संस्कार
अभियांत्रिक अधिकारी श्री रामचन्द्र जी कि छोटे शहर से बड़े नगर में तबादला हुआ था।वह नए नगर विजयपुर में आ गए थे। यहां उनको रहने के लिए सरकारी बंगला मिला था।वह अपनी पत्नी श्रीमती श्यामला और उनका एकलौता बेटा सिध्दार्थ के साथ रहने आए। सरकारी बंगले के पास ही एक पाठशाला है।उस पाठशाला में अपने बेटे सिध्दार्थ का प्रवेश लिया था। नया शहर नया माहौल था। इसलिए रोज
श्यामला खुद अपना घर काम करते करते अपने बेटे सिध्दार्थ को पाठशाला छोड़ने तथा लेकर आने का भी जबाबदारी,उनके उपर ही थी। रामचन्द्र जी तो अपने कार्यालय के काम में ही व्यस्त रहते थे। किसी तरह इस नए नगर में बस गए। श्यामला जी तो अपने आस पड़ोस पहचान कर घुल-मिल कर रहने के साथ साथ उनके बच्चों के साथ सिध्दार्थ मित्रता हुई। ऐसे ही दिन गुजरते रहे। आस-पड़ोस के बच्चे सिध्दार्थ के घर आना-जाना सुरु हुआ।
श्यामला जी ने सोचा कि सिध्दार्थ को अपने मित्रों को साथ पाठशाला को आने-जाने को कहें। श्यामला जी ने अपनी पती रामचन्द्र जी को इसके बारे में पूछा,तो उन्होंने भी सहमति दी। ऐसे ही रोज सिध्दार्थ भी अपने मित्रों के साथ पाठशाला हंसी ख़ुशी से आने-जाने लगा।
एक दिन श्याम को अपनी पाठशाला से सिध्दार्थ अपने मित्रों के साथ घर लौट रहा था। रास्ते में सभी...
श्यामला खुद अपना घर काम करते करते अपने बेटे सिध्दार्थ को पाठशाला छोड़ने तथा लेकर आने का भी जबाबदारी,उनके उपर ही थी। रामचन्द्र जी तो अपने कार्यालय के काम में ही व्यस्त रहते थे। किसी तरह इस नए नगर में बस गए। श्यामला जी तो अपने आस पड़ोस पहचान कर घुल-मिल कर रहने के साथ साथ उनके बच्चों के साथ सिध्दार्थ मित्रता हुई। ऐसे ही दिन गुजरते रहे। आस-पड़ोस के बच्चे सिध्दार्थ के घर आना-जाना सुरु हुआ।
श्यामला जी ने सोचा कि सिध्दार्थ को अपने मित्रों को साथ पाठशाला को आने-जाने को कहें। श्यामला जी ने अपनी पती रामचन्द्र जी को इसके बारे में पूछा,तो उन्होंने भी सहमति दी। ऐसे ही रोज सिध्दार्थ भी अपने मित्रों के साथ पाठशाला हंसी ख़ुशी से आने-जाने लगा।
एक दिन श्याम को अपनी पाठशाला से सिध्दार्थ अपने मित्रों के साथ घर लौट रहा था। रास्ते में सभी...