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मां बाबा छुपाते क्यों
आज पूरे घर में बहुत हलचल‌ और रौनक हैं क्योंकि एक साल बाद रमेश और राधा घर आ रहे है, वह दोनों दिल्ली में पढ़ते थे।
मां का तो पैर थम ही नहीं रहा था उनके पिता का भी कुछ ऐसा ही हाल था।

अरे सुनो रमेश की मां आज दोनों के पसंद का अच्छा-अच्छा खाना बनाना हमारे घर के अफसर बिटिया और बिटवा आ रहे है, भगवान इन दोनों को जल्दी से अफसर बना दे की ये हमारे देश की सेवा कर सके और अपनी भी कुछ गरीबी दूर हो।
तभी दोनों पहुंच जाते हैं और मां-पिता के गले लगते है और पुरा परिवार खुशी से झूम उठता है,
खाना पीना खा कर दोनों आराम से सो जाते हैं, सुबह उठते ही अपने पास वाले खेत में जाते है जहां आम का पेड़ बहुत सारे लगे हुए थे, जैसे ही वह वहां पहुंचते हैं देखते है की उस बगान कोई और लोग बैठे हैं।उसे समझ नहीं आता जाकर पुछते है आप लोग कौन है और इस बगान में क्या कर रहे हैं तब पता चलता है कि यह बिक चुका है ये अब अपना नहीं रहा।
दोनों भाई बहन आपस में बात करने लगते हैं, बाबा मां हम दोनों को जमीन बेच कर पढ़ाते रहे और हम दोनों ने वहां लोगों के बीच जाकर भुल गये के हमारा सपना जल्दी पुरा करना कितना जरूरी था,हम मोबाइल दोस्तों के बीच अपना किमती समय बर्बाद कर दिये और यहां इतना कुछ मां बाबा ने कैसे झेला होगा।
दोनों दौड़ कर घर जाते है तब-तक देखते हैं कि मां बाबा खेत में काम करने चले गए लेकिन राधा अपने बाबा का रखा एक पुराना बक्सा खोलती है और देखती है उसमें वहीं पुराने कपड़े है दोनों ने अपने लिए कभी त्योहार में भी कपड़ा नहीं खरीदा था और हम लोग कितने आराम कि जिंदगी गुजार रहे थे।
उसमें एक चिट्ठी लिखी हुई थी बहुत टुटे फुटे शब्दों में क्योंकि बाबा को थोड़ी बहुत ही हिन्दी आती थी उन्होंने लिखा था।
मेरे दोनों जिगर के टुकड़े तुम दोनों के लिए जमीन क्या अपने शरीर का अंग अंग बेंच दुनिया मेरी उम्मीद हो तुम दोनों और भारत मां के लाडले तुम दोनों अफसर बनकर देश के लिए जियो और मरो।
हां मैं और तुम्हारी मां कभी खाते थे कभी नहीं भी दिन रात मेहनत करते थे के तुम दोनों कुछ बनकर हमारा और इस देश का नाम रोशन करो,
दोनों भाई बहन के आंखों में आसूं थे और आज के जितना कभी ना तो इतना जुनून था और ना ही इतनी जोश व हिम्मत दोनों भाई बहन ने वादा किया के अबकी बार हम अफसर बनकर ही आयेंगे।
लेकिन मां बाबा आपसे शिकायत रहेगी हमेशा के आप लोग छुपाते क्यों है क्यों नहीं अपने संघर्ष का अहसास दिलाते हैं इस उम्र में हम भटक जाते है हम लोग को अपने बाबा मां के संघर्ष को नहीं भुलना था ना भईया।

#dedicated to all parents