ॐॐ 🌺🌺 महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् ( अयि गिरिनंदिनि )🌺🌺 ॐॐ
ॐॐ 🌺🌺 महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् ( अयि गिरिनंदिनि )🌺🌺 ॐॐ
अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते,
गिरिवर-विंध्य-शिरोधि-निवासिनि विष्णु-विलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि-कुटुंबिनि भूरि-कृते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ॥१॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,
त्रिभुवनपोषिणि शंकर तोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते,
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय श्रृंग निजालय मध्यगते।
मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥
अयि शतखण्ड-विखण्डितरुण्ड-वितुण्डित-शुण्ड-गजाधिपते,
रिपु गजगण्ड-विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।
निजभुज-दण्डनिपातितखण्ड-विपातित-मुण्ड भटाधिपते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥
अयि रणदुर्मद-शत्रुवधोदित-दुर्धरनिर्जर-शक्तिभृते,
चतुरविचार-धुरीणमहाशिव-दूत-कृत-प्रमथाधिपते।
दुरित दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानवदूत-कृतांतमते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥
अयि शरणागत वैरि वधूवर वीरवार भयदायकरे,
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे।
दुमिदुमितामरदुंदुभिनादमहोमुखरीकृततिग्मकरे,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥
अयि निजहुँ-कृतिमात्र-निराकृत-धूम्रविलोचन-धूम्रशते,
समरविशोषित-शोणितबीज-समुद्भवशोणित-बीजलते।
शिवशिव शुंभनिशुंभमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥
धनु-रनुसंगरणक्षण संगपरिस्फुर दंगनटत्कटके,
कनक पिशंग-पृषत्क-निषंगरसद्भटशृंगहता वटुके।
कृतचतुरङ्ग-बलक्षितिरङ्ग-घटद्बहुरङ्गरट-द्बटुके,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥
सुरललनात तथेयित थेयित थाभिनयोत्तर नृत्यरते,
हासविलास हुलास मयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे।
धिमिकिट धिक्कट धिकट धिमिध्वनि घोरमृदंग निनादरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥
जय जय जप्य जये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते,
झणझण झिञ्झिमि झिंकृत नूपुरसिंजित मोहित भूतपते।
नटितन टार्धन टीनटनायक नाटित नाट्य सुगानरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते,
श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते।
सुनयन भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥
सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्ल कमल्लरते,
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते।
सितकृत फुल्लि समुल्ल सितारुण तल्ल जपल्ल वसल्ललिते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥
अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते,
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते।
अयि सुदती जनलाल समान समोहन मन्मथ राजसुते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥
कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते,
सकल विलास कलानिलयक्रम केलिचलत्क लहंसकुले।
अलिकुल संकुल कुवलय मंडल मौलि मिलद्भ कुलालिकुले,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१४॥
करमुरली रववीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते,
मिलित पुलिन्द मनोहर गुंजित रञ्जित शैलनि कुञ्जगते।
निजगुण भूत महाशबरी गण सद्गुण संभृत-केलि-तले,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१५॥
कटि तट पीत दुकूल विचित्र मयूख तिरस्कृत चंद्र रुचे,
प्रणत सुरासुर मौलिमणि-स्फुर दंशुल सन्नख चंद्ररुचे।
जित कनकाचल मौलि पदोर्जित निर्झर कुंजर कुंभ कुचे,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१६॥
विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैक नुते,
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनु सुते।
सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजा तरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१७॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे,
अयि कमले कमला निलये कमला निलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परंपद मित्यनु शील यतो मम किं न शिवे,
जय जय...
अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते,
गिरिवर-विंध्य-शिरोधि-निवासिनि विष्णु-विलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि-कुटुंबिनि भूरि-कृते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ॥१॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,
त्रिभुवनपोषिणि शंकर तोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते,
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय श्रृंग निजालय मध्यगते।
मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥
अयि शतखण्ड-विखण्डितरुण्ड-वितुण्डित-शुण्ड-गजाधिपते,
रिपु गजगण्ड-विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।
निजभुज-दण्डनिपातितखण्ड-विपातित-मुण्ड भटाधिपते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥
अयि रणदुर्मद-शत्रुवधोदित-दुर्धरनिर्जर-शक्तिभृते,
चतुरविचार-धुरीणमहाशिव-दूत-कृत-प्रमथाधिपते।
दुरित दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानवदूत-कृतांतमते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥
अयि शरणागत वैरि वधूवर वीरवार भयदायकरे,
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे।
दुमिदुमितामरदुंदुभिनादमहोमुखरीकृततिग्मकरे,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥
अयि निजहुँ-कृतिमात्र-निराकृत-धूम्रविलोचन-धूम्रशते,
समरविशोषित-शोणितबीज-समुद्भवशोणित-बीजलते।
शिवशिव शुंभनिशुंभमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥
धनु-रनुसंगरणक्षण संगपरिस्फुर दंगनटत्कटके,
कनक पिशंग-पृषत्क-निषंगरसद्भटशृंगहता वटुके।
कृतचतुरङ्ग-बलक्षितिरङ्ग-घटद्बहुरङ्गरट-द्बटुके,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥
सुरललनात तथेयित थेयित थाभिनयोत्तर नृत्यरते,
हासविलास हुलास मयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे।
धिमिकिट धिक्कट धिकट धिमिध्वनि घोरमृदंग निनादरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥
जय जय जप्य जये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते,
झणझण झिञ्झिमि झिंकृत नूपुरसिंजित मोहित भूतपते।
नटितन टार्धन टीनटनायक नाटित नाट्य सुगानरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते,
श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते।
सुनयन भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥
सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्ल कमल्लरते,
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते।
सितकृत फुल्लि समुल्ल सितारुण तल्ल जपल्ल वसल्ललिते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥
अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते,
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते।
अयि सुदती जनलाल समान समोहन मन्मथ राजसुते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥
कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते,
सकल विलास कलानिलयक्रम केलिचलत्क लहंसकुले।
अलिकुल संकुल कुवलय मंडल मौलि मिलद्भ कुलालिकुले,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१४॥
करमुरली रववीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते,
मिलित पुलिन्द मनोहर गुंजित रञ्जित शैलनि कुञ्जगते।
निजगुण भूत महाशबरी गण सद्गुण संभृत-केलि-तले,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१५॥
कटि तट पीत दुकूल विचित्र मयूख तिरस्कृत चंद्र रुचे,
प्रणत सुरासुर मौलिमणि-स्फुर दंशुल सन्नख चंद्ररुचे।
जित कनकाचल मौलि पदोर्जित निर्झर कुंजर कुंभ कुचे,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१६॥
विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैक नुते,
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनु सुते।
सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजा तरते,
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१७॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे,
अयि कमले कमला निलये कमला निलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परंपद मित्यनु शील यतो मम किं न शिवे,
जय जय...