम करने लगतीं हैं|

3.अभी शायद अक्तूबर का अंत होगा या नवंबर का आरंभ, मेरी पड़ोसन अमृता आंटी के घर उनकी भगिनी आई थी| 

"अरे! माँ अनुरक्ति दी दी बहुत अच्छी है, उनको कथक आता है और वो पूरे सर्दी तक रुकेंगी| " मेरी बहन आरुषि ने माँ से कहा |

"अरे! तब तो बहुत अच्छी बात है, जाके कथक सीख ले सुनी हू बहुत अच्छा कथक करती है और तुझे भी तो कथक सीखना है न........" माँ ने आरुषि से कहा |

"अरे! सीख जाएंगे अब, काहे चिंता करती हो|" आरुषि ने माँ से कहा |मेरे चेहरे पर उनका(अनुरक्ति) नाम सुनते ही एक नटखट-सी मुस्कान आ गई| "अनुरक्ति......अनुरक्ति......"|

कल सुबह मुझे जल्दी उठना था क्यूंकि माँ और आरुषि को चाची के घर जाना था | इसलिए, मैं नौ बजे ही बिस्तर पर चला गया |

4.आज, मैं मुर्गा के कुकड़ू-कु और मुल्ला जी के अज़ान से पहले उठ गया था | शायद मैं कुछ ज्यादा जल्दी उठ गया था इसलिए मैं छत पर जाकर टहलने लगा | वातावरण में धुंधली-धुंधली सी रोशनी थी और चारो ओर मंद-मंद हवा बह रहा था |तभी, मेरी नजर अमृता आंटी के छत पर परी एक मोहिनी लड़की छत पर नृत्य कर रहीं थी | मैं उसे देख वशीभूत हो चुका था | उसके पाँव में लगी घुँघरू और उससे निकलती क्षण-क्षण ध्वनि मुझे पूर्ण रूप से मंत्रमुग्ध करती जा रहीं थी | मैं एक- टक उसे निहारे जा रहा था........निश्चल.....शब्द हीन........|

तभी मां का तेज आवाज आता है-"आज दिन भर छत पर ही रहेगा क्या? टाइम देखा है कितना हुआ!" 

मैंने मोबाइल में टाइम देखा 6:30 हो रहे थे |मैं तुरंत छत से उतरा, नहाया और मां और आरुषि छोटी बहन को चाची के घर पहुंचा दिया | "अच्छा रामू! रात को अमृता आंटी के घर खाना खा लेना|" माँ कहकर अंदर चली जाती है और मैं वापस घर की ओर चल देता हूं |

 5. रात को अमृता आंटी के घर जाने से पहले  मैंने नहा लिया था जिसके कारण मुझे हल्की सर्दी हो गई | थोङे देर बाद करीब 8 बजे मैं अमृता आंटी के घर खाना खाने गया, वहाँ पर मैंने अपना फोन टी• वि• के पास रख कर डायनिंग रूम में जाकर खाना खाने लगा | खाने में अमृता आंटी चना की सब्जी और पराठा बनाइ थी | मैं भरपेट खा कर और थोड़ा बातचीत कर घर चल दिया | लेकिन, अभी तक मैंने अनुरक्ति को नहीं देखा था | मैं जब अमृता आंटी के घर से निकल रहा था तभी एक आवाज़ आई-" हैलो! राम जी आपका फोन|" मैं पीछे पलट देखा तो वहां वहीं मोहिनी लड़की थी |"था...था....थैंक यू |" मैं अचानक उनके सामने हिचकिचाने लगा |" अरे! आपकी तबीयत तो ठीक है न!" उन्होंने यह कहकर मेरे कंधे पर हाथ रख दिया |"जी.......जी........ मैं ठीक हूँ। धन्यवाद" कहकर मै झट से अपने घर की ओर चल दिया। उफ़ ! जितना बाहर से स्मार्ट हूँ उतना अंदर से भी स्मार्ट होता। मैं अपने बिस्तर पर लेट उन्ही {अनुरक्ति} के बारे में सोच रहा था। "घुँघुरु.......कथक.........शकर सी मीठी आवाज़.......  "इन्ही सब बातो को सोच-सोच कर मेरी आँख लग गई। 

6.अ अगली सुबह , मैं हर एक काम हरबराहट में कर रहा था। ब्रश करने के साथ-साथ में अपना एडमिट कार्ड और कुछ डाक्यूमेंट्स को अच्छे से एक फाइल में रख रहा था क्यूंकि आज मेरा इंटरव्यू था। मैं शर्ट इतना हड़-बड़ा के पहन रहा था की उसके बाह की सिलाई खुल गई। मैं तुरंत अमृता आंटी के घर गया और कहा -"आंटी....आंटी  जरा जल्दी निचे आये तो।  एक काम है।" मैं बंगले में खड़ा इंतज़ार कर रहा था। "गुड मॉर्निंग! अभी मामी बाहर गई है , कोई काम था किया बता दीजिये मै मामी  को बता दूंगी।" अनुरक्ति चाची के कमरे से निकल कर बोली। उसके खुले बाल , गुलाबी ओठ और भीगे चेहरे{मानो वो अभी नहा कर निकली थी} को देख मै एक बार फ़िर से उस पे खो चूका था।   "जी......जी....... बस एक छोटा सा काम था , वो मेरे शर्ट का सिलाई खुल गया है , बस उसे सिलने आया था क्यूंकि आज मेरा रेलवे का इंटरव्यू था।"
"लाइए मै सील दू।  मामी को अभी आने में देरी होगा।" अनुरक्ति ने कहा। 
मैं तुरंत अपना शर्ट उन्हें दे देता हूँ और वह बंगले में रखे खटाई पर बैठकर सिलने लगती है। मैं उन्हें निहारे जा रहा था- उनकी कितनी लम्बी और रेशम की बाल थी , ओठ गुलाब जैसे लाल......। धीरे-धीरे हम दोनों एक-दूसरे से बात-चित करने लगे और पता ही नहीं चला कि कब दोस्त बन गए। 

7. मैं अब हर रोज़ सुबह के पांच बजे उठ जाया करता क्यूंकि उस वक़्त वो मन-मोहिनी  अनुरक्ति कथक करती थी और उसके घुँघुरु से निकलने वाली धवनि मुझे वशीभूत , निश्छल कर  देती। मैं अब अक्सर शाम को बाहर से टहलकर आता तो अमृता आंटी के घर जाता तो उनसे आँखे लड़ा लेता और इसी बहाने उनसे बात भी बक्र लेता।  

8. कल मेरा रिजल्ट आने वाला था , इसलिए मन अशांत था। इस अधिरता को शांत करने मैं छत पर जाकर टहलने लगा।  मेरे आने के कुछ समय बाद अनुरक्ति भी छत पर आ गई थी। हम  दोनों एक-दूसरे से बाते करने लगे।  मेरे हृदय के किसी कोने कोने ने मेरे दबे और छुपे प्रेम की  धरखन बढ़ा दी मानो कह रहा था कि आज वो ढाई अक्षर  शब्द  बोल दे। और पता नहीं बातो ही बातो में मैंने कब अपने मन में कब से दबी बात बता दी। अनुरक्ति ने भी अपने दिल की दबी बात मुझे बता दी।

{उस उस समय हम दोनों बस एक-दूसरे को मुकबंदक बन देखे जा रहे थे मानो हम दोनों के दिल की नजदीकियां बढ़ती ही बढ़ती जा रही थी।}

अब बस ये बात अपने-अपने माँ-पापा को बताना था जो सबसे बड़ा प्रॉब्लम था। हमने सोचा की ढाई महीने बाद सबको ये बात बता देंगे क्यूंकि उस बीच मुझे कुछ काम था। थोड़ी देर बाद हम दोनों अपने-अपने घर चले जाते है।

रात हो चुकी थी, और मैं बिस्तर पर लेट उन हसीन लम्हों को आँखे बंद कर एक बार फिर जी रहा था। 

9. "हे प्रभु ! आज रिजल्ट आने वाला है ,अच्छे मार्क्स से पास करवाएगा प्रभु।" {अक्सर लोग दो ही कारणों से ईश्वर को याद करते है पहला जब कोई इम्तेहान हो और दूसरा जब  इम्तेहान का रिजल्ट आने वाला हो।} लेकिन मेरी वैसी बात नहीं थी मेरे परिवार में ईश्वर  के प्रति भक्ति हमेसा से थी।  मैं बचपन से अपने माँ और पापा को कृष्णा के प्रति भक्ति को देख प्रभावित हुआ था और शायद यही कारण मेरे प्राथना और प्रेम करने का है। मैं स्नान , पूजा-पाठ और खाना खा कर साइबर कैफे जाता हु , वहाँ पर मेरा कॉलेज टाइम का दोस्त राहुल मिलता है जो पहले से मेरा रिजल्ट  खोल के रखा था। मैं जैसे ही वहाँ पहुचा राहुल उछल के बोला -"अरे ! राम टॉप आए हो।  अब , पार्टी दो भाई " मैं तुरंत यह बात अपने पापा को बताता हु और यह जानकर वो बहूत खुश हुए। मैं तुरंत घर की ओर भागा। "अरे ! हीरो कितना मार्क्स आया ?" अनुरक्ति ने पूछा। "टॉप आए है। अब , बस आपका हाथ चाहिए। " मेरे यह कहते ही अनुरक्ति शर्मा के कमरे के अंदर भाग गई।

10.  मैं रेल्वे इंजीनियर बनने लिए सिलेक्ट हो गया था | रेल्वे काउंसिल ने मुझे एक महीने के लिए बुलाया था ताकि मैं अपना काम जान और सीख सकू | मेरे मेरिट [योग्यता] को  देख कुँवर सिंह ने मुझे जल्दी ज्वाइनिंग लेटर दे दिया | उस समय मैं अनुरक्ति से बात नहीं कर पाता था जिस कारण वो मुझसे नाराज थी | लेकिन,  जब उनसे मिला तो उनके पसंद वाला मिठाई  चंद्रकला ले आया और किसी तरह उन्हें मना ही लेता | धीरे-धीरे अमृता आंटी और मेरी माँ या कहो हमारे परिवार वाले हमारे रिश्ते और प्रेम के बारे मे जान गए लेकिन दोनों परिवार एक दूसरे का ही इंतजार कर रहे थे नहीं तो हमारे कहने का |

11. रविवार का दिन था,  हम दोनों छत पर थे | मैं अनुरक्ति की गोद में अपना माथा टिका कर , उसके रेशम सी बालों को सहला रहा था |

"आज एक बार माँ को बोलकर तो देखो ! अब और कितनी देर!" अनुरक्ति ने कहा |

{ उसके इन बातों में कितनी सच्चाई थी , उसका चेहरा कितना भोला, मासूम था, और आंखे में मिलने की इस कदर बेकरारी थी मुझे वो उस समय और भी ज्यादा अच्छी लग रही थी|} 

"हा... हा.. अभी तो मैं ही न! जहाँ लेडीज फर्स्ट की बाते अक्सर होती है वहां मेन फर्स्ट हो जाते है,  वह मैडम जी!" मेने अनुरक्ति से थोड़ा मजाकिया अंदाज़े में कहा |

{हम दोनों कुछ देर और बाते करके अपने-अपने घर चले जाते है |}

12. आज रात का मेरा impossible मिशन था कि किसी तरह माँ को मेरे और अनुरक्ति के प्रेम और शादी की बात बतायी जाय | मैं किचन में गया क्यूंकि माँ भी वही थी |

{ माँ उस समय तरकारी बना रहीं थीं और मैं माँ के हाथ से चम्मच लेकर तरकारी पलटने लगा|}

"माँ! कल जो खीर अमृता आंटी लाई थी वो कैसा था? " मैंने माँ से पूछा |

"अच्छा था| ऐसा क्यूँ पूछ रहे! "

"नहीं माँ!  बस यू..ही , वो....वो...खीर अनुरक्ति बनाई  थी |"

"ओ...." माँ ने कहा |

"माँ!  अब क्यूँ इतना काम करती हो ? क्यूँ न किसी और को अब अपने साथ रखो जो की तुम्हारी........" मैं यह कह कर शांत हो गया | 

"क्या..क्या..तुम्हारी!  क्या बोल रहे हो राम,  साफ-साफ बोलो| "

{कैसे btaoo कि अब अपना बिस्तर bathne का मन करता है,  हाथों को पीला होने का मन करता है और जीजा जी कहलाने का मन करता है|}

13. मैं अब एक गहरी सासें निकल माँ से हर  बरा के कहता हूं-" माँ!  अब शादी करनी  है और वो भी अनुरक्ति से | अब शादी की उम्र भी हो गई |"

(मैं यह कहते ही आँखों को कसकर मूँद लिया कहीं माँ कसकर चपत न लगा दे|)

माँ ने इस बात पर कुछ नहीं कहा, ना उनके  मुखड़े  में कोई बदलाव हुआ, वो  बस मुझे देखी जा रहीं  थीं और फिर वहां से चल दी |

(क्या ये नाराजगी थी! आखिर कोई गलती क्या था क्या! या मुझे अभी यह बात नहीं कहनी चाहिए थी! ) बहुत सारे  सवाल मन  में उमर रहे थे |

 दिन आए और गए लेकिन माँ ने अभी तक कुछ साफ नहीं  किया  था, बस एक बात अलग और अजीब थी कि पापा मुझे कभी-कभार परिवार पर एक-ढेर घंटे की लेक्चर सुना दिया करते और मैं बरे मन से सुनता |

 14. कुछ दिन बीते, और मकर संक्रांति आ गया | हम सभी लोग (मेरा और अमृता आंटी का परिवार )पूजा-पाठ करके,  दही-चुरा और तिल से बने तरह तरह की मिठाई खाय | मोहल्ले के बच्चे अपने अपने छत पर जाकर पतंग उड़ाने और प्रतियोगिता या कहो पतंग बाजी करने लगे | मैं थोङे  देर नीचे आराम किया और फिर मैं भी छत पर चला गया | छत पर अमृता आंटी,  उनका छोटा लड़का अम्बर,  चाचा,  अनुरक्ति थी और मेरे परिवार वाले | मैं अपने गली में,  पतंग बाजी में महारत हासिल किया हुआ था | मुझे अभी तक याद है मैंने उस दिन पांच पतंग काटे थे | अचानक एक पतंग गुलाटी मार मेरे पतंग को  काट दिया और मैं बस अपने पतंग को हौले-हौले नीचे गिरते देख रहा था कि तभी अनुरक्ति मेरे गिरते पतंग की डोर को पकडने के लिए दोर पड़ती है | वो नीचे गिरने ही वाली थी कि मैंने उसका हाथ कसकर थाम लिया और उसे अपने तरफ glitch लिया और उसे अपने बाहों में समेट लिया | हम दोनों को यू इतना घनिष्ट और  प्रेम में देख मेरी माँ मान जाती है और अमृता आंटी भी | दोनों हमारे शादी के लिए मान जाते है और फिर अमृता आंटी ये बात अनुरक्ति के परिवार वाले को बता ती है | दोनों परिवार वाले हमारे शादी के लिए मान गए | फिर शुभ मुहूर्त देख हमारी शादी हो गई |} 

 "वाह! वो कितना अच्छा समय था | मैंने अपना हाथ उनके हाथो पर रख दिया..."

© श्रीहरि