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"मायाजाल और मोक्ष की ओर"
ॐ असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतं गमय
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

मुझे सत्य से सत्य की ओर ले चलो
मुझे अंधकार से रोशनी की ओर ले चलो
मुझे मृत्यु से मोक्ष की ओर ले चलो

मैं यही मंत्र उस समय अपने आप को शांत करने के लिए दोहराए जा रही थी। मेरा रोना रुक नहीं रहा था, मैं बहुत पागलों जैसी हरकतें करने लग गई थी, जैसे अपने बाल खींचना, कपड़े फाड़ना, कस के चिल्लाना, हाथ काटना, इत्यादि। हम सब जो भी देख रहे हैं, जी रहे हैं, वह सब कुछ हमारे मन का बनाया हुआ इस आंखों का धोखा देने वाला बस एक मायाजाल है। दुख, पीड़ा, कष्ट जो भी हम महसूस कर रहे हैं, वह सभी काल्पनिक हैं, सत्य कुछ भी नहीं। परम सत्य तो बस ईश्वर, मेरे आस्था के हिसाब से महाकाल शिव शंकर ही हैं। हमारे सामने जो कुछ भी है, बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी चीज, वह सभी अपने सूक्ष्म रूप में ही है यानी परमाणु या क्वार्क्स नहीं, तरंगे।

तरंगे ऊर्जा हैं।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ||
श्रीमद् भागवत गीता में श्री कृष्ण द्वारा कही गई इन श्लोक का आसान अर्थ अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा ऊर्जा संरक्षण के नियम है: "Energy can neither be created nor destroyed." मैं इन्हीं तरंगों यानी ऊर्जा की बात कर रही हूं। हमारा चंचल मन और आत्म चेतना इन तरंगों को कोई रूप दे देता है और हमें मृत्यु तक ज्ञान भी नहीं होता कि हम बस एक काल्पनिक दुनिया, एक मायाजाल (matrix) में जी रहे हैं। गुरु वशिष्ठ जी श्री राम को कहते हैं जगत दृश्य प्रपंच है। हमारी ऊर्जा या आत्मा का तो बस एक ही मकसद है ईश्वर के कमल चरणों में मोक्ष प्राप्त कर लेना और इस मायाजाल से मुक्त हो जाना।

ऐसी बातें मुझे मेरे दादाजी बोला करते थे। मुझे नहीं पता इन बातों में कितनी सच्चाई है और कुछ लोगों को तो यह बातें बचकानी भी लगेंगी। लेकिन मैं जब भी अपने दुख या गुस्से के शिखर पर होती हूं तो ऐसे ही बातें सोचती हूं। मेरे मन को शांति मिलती है और मुझे आत्महत्या जैसा महापाप करने से भी रोक लेती है।

© pari Devi The great