विकास का अंत और शुरुआत...
बस्ती उजड़ गई...मकान बह गए..रास्ते टूट गए.... खिलखिलाते चेहरे भी मुरझा गए । रह गए कुछ अवशेष विकास के, बाकी रह गई कुछ संघर्ष की कहानियाँ...ये कैसी तस्वीर है विकास की ?
पिछले कल का ये एक मंज़र पुरानी यादों के एक सफ़र पर ले गया। वर्ष 2012, राज्य सेवा आयोग के एक इंटरव्यू में मुझसे प्रश्न पूछा गया था , "एक विशेष जल विद्युत परियोजना का कार्य शुरू हुआ है, आप इस क्षेत्र के पर्यावरण और यहाँ की भौगोलिक स्तिथि पर इसका क्या असर देखते हैं"? समझती हूँ; इस प्रश्न का जवाब कुछ किताबी था, जिसमें केवल पढ़ी गई और समझी गई पर्यावरणीय प्रक्रिया का ज़िक्र था और कुछ उस समय जो प्रभाव पड़ रहा था खासकर यहाँ के कैचमेंट एरिया पर.... लेकिन व्यवहारिक तौर पर ये प्रभाव कितने भयानक हो सकते हैं , वो मंज़र आँखों के सामने था ।
शुरू से सब कुछ शुरू करना ! कितना मुश्किल और कष्टदायक होगा सबके लिए ,लेकिन करना तो पड़ेगा । ज़िंदगी बच गई है तो जीने के तरीके भी ढूंढने होंगे। शायद इस बार कुछ ऐसे तरीके कि दोबारा प्रकृति ने ये रौद्र रूप लिया तो इतना कष्टदायक न हो...
© संवेदना
#Harmony_with_Nature
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