ठाकुर साहब
यह कोई कहानी नही, सच्चा जीवन परिचय हैं ,ठाकुर राम सिंह जी का.
30 साल तक उनका जीवन अपनी आंखों से देखा और सुना भी, सो पूरी ईमानदारी रखने की कोशिश करूंगा.
यह किसी जाती या धर्म के खिलाफ नही हैं पर जो सत्य आंखों से देखा उसको कहने का साहस होना ही चाहिए.
इस बार इस परिचय को लघु रखने की कोशिश करूंगा, आगे साहस हुआ तो इसपे उपन्यास भी लिखा जा सकता हैं.
ठाकुर साहब
ठाकुर साहब राम सिंह जी के पिताजी का नाम ठाकुर नाहर सिंह जी था.
वे जोधपुर जिले ,ओसियां तहसील के गांव बैठवास के थे.
बैठवास गांव 7 हिस्सो में बटा हैं, उसमे एक छोटे से हिस्से रावली ढाणी- के जमींदार ठाकुर नाहर सिंह जी थे.
1922 के आसपास राम सिंह जी का जन्म हुआ था.
इस छोटे से गांव को न ये पता था कि भारत पर अंग्रेजो का शासन हैं,
ना ही महात्मा गांधी जी के बारे में जानते थे.
जोधपुर के राजा ही उनके लिए एक मात्र सच्चाई थी.
गांव के फसल का 8वा हिस्सा टैक्स के रूप में जाता था, यानी 12.5 परसेंट.
कम फसल हो तो उसके हिसाब से हिस्सा.
रसाला फोर्सेस में 5 से 8 लोगो तक नौकरी दी जा सकती थी इस गांव से.
उससे कुछ पैसो की आमदनी होती थी, साथ ही मृत्यु उपरांत ,एक वीर का सम्मान ,उनका गौरव बढ़ाने वाला था.
लाइट , रेडियो से दूर इस गांव का सादा जीवन था.
पानी की अत्यधिक कमी थी, बारिश में पहाड़ो से रिसते पानी से बने तालाब से पानी की पूर्ति होती थी.
गांव में कोई ट्यूबवैल ना थी, कुवे भी न थे, बारिश पर ही खेती निर्भर थी.
ठाकुर साहब नाहर सिंह जी का घर भी घास फूस से बना सामान्य घर था. रहन सहन भी बाकी गांव की तरह ही था.
बस सम्मान ज्यादा था क्योंकि वो न्याय उचित गांव में फैसला करते थे और कुछ हाली( नौकर) उनके यहां काम करते थे ,जिनको वो उनके काम अनुसार
अनाज दे दिया करते थे.
2 एक सोने और चांदी की थाली थी बस यही धन था, गायें ओर ऊंट काफी थे.
इन्ही सब को धन माना जाता था, रुपये पैसे बहुत कम ही हुआ करते थे.
नाहर सिंह जी का रास्ते चलते अगर कोई औरत से सामना हो जाता था और औरत को परेशानी न हो सो आप मुँह फेर कर जमीन पर बैठ जाते थे.
आदर्श चरित्र की वजह से उनका सम्मान था.
नाहर का अर्थ शेर होता हैं ऐसा ही उनका स्वभाव था.
वो अपने पुत्र राम सिंह जी को गाले के भोमियाजी जिन्होंने गायो से चोरो डाकुओ से छुड़ाने के लिए अपने प्राण दे दिए थे, उनके अलावा महाराणा प्रताप , स्वामी भक्त दुर्गादास की कहानियां सुनाया करते थे.
राम सिंह जी बहुत शांत स्वभाव युक्त व्यक्ति थे.
एक बड़ी सी लम्बी सी शाल( लंबा कमरा) व दो और कमरे जो घास फूस से बने थे, आगे घर का चौक और उसके बाहर कंटीली झाड़ियो से बनी चारदीवारी थी जिसे बाड़ भी कहते हैं.
घर के बाहर एक बड़ा सा नीम का पेड़ जिसपे बहुत सारे तोते रहते थे. उस पेड़ की छांव के सहारे ही एक कोल्डी ( लोगो के बैठने का कमरा) बनाई हुई थी.
ना उनके पास कोई हवेली थी ना ही पोल.
उनके घर पर सभी काम करते थे और उनके अनुसार अनाज पाते थे, आज छूत, अछूत जितना बड़ा करके बताया जाता है उतना न था.
भेरूजी के भोपे भील जाती के ही थे , बिछु , सांप का जहर उतारने वाले मंत्र पड़ते थे और अपने हाथ से ही पानी पिलाते थे मरीज को.
छाबड़िया और ठाठिये ( भोजनऔर समान रखने के बर्तन) उनके घर पर ही बनते थे, हरिजन समाज के लोग बनाते थे.
गाने वाले लोग देवी के भक्त माने जाते थे, पहली आरती वो ही करते थे.
हां, शादी ब्याह की दूरियां थी वो अपने अपने जातियों में ही ठीक मानी जाती थी.
बाकी सब ठीक ही था.
पानी की मटकी के तो बच्चो को भी हाथ न लगाने दिया जाता था, ताकि पानी मेला गंदा न हो सो सब बूक (...
30 साल तक उनका जीवन अपनी आंखों से देखा और सुना भी, सो पूरी ईमानदारी रखने की कोशिश करूंगा.
यह किसी जाती या धर्म के खिलाफ नही हैं पर जो सत्य आंखों से देखा उसको कहने का साहस होना ही चाहिए.
इस बार इस परिचय को लघु रखने की कोशिश करूंगा, आगे साहस हुआ तो इसपे उपन्यास भी लिखा जा सकता हैं.
ठाकुर साहब
ठाकुर साहब राम सिंह जी के पिताजी का नाम ठाकुर नाहर सिंह जी था.
वे जोधपुर जिले ,ओसियां तहसील के गांव बैठवास के थे.
बैठवास गांव 7 हिस्सो में बटा हैं, उसमे एक छोटे से हिस्से रावली ढाणी- के जमींदार ठाकुर नाहर सिंह जी थे.
1922 के आसपास राम सिंह जी का जन्म हुआ था.
इस छोटे से गांव को न ये पता था कि भारत पर अंग्रेजो का शासन हैं,
ना ही महात्मा गांधी जी के बारे में जानते थे.
जोधपुर के राजा ही उनके लिए एक मात्र सच्चाई थी.
गांव के फसल का 8वा हिस्सा टैक्स के रूप में जाता था, यानी 12.5 परसेंट.
कम फसल हो तो उसके हिसाब से हिस्सा.
रसाला फोर्सेस में 5 से 8 लोगो तक नौकरी दी जा सकती थी इस गांव से.
उससे कुछ पैसो की आमदनी होती थी, साथ ही मृत्यु उपरांत ,एक वीर का सम्मान ,उनका गौरव बढ़ाने वाला था.
लाइट , रेडियो से दूर इस गांव का सादा जीवन था.
पानी की अत्यधिक कमी थी, बारिश में पहाड़ो से रिसते पानी से बने तालाब से पानी की पूर्ति होती थी.
गांव में कोई ट्यूबवैल ना थी, कुवे भी न थे, बारिश पर ही खेती निर्भर थी.
ठाकुर साहब नाहर सिंह जी का घर भी घास फूस से बना सामान्य घर था. रहन सहन भी बाकी गांव की तरह ही था.
बस सम्मान ज्यादा था क्योंकि वो न्याय उचित गांव में फैसला करते थे और कुछ हाली( नौकर) उनके यहां काम करते थे ,जिनको वो उनके काम अनुसार
अनाज दे दिया करते थे.
2 एक सोने और चांदी की थाली थी बस यही धन था, गायें ओर ऊंट काफी थे.
इन्ही सब को धन माना जाता था, रुपये पैसे बहुत कम ही हुआ करते थे.
नाहर सिंह जी का रास्ते चलते अगर कोई औरत से सामना हो जाता था और औरत को परेशानी न हो सो आप मुँह फेर कर जमीन पर बैठ जाते थे.
आदर्श चरित्र की वजह से उनका सम्मान था.
नाहर का अर्थ शेर होता हैं ऐसा ही उनका स्वभाव था.
वो अपने पुत्र राम सिंह जी को गाले के भोमियाजी जिन्होंने गायो से चोरो डाकुओ से छुड़ाने के लिए अपने प्राण दे दिए थे, उनके अलावा महाराणा प्रताप , स्वामी भक्त दुर्गादास की कहानियां सुनाया करते थे.
राम सिंह जी बहुत शांत स्वभाव युक्त व्यक्ति थे.
एक बड़ी सी लम्बी सी शाल( लंबा कमरा) व दो और कमरे जो घास फूस से बने थे, आगे घर का चौक और उसके बाहर कंटीली झाड़ियो से बनी चारदीवारी थी जिसे बाड़ भी कहते हैं.
घर के बाहर एक बड़ा सा नीम का पेड़ जिसपे बहुत सारे तोते रहते थे. उस पेड़ की छांव के सहारे ही एक कोल्डी ( लोगो के बैठने का कमरा) बनाई हुई थी.
ना उनके पास कोई हवेली थी ना ही पोल.
उनके घर पर सभी काम करते थे और उनके अनुसार अनाज पाते थे, आज छूत, अछूत जितना बड़ा करके बताया जाता है उतना न था.
भेरूजी के भोपे भील जाती के ही थे , बिछु , सांप का जहर उतारने वाले मंत्र पड़ते थे और अपने हाथ से ही पानी पिलाते थे मरीज को.
छाबड़िया और ठाठिये ( भोजनऔर समान रखने के बर्तन) उनके घर पर ही बनते थे, हरिजन समाज के लोग बनाते थे.
गाने वाले लोग देवी के भक्त माने जाते थे, पहली आरती वो ही करते थे.
हां, शादी ब्याह की दूरियां थी वो अपने अपने जातियों में ही ठीक मानी जाती थी.
बाकी सब ठीक ही था.
पानी की मटकी के तो बच्चो को भी हाथ न लगाने दिया जाता था, ताकि पानी मेला गंदा न हो सो सब बूक (...