"परिव्राजक"
राजप्रसाद में हलचल थी,मेहमानों की आवभगत में महाराज स्वयं कोइ कसर न छोड़ना चाहते थे,आज उनके जीवन की एक नई पारी की शुरुआत जो होने वाली थी,
संपूर्ण महल किसी दुल्हन की भातिं सजा था,नित्य प्रति लगने वाले दरबार को भी आज स्थगित कर दिया गया था,
संपूर्ण आरण्यक प्रदेश में महाराज के विवाहोत्सव की धूम मची थी,
दास दासियाँ दौड़ दौड़ कर एक एक आगंतुक को अर्घ्य, मद,मोदक हस्तांतरित करने में जुटे थे
नई नवेली दुल्हन के स्वागत हेतु एक से बढ़कर एक नवरत्न गीत संगीत की स्वर लहरियां बिखेर रहे थे,कोइ अपने नैनों के बाणों से आगंतुकों मेहमानों को छलनी कर रहा था तो कोइ सितार के तारों से सबको रिझा रहा था
इसी प्रकार आनंदोत्सव मनाते रात्रि अपनी जवानी की ओर अग्रसर हुई
जो जहां था वही मस्ती की निद्रा में लुढ़क गया,किसी को इतनी सुध न थी कि शयनकक्ष तक भी पहुंच सके,दास दासियाँ भी अपने हाथों में सुगंधित द्रव्य लिए हुए ही जहाँ तहाँ हीं सो गये
धीरे धीरे कदमों से महाराज अपनी तलवार संभाले,अंतःपुर की ओर चले,द्वार बंद था
कुण्डी खड़काने से पूर्व ही द्वार खुल गया,शायद भीतर से कुण्डी न लगाई गई थी ,भीतर गोलाकार सेज पर एक से बढ़कर एक पुष्प मालाओं की लडिय़ां लटकी हुई थी,
समूचे कक्ष से इत्र की महक आ रही थी,बहुत प्रकार के मसालों, जड़ी बुटियों से निर्मित धूर्म से समुचा कक्ष ऐसा प्रतित होता था जैसें आकाश से स्वयं बादल धरती पर उतर आए हो,नये नवेले जोड़े के स्वागत हेतु
महाराज को देखते ही सेज पर लंबा घूंघट काढ़े बैठी दुल्हन किसी चतुरंगिणी सेना के चतुर सैनिक की भांति उछलकर सेज से उतर गई,
चूडियों और अन्य स्वर्णाभरो की झनझनाहट से कक्ष गुंजायमान हो उठा लदी फदी दुल्हन एक ओर खड़ी हो गई,
सुंगधित तैल के दीये दिवारों में बने मोखलों में जल रहे थे
महाराज ने तलवार कमर से निकाल कर दिवार पर टांग दी मुकुट किरिट कुण्डल भी खोल डाले,केवल अंगवस्त्र और पिताम्बरी धारण किए उन्होंने ही कक्ष की शांति को भंग किया
"कैसी हो देवी,बहुत देर हमारी प्रतिक्षा करनी पड़ी ना,"
दुल्हन ने कुछ न कहा,झुक कर महाराज के चरण छूने चाहे,
सावधान महाराज ने दुल्हन को काधे से पकड़ अपनी बायी जंघा पर बिठा लिया,और स्वयं भी सेज पर विराजमान हो गये।
"अरे नहीं नहीं, ऐसा अनर्थ ना करो,देवी
लजाई शकुचाई दुल्हन किसी लाजवंती छुईमुई के पत्तियों की भांति सिमटकर महाराज के वक्षस्थल से चिपक गई
महाराज ने घूंघट उठाना चाहा,दुल्हन उनसे छिटककर सेज के दूसरें कोने पहुंच गई
महाराज की हँसी निकल गई
दुल्हन ने पास ही रखा दुग्ध का पात्र उठाकर महाराज की ओर बढाया,
महाराज ने हाथ बढाकर पुनः दुल्हन का हाथ पकड़ना चाहा,किंतु चतुर स्त्री ने बिना अंगुलियाँ छूए ही दुग्ध...
संपूर्ण महल किसी दुल्हन की भातिं सजा था,नित्य प्रति लगने वाले दरबार को भी आज स्थगित कर दिया गया था,
संपूर्ण आरण्यक प्रदेश में महाराज के विवाहोत्सव की धूम मची थी,
दास दासियाँ दौड़ दौड़ कर एक एक आगंतुक को अर्घ्य, मद,मोदक हस्तांतरित करने में जुटे थे
नई नवेली दुल्हन के स्वागत हेतु एक से बढ़कर एक नवरत्न गीत संगीत की स्वर लहरियां बिखेर रहे थे,कोइ अपने नैनों के बाणों से आगंतुकों मेहमानों को छलनी कर रहा था तो कोइ सितार के तारों से सबको रिझा रहा था
इसी प्रकार आनंदोत्सव मनाते रात्रि अपनी जवानी की ओर अग्रसर हुई
जो जहां था वही मस्ती की निद्रा में लुढ़क गया,किसी को इतनी सुध न थी कि शयनकक्ष तक भी पहुंच सके,दास दासियाँ भी अपने हाथों में सुगंधित द्रव्य लिए हुए ही जहाँ तहाँ हीं सो गये
धीरे धीरे कदमों से महाराज अपनी तलवार संभाले,अंतःपुर की ओर चले,द्वार बंद था
कुण्डी खड़काने से पूर्व ही द्वार खुल गया,शायद भीतर से कुण्डी न लगाई गई थी ,भीतर गोलाकार सेज पर एक से बढ़कर एक पुष्प मालाओं की लडिय़ां लटकी हुई थी,
समूचे कक्ष से इत्र की महक आ रही थी,बहुत प्रकार के मसालों, जड़ी बुटियों से निर्मित धूर्म से समुचा कक्ष ऐसा प्रतित होता था जैसें आकाश से स्वयं बादल धरती पर उतर आए हो,नये नवेले जोड़े के स्वागत हेतु
महाराज को देखते ही सेज पर लंबा घूंघट काढ़े बैठी दुल्हन किसी चतुरंगिणी सेना के चतुर सैनिक की भांति उछलकर सेज से उतर गई,
चूडियों और अन्य स्वर्णाभरो की झनझनाहट से कक्ष गुंजायमान हो उठा लदी फदी दुल्हन एक ओर खड़ी हो गई,
सुंगधित तैल के दीये दिवारों में बने मोखलों में जल रहे थे
महाराज ने तलवार कमर से निकाल कर दिवार पर टांग दी मुकुट किरिट कुण्डल भी खोल डाले,केवल अंगवस्त्र और पिताम्बरी धारण किए उन्होंने ही कक्ष की शांति को भंग किया
"कैसी हो देवी,बहुत देर हमारी प्रतिक्षा करनी पड़ी ना,"
दुल्हन ने कुछ न कहा,झुक कर महाराज के चरण छूने चाहे,
सावधान महाराज ने दुल्हन को काधे से पकड़ अपनी बायी जंघा पर बिठा लिया,और स्वयं भी सेज पर विराजमान हो गये।
"अरे नहीं नहीं, ऐसा अनर्थ ना करो,देवी
लजाई शकुचाई दुल्हन किसी लाजवंती छुईमुई के पत्तियों की भांति सिमटकर महाराज के वक्षस्थल से चिपक गई
महाराज ने घूंघट उठाना चाहा,दुल्हन उनसे छिटककर सेज के दूसरें कोने पहुंच गई
महाराज की हँसी निकल गई
दुल्हन ने पास ही रखा दुग्ध का पात्र उठाकर महाराज की ओर बढाया,
महाराज ने हाथ बढाकर पुनः दुल्हन का हाथ पकड़ना चाहा,किंतु चतुर स्त्री ने बिना अंगुलियाँ छूए ही दुग्ध...